कश्मीर की यह 16 साल की लडक़ी दिव्यांग खिलाडिय़ों को बनाती है ‘चैंपियन’

Edited By Punjab Kesari,Updated: 19 Feb, 2018 12:31 PM

this 16 year old girl from kashmir makes divyaagya players  champion

श्रीनगर में 16 साल की एक लडक़ी अलग-अलग खेल के खिलाडिय़ों को चैंपियन बना रही है, जबकि वो खुद किसी खेल की खिलाड़ी नहीं है।

श्रीनगर : श्रीनगर में 16 साल की एक लडक़ी अलग-अलग खेल के खिलाडिय़ों को चैंपियन बना रही है, जबकि वो खुद किसी खेल की खिलाड़ी नहीं है। दरअसल वो उन खिलाडिय़ों की मदद कर रही है, जिनमें खेलने का हौसला और जीतने का जज्बा तो है लेकिन वो सुन या बोल नहीं पाते हैं। घाटी में ऐसे लोगों की आवाज बन रही है 16 साल की अर्वा इम्तियाज भट्ट।

श्रीनगर की 16 साल की अर्वा इम्तियाज भट्ट अपनी तरह की अनोखी कोच है। आज अर्वा के सिखाए खिलाड़ी बैडमिंटन में मेडल बटोर रहे हैं। फुटबॉल में मैदान मार रहे हैं और कबड्डी में विरोधी टीम को पटखनी दे रहे हैं। एक अकेली लडक़ी और इतने खेलों के खिलाडिय़ों को ट्रेनिंग सुनकर हैरान होना लाजिमी है लेकिन अगर आप अर्वा के हाथों के इशारों पर गौर करेंगे तो तस्वीर बिल्कुल साफ  हो जाएगी।

खास हुनर की मालिक है अर्वा
आम लोगों की तरह बोलने और सुनने वाली अर्वा में एक खास हुनर है। वो बोलने और सुनने में नाकाम लोगों से आसानी से बात कर लेती है और उनकी बात दूसरे लोगों को बोलकर पहुंचा देती है। जम्मू-कश्मीर में जब ऐसे ही खिलाडिय़ों को अपनी बात कहने और दूसरों की बात समझने में मुश्किलें पेश आईं तो अर्वा बट एक फरिश्ता बनकर उनकी मदद करने आगे आ गई। बोलने और सुनने में असमर्थ खिलाडिय़ों के साथ अर्वा ना सिर्फ  स्टेडियम या खेल के मैदान में होती है, बल्कि उनके साथ स्पोट्र्स टूर पर राज्य के बाहर देश के दूसरे शहरों में भी जाती है। क्योंकि दिव्यांग खिलाडिय़ों के लिए अर्वा उनकी आवाज बन चुकी है।

हर प्रतियोगिता में साथ देती है अर्वा
जम्मू-कश्मीर स्पोट्र्स एसोसिएशन में करीब 250 ऐसे खिलाड़ी जुड़े हैं, जिनके पास सुनने की शक्ति नहीं है। अर्वा भट्ट हर खेल प्रतियोगिता में इन खिलाडिय़ों के साथ होती है। उन खिलाडिय़ों के साथ अर्वा दिल्ली और चेन्नई तक जा चुकी हैं। बाहर जाने वाले खिलाडिय़ों और उनके परिवार के बीच बातचीत अर्वा की वजह से ही मुमकिन हो पाती है। यही वजह है कि सिर्फ  खिलाड़ी ही नहीं बल्कि उनके परिजन भी चाहते हैं कि अर्वा उनके बेटे या बेटी के साथ रहे।

दसवीं की छात्रा
इस काम में लगे होने की वजह से 10वीं में पढऩे वाली अर्वा की पढ़ाई भी प्रभावित हो रही है। इसके बावजूद खिलाडिय़ों की चहेती इस लडक़ी ने अपने कदम पीछे नहीं खींचे। हैरत की बात ये है कि इस काम के लिए अर्वा खिलाड़ी या उसके परिवार से कोई पैसे भी नहीं लेती।

मां से सीखा हुनर
जम्मू-कश्मीर के दिव्यांग खिलाडिय़ों के लिए मसीहा बन चुकी है अर्वा में इशारों से अपनी बात कहने का हुनर अपनी मां से आया है। दरअसल अर्वा की मां सुन या बोल नहीं पाती। होश संभालते ही अर्वा ने यही समझा कि बोलने या सुनने में नाकाम लोगों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है लेकिन अगर कोई उनकी थोड़ी सी मदद कर दे तो सारी मुश्किलें आसान हो सकती हैं । लिहाजा उसी वक्त अर्वा ने दूसरों की मदद करने का फैसला कर लिया।

कई मुश्किलों की किया सामना
खिलाडिय़ों की मदद का जज्बा अपनी जगह था और हकीकत अपनी जगह जब अर्वा ने बोलने और सुनने में अक्षम खिलाडिय़ों को आगे बढऩे के लिए प्रेरित किया तो कुछ खिलाडिय़ों के परिवार ने ही अड़ंगा लगाना शुरू कर दिया।  कई परिजन अपने दिव्यांग बच्चों को श्रीनगर से बाहर भेजने से कतरा रहे थे। तब अर्वा ने ही उन लोगों से बातकर भरोसा दिलाया। खिलाडिय़ों का परिवार इसी शर्त पर तैयार हुआ कि अर्वा हर वक्त उनके साथ रहेगी।
 

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