कैमरे ने बदली कूड़ा बीनने वाले लड़के की जिंदगी

Edited By Punjab Kesari,Updated: 11 Feb, 2018 11:42 AM

the camera changed the life of the vicky roy who took the garbage

1999 में 11 वर्षीय एक लड़का पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में अपने घर से भाग कर नई दिल्ली पहुंचा, जहां पेट भरने की मजबूरी में रेलवे स्टेशन पर कूड़ा बीनने का काम करने लगा। कुछ दिन पूर्व वही कंफैडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (सी.आई.आई.) द्वारा आयोजित एक...

नेशनल डेस्कः 1999 में 11 वर्षीय एक लड़का पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में अपने घर से भाग कर नई दिल्ली पहुंचा, जहां पेट भरने की मजबूरी में रेलवे स्टेशन पर कूड़ा बीनने का काम करने लगा। कुछ दिन पूर्व वही कंफैडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (सी.आई.आई.) द्वारा आयोजित एक सम्मेलन में मेहमान वक्ता के रूप में उपस्थित था। वहां मौजूद उद्योगपतियों, कार्पोरेट घरानों के दिग्गजों तथा अन्य प्रमुख लोगों के बीच उसने जीवन की अपनी अनूठी कहानी सुनाई। एक वक्त ट्रेनों की पैंट्री कारों से बचा-खुचा खाना चुराने तथा बेघरों के लिए बने आश्रय स्थलों के ठंडे फर्श पर सोकर दिन गुजारने वाला वह लड़का विक्की रॉय आज अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त डॉक्यूमैंट्री फोटोग्राफर है। दिसम्बर में ही दिल्ली में उसकी फोटोज की ताजा प्रदर्शनी लगी थी। इस प्रदर्शनी में पेश की गई उसकी फोटोज दिखा रही थीं कि किस तरह से विकास के नाम पर खूबसूरत पहाड़ों, नदियों तथा हिमाचल की वादियों को बर्बाद किया जा रहा है। विक्की के पिता एक दर्जी थे जिनके लिए अपनी नाममात्र आय से 7 बच्चों  को पालना सम्भव नहीं था। वह मुश्किल से अढ़ाई वर्ष का था, जब उसे पुरुलिया के तालडांगा में नाना-नानी के घर भेज दिया गया।
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29 वर्षीय विक्की बताता है, ‘‘मेरे नाना तथा मामा बोकारो स्टील प्लांट में काम करते थे। मेरे माता-पिता ने सोचा कि उनके पास रह कर कम से कम मैं स्कूल की पढ़ाई तो पूरी कर ही लूंगा।’’ परंतु नए घर में अक्सर होने वाली पिटाई से वह बेहद परेशान रहने लगा। उसके अनुसार, ‘‘एक रात मैंने कुछ पैसे चुराए और दिल्ली को जाने वाली ट्रेन में चढ़ गया। मैंने कुछ फिल्में देखी थीं जिनके प्रभाव में मैंने सोचा कि एक बड़े शहर में जाने पर मेरी जिंदगी बदल जाएगी।’’ नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर कूड़ा बीनने वालों के समूह के साथ उसने 6 महीने गुजारे। कुछ महीने बाद अजमेर गेट के एक ढाबे पर वह छोटे-मोटे काम करने लगा क्योंकि रेलवे स्टेशन पर बड़े खतरे थे। वह कहता है, ‘‘स्थानीय ठग और पुलिस अक्सर हमें पीटा करते। हम बच्चों में आपस में मार-पिटाई भी आम बात थी, जो छोटी-सी बात पर भी ब्लेड से हमला कर देते थे।’’
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स्वयंसेवी संस्था ने दिखाई नई दिशा
सन् 2000 में एक सामाजिक कार्यकर्त्ता ने ढाबे पर विक्की को देखा और उसे सलाम बालक ट्रस्ट के पास ले गया। 10वीं कक्षा की परीक्षा देने के बाद कैमरे ने उसे नई जिंदगी दी। उसके टीचर ने उसे वोकेशनल कोर्स करने की सलाह दी क्योंकि उसे केवल 48 प्रतिशत अंक मिले थे। उन्होंने उसे टी.वी. मैकेनिक बनने को कहा परंतु उसने फोटोग्राफी को चुना। उसका पहला कैमरा था, कोडक केबी10 जिसकी उस वक्त कीमत 500 रुपए से कम थी। 18 वर्ष का होने पर स्वयंसेवी संस्था ने उसे पोट्र्रेट फोटोग्राफर अनय मान के असिस्टैंट की नौकरी दिलवा दी। विक्की के अनुसार अनय की देखरेख में फोटोग्राफी सीखना उसके साथ होने वाली सबसे अच्छी बात रही।
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सन् 2008 में अमेरिका की मेबैक फाऊंडेशन ने वर्ल्ड ट्रेड टावर के पुनर्निमाण की डॉक्यूमैंटेशन करने के लिए विक्की का चयन किया। इसके बाद सन् 2014 में उसे एम.आई.टी. इंडिया लैब फैलोशिप प्रदान की गई। अपनी प्रदर्शनियों के बीच विक्की विश्व स्वास्थ्य संगठन तथा यूनिसैफ के साथ मिल कर काम करने के अलावा बतौर पेशेवर फोटोग्राफर भी काम करता है। वक्त मिलने पर वह परिवार से मिलने पुरुलिया जाता है। विक्की खुद को बचाने वाली स्वयंसेवी संस्था की फंड जुटाने में भी मदद करता है। उसने कहा, ‘‘मुझे अच्छे लोग मिले जिनकी वजह से सब अपने आप होता गया।’’

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