सुप्रीम कोर्ट का 23 हफ्ते के भ्रूण के गर्भपात से इंकार, कहा- मां को खतरा नहीं

Edited By ,Updated: 28 Feb, 2017 01:49 PM

supreme court

उच्चतम न्यायालय ने डाउन सिंड्रोम से पीड़ित अपने 26 सप्ताह का गर्भ गिराने की अनुमति मांगने वाली एक महिला की याचिका

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने डाउन सिंड्रोम से पीड़ित अपने 26 सप्ताह का गर्भ गिराने की अनुमति मांगने वाली एक महिला की याचिका आज यह कहते हुए नामंजूर कर दी कि ‘हमारे हाथों में एक जिंदगी है।’ उच्चतम न्यायालय ने कहा कि 37 वर्षीय महिला के स्वास्थ्य की जांच के लिए गठित चिकित्सा बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार गर्भावस्था जारी रखने में मां को कोई खतरा नहीं है। शीर्ष अदालत के न्यायाधीश एस ए बोबडे और न्यायाधीश एल नागेश्वर राव की पीठ ने टिप्पणी की कि हालांकि ‘हर कोई जानता है कि डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चा निसंदेह रूप से कम बुद्धिमान होता है, लेकिन वे ठीक होते हैं।’ पीठ ने कहा कि रिपोर्ट के मुताबिक भ्रूण में ‘मानसिक और शारीरिक चुनौतियां हो सकती हैं’ लेकिन चिकित्सकों की सलाह गर्भ गिराने का समर्थन नहीं करती।’ 

पीठ ने कहा, ‘इस रिपोर्ट के साथ, हमें नहीं लगता कि हम गर्भ को समाप्त करने की अनुमति देने वाले हैं। एक जिंदगी हमारे हाथ में हैं।’ न्यायालय ने कहा, ‘इन परिस्थितियों में, वर्तमान सलाह के अनुसार गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देना संभव नहीं है। गौरतलब है कि डाउन सिंड्रोम एक एेसा अनुवांशिक विकार है जो कि बौद्धिक और शारीरिक क्षमता प्रभावित करता है। पीठ ने 23 फरवरी को मुंबई स्थित केईएम अस्पताल के चिकित्सकों के बोर्ड का गठन कर महिला की जांच कर उसकी स्थिति और मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी की इजाजत के बारे में सलाह देने हेतु रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया था। महाराष्ट्र की इस महिला ने गर्भावस्था समाप्त करने की इजाजत मांगने के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाते हुए कहा था कि जन्म के समय बच्चे में गंभीर मानसिक और शारीरिक विकार होने के साथ ही उसकी खुद की जान को भी खतरा है। 

क्या कहता हैं कानून?
महिला ने अपनी याचिका में यह भी कहा था कि यह विकार बच्चे में मानसिक और शारीरिक गतिरोध पैदा कर सकता है और बच्चा सामान्य और स्वस्थ जीवन नहीं जी सकेगा। कानून भ्रूण और माता की जान को खतरा होने के बावजूद 20 सप्ताह के बाद गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति नहीं देता।  इस मामले से मिलते जुलते एक अन्य मामले में शीर्ष न्यायालय ने 22 वर्षीय एक महिला के जीवन पर संकट को देखते हुए सात फरवरी को 24 सप्ताह के गर्भ को गिराने की इजाजत दे दी थी। दरअसल, मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेसी एक्ट के तहत 20 हफ्ते से ज्यादा के भ्रूण के गर्भपात करने पर किसी भी डॉक्टर को 7 साल तक की सजा हो सकती हैं। हालांकि महिला की जान को खतरा होने पर इसकी इजाजत दी जा सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट इस तरह के कई मामलों में इससे पहले भी कई महिलाओं को गर्भपात की इजाजत दे चुका है।

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!