भाजपा गुजरात के सर्वे में चौंकाने वाली रिपोर्ट आई सामने

Edited By Punjab Kesari,Updated: 09 Jan, 2018 05:27 AM

surprising report in front of bjp gujarat survey

गुजरात में बेशक भाजपा जीत गई, लेकिन सीटों के आंकड़े में हुई गड़बड़ ने पार्टी को सोचने पर विवश कर दिया है। इस बात को ध्यान में रखते हुए भाजपा ने वहां पर एक सर्वे भी करवाया, जिसमें यह बात सामने आई कि जो सीटें मिलीं वह भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के...

जालंधर(पाहवा): गुजरात में बेशक भाजपा जीत गई, लेकिन सीटों के आंकड़े में हुई गड़बड़ ने पार्टी को सोचने पर विवश कर दिया है। इस बात को ध्यान में रखते हुए भाजपा ने वहां पर एक सर्वे भी करवाया, जिसमें यह बात सामने आई कि जो सीटें मिलीं वह भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भरोसे हासिल हो गई वरना जमीनी हालत बेहद खराब थी। मामूली समझे जाने वाले मुद्दों ने ही भाजपा के 150 प्लस के लक्ष्य पर ब्रेक लगाई है। 

कैरोसिन मुक्त अभियान बना समस्या 
सर्वे में यह बात सामने आई है कि पार्टी छोटे-छोटे मुद्दों को हल नहीं कर पाई, जिस कारण सफलता अनुमान के अनुसार नहीं मिली। गुजरात में भाजपा सरकार ने प्रदूषण कम करने और कैरोसिन की काला बाजारी को रोकने के लिए प्रदेश को कैरोसिन मुक्त बनाने की पहल की थी। इसका असर पार्टी को विधानसभा चुनावों में देखने को मिला। समुद्री तट से सटे इलाके वाले क्षेत्रों में भाजपा की सीटें घटने की वजह है कि मछली पालन के व्यवसाय से जुड़े लोग ‘कैरोसिन मुक्त’ गुजरात की पहल से नाराज थे। 

भवन निर्माण सामग्री की आसमान छूती कीमतें 
नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने गुजरात के समुद्री क्षेत्रों में रेत-खनन पर रोक लगाई। इस रोक के कारण भवन निर्माण सामग्री की कीमत काफी बढ़ गई और इस दिशा में भाजपा सरकार की तरफ से कोई सकारात्मक कोशिश नहीं हुई। इस वजह से भाजपा के खिलाफ राज्य में थोड़ा नकारात्मक माहौल भी बना और पार्टी को इसका नुक्सान कम सीट के तौर पर झेलना पड़ा। वैसे यही स्थिति पंजाब में हुई थी जहां पर सत्ता में होने के दौरान पार्टी का खनन माफिया पर नियंत्रण नहीं था, जिस कारण निर्माण सामग्री के भाव बढ़ गए थे और पार्टी तथा उसकी सहयोगी अकाली दल को लोगों ने सत्ता से बाहर कर दिया।

एक मोदी का ही सहारा
पार्टी के आंतरिक सर्वे में यह बात सामने आई है कि भाजपा के जीत के अंतर को कम करने की वजह सिर्फ शहरी और ग्रामीण क्षेत्र का अंतर नहीं है। इसके पीछे कई और छोटे-छोटे कारण भी जिम्मेदार हैं। आंतरिक सर्वे में यह बात भी सामने आई है कि भाजपा की तरफ से चुनाव प्रचार की कमान खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संभाली, जिसका असर भी मतदाताओं पर पड़ा। हालांकि, पार्टी भी यह बात स्वीकार कर रही है कि मोदी के गुजरात छोडऩे के बादे से पार्टी की स्थिति पहले जैसी नहीं रही है। 

अब नजर 2019 पर
2019 लोकसभा चुनावों को देखते हुए पार्टी इन सभी कमजोरियों पर विचार कर इन्हें दूर करने की कोशिश कर रही है। मछली पालन के व्यवसाय से जुड़े लोग बोट की मशीनों में कैरोसिन को मिलाकर प्रयोग करते हैं। कैरोसिन के स्थान पर डीजल सेट वाले इंजन लगाने को लेकर सरकार के फैसले को तय समय में वापस नहीं लिया जा सका। किसानों की नाराजगी न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर थी और पार्टी के प्रदर्शन में इस पहलू ने भी बड़ी भूमिका निभाई। भाजपा के पदाधिकारियों का मानना है कि किसान कर्ज को लेकर ज्यादा परेशान नहीं थे, लेकिन अच्छी पैदावार के बाद जब फसल बाजार में पहुंची तब तक प्रदेश में कोड ऑफ कंडक्ट लागू किया जा चुका था। न्यूनतम समर्थन मूल्य या फिर किसानों को मदद पहुंचाने वाली कोई और घोषणा आचार संहिता लागू होने के कारण नहीं कर सकी। 

बुजुर्ग नेताओं पर गाज
पार्टी के प्रदर्शन का मूल्यांकन कर रही भाजपा की कोर टीम बुजुर्ग नेताओं की वोट अपील और चुनाव प्रचार के प्रभावों का भी आकलन कर रही है। पार्टी को ऐसी रिपोर्ट भी मिल रही है कि गुजरात के युवा वोटरों को लुभाने में पार्टी के बुजुर्ग नेता नाकाम रहे हैं। युवा अपने जैसा कोई तेज-तरार युवा चेहरे को नेतृत्व करते देखना चाहते हैं। गुजरात भाजपा में बुजुर्ग नेताओं का दखल है और इस कारण नए नेतृत्व को उभरने का ज्यादा अवसर नहीं मिल रहा है। संभव है कि अब कई बुजुर्ग नेता मार्गदर्शक मंडल की तरह दरकिनार कर दिए जाएंगे। 
 

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