Edited By ,Updated: 02 Jun, 2016 06:44 PM
श्रवण कुमार की कहानी तो आप सभी ने सुनी ही होगी कि किस तरह वह अपने माता-पिता की सेवा करता था। उन्हें वहंगी में बिठाकर ले जाता था।
जबलपुर: श्रवण कुमार की कहानी तो आप सभी ने सुनी ही होगी कि किस तरह वह अपने माता-पिता की सेवा करता था। उन्हें वहंगी में बिठाकर ले जाता था। लेकिन अगर हम कहें कि कलयुग में भी ऐसा ही एक श्रवण कुमार है, तो आप विश्वास नहीं करेंगे। लेकिन ये सच है।
25 साल की उम्र में शुरु हुआ था सफर
जी हां, कलयुग के इस श्रवण कुमार का नाम कैलाशगिरी ब्रहाचारी है। वह मध्य प्रदेश के जबलपुर में हिनौता गांव का रहने वाला है। कैलाश भी श्रवण की तरह अपनी मां कीर्ति देवी को वहंगी पर लेकर घूमता है। उसकी उम्र 25 वर्ष थी, जब वह पहली बार अपनी मां को वहंगी पर लेकर निकला था और अब उसकी उम्र 45 साल हो चुकी है।
मां की मन्नत के लिए बनें श्रवण
कैलाश ने बताया कि 14 साल की उम्र में वह एक पेड़ से गिर गए थे। अगर मां ख्याल ना रखती, तो वह आज जिंदा ना होते। मां ने तब मन्नत मांगी थी कि उसके ठीक होने पर चारों धाम के दर्शन करने जाएगी। तब मुझे लगा कि मां की ये मन्नत पूरी करवाना मेरा फर्ज है। उनकी यात्रा 1996 में जबलपुर से शुरु हुई थी और पिछले 20 सालों में वह अब तक करीब 40 हजार कि.मी. की यात्रा कर चुके है। अपने इस सफर के दौरान कैलाश को जो भी लोगों से खाने को मिलता है, वह उससे अपना और मां का पेट भरते हैं।