उत्तराखंड के एक गांव में हर साल रक्षाबंधन पर होता है पत्थरों से युद्ध

Edited By Punjab Kesari,Updated: 05 Aug, 2017 04:05 PM

uttarakhand  rakshabandhan  barahi temple

रक्षाबंधन के पावन मौके पर जब देशभर में भाई की कलाई पर बहनें पवित्र राखी बांधती है उस दिन उत्तराखंड के देवीधूरा के लोग अपनी आराध्य.........

नैनीताल: रक्षाबंधन के पावन मौके पर जब देशभर में भाई की कलाई पर बहनें पवित्र राखी बांधती है उस दिन उत्तराखंड के देवीधूरा के लोग अपनी आराध्य देवी का पूजन एक दूसरे पर पत्थर मारकर करते हैं। उत्तराखंड के कुमाऊं में चंपावत जिले के देवीधूरा में रक्षाबंधन के दिन सदियों से हर साल यह बग्वाल (पत्थर युद्ध) खेला जाता है। एक दूसरे पर पत्थर फेंकने वाले रणबांकुरे बग्वाल खेल के दौरान अपनी आराध्य देवी को खुश करने के लिए यह खेल खेलते हैं। मान्यता है कि यह खेल तब तक जारी रहना चाहिए जब तक खेल के दौरान इतना खून नहीं बहा जाए जितना एक आदमी में होता है।  कुमाऊं का देवीधूरा आसाड़ी कौतिक के नाम से प्रसिद्ध है और इसे बग्वाल मेला भी कहा जाता है। यह खेल में चार खामों एवं सात थोक के लोगों के बीच खेला जाता है।

मान्यता है कि पौराणिक काल में चार खामों के लोगों में आराध्या बाराही देवी को मनाने के लिए नर बलि देने की प्रथा थी। एक बार बलि देने की बारी चमियाल खाम में एक वृद्धा के परिवार की थी। परिवार में उसका एक मात्र पौत्र था। वृद्धा ने पौत्र की रक्षा के लिए मां बाराही की स्तुति की तो खुश होकर मां बाराही ने वृद्धा को दर्शन दिए। देवी ने वृद्धा को मंदिर परिसर खोलीखांण में बग्वाल खेलने के लिए कहा और तभी से बग्वाल की प्रथा शुरू हुई।  देवी के आदेश के बाद बाराही मंदिर के प्रांगण तब से हर साल खोलीखांण में बग्वाल खेली जाती है। इसमें चारों खामों के युवा एवं बुजुर्ग सब मिलकर खेलते हैं। एक ओर लमगडिय़ा एवं बालिग खाम जबकि दूसरी ओर गहड़वाल एवं चमियाल खाम के रणबांकुरे डटे रहते हैं। रक्षाबंधन के दिन सभी रणबांकुरे सज धजकर मंदिर परिसर में आते हैं। देवी की आराधना के साथ दोनों ओर से पत्थर फेंके जाते है। पत्थर फेंकने का यह खेल कब समाप्त होगा इसकी घेषणा मंदिर के पुजारी द्वारा की जाती है।  

 बग्वाल मेला कमेटी के संरक्षक खीम सिंह लमगडिय़ा एवं मेला संयोजक विनोद प्रकाश गहतोड़ी, भुवन चंद्र जोशी तथा कीर्ति वल्लभ जोशी के अनुसार बग्वाल खेलने के लिए कोई नियम एवं कायदा कानून तय नहीं होता है। इस खेल में हिस्सा लेने वालों के लिए पहली शर्त है कि पत्थर फेंकने वाले व्यक्ति को एक सप्ताह पहले से तामसिक वस्तुओं से दूर रहकर अनुशासित जीवन जीना होता है। खेल में शामिल होने वाला व्यक्ति सबसे पहले अपनी मां का आशीर्वाद लेता है और फिर मां बाराही के दर्शन करता है। बग्वाल के मौके पर सभी लोग परदेश से अपने घरों को लौटते है और देवी पूजन के इस आयोजन में शामिल होते हैं।   गुरना एवं टकना थोक के पुजारी हर साल मां बाराही देवी की पूजा अर्जना करते हैं जबकि फुलाराकोट थोक के निवासी बाराही धाम में सेवक की भूमिका अदा करते हैं। बग्वाल के अगले दिन मंदिर के पुजारी आंखों में पट्टी बांधकर मां बाराही की पूजा करते हैं। मान्यता है कि बग्वाल के बाद मां बाराही की मूर्ति का तेज अत्यधिक बढ़ जाता है जिससे उन्हें देखने वालों की आंखें निस्तेज हो सकती है।

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!