Edited By Punjab Kesari,Updated: 26 Sep, 2017 10:53 AM
विनय और प्रियंका पाठक की जिंदगी पिछले पांच दिनों से दु:ख और दर्द का पर्याय बन गई थी, लेकिन सफदरजंग अस्पताल में उपचार की उम्मीद से पहुंचे इस दंपति........
नई दिल्ली: विनय और प्रियंका पाठक की जिंदगी पिछले पांच दिनों से दु:ख और दर्द का पर्याय बन गई थी, लेकिन सफदरजंग अस्पताल में उपचार की उम्मीद से पहुंचे इस दंपति की रही सही कसर तब पूरी हो गई, जब चिकित्सा लापरवाही के कारण बहुत दर्द और उत्पीडऩ का सामना करना पड़ा। प्रियंका पाठक (25) को अस्पाल में भले ही भर्ती कर लिया गया, लेकिन 24 घंटे तक असहनीय दर्द का सामना करना पड़ा। बाद में परिवार ने उसे किसी अन्य अस्पताल में ले जाने का फैसला किया, जहां उसके भ्रूण की गर्भ में मौत की पुष्टि हुई और यह भी जानकारी मिली की शरीर में संक्रमण हो गया है। अगर समय रहते उपचार नहीं मिलता तो उसकी मौत भी हो सकती थी।
विनय पाठक के मुताबिक, वे एक नॄसग होम में यह पुष्टि होने के बाद 20 सितंबर को अस्पताल पहुंचे थे कि उनके बच्चे की मौत मां के गर्भ में हो चुकी है और उसे तत्काल सर्जरी की जरूरत है। अस्पताल में पहुंचने के बाद पहले तो उसे काफी देर तक भर्ती नहीं किया गया। जब भर्ती किया तो पूरी रात इलाज नहीं किया। पेशे से वकील विनय पाठक के मुताबिक उनकी पत्नी को बिस्तर तक नहीं दिया गया। फर्श पर ही मरीज को लिटाना पड़ा। अगले दिन तक जब कोई डॉक्टरी मदद नहीं मिली तो उन्होंने अस्पतालकर्मियों से इस बारे में बात करनी चाही। इसपर अस्पताल के कर्मचारियों ने कहा की यह सरकारी अस्पताल है और यहां इस तरह की दिक्कतें उठानी पड़ेगी।
पूरे वीरवार को इंतजार करने के बाद, परिवार के सदस्यों ने प्रियंका को दूसरे अस्पताल में ले जाने का फैसला किया। क्योंकि उनका दर्द उसके लिए असहनीय हो रहा था। उन्होंने मेडिकल स्टाफ से अनुरोध किया कि उसके बाद मुख्य चिकित्सा अधिकारी उसे छुट्टी दे दें, लेकिन अस्पताल के कर्मचारियों ने अपने रिकॉर्ड खो दिए और उन्हें खाली कागज से छुट्टी दे दी गई और उसे दिए गए उपचार का कोई विवरण नहीं मिला। बाद में सामाजिक कार्यकर्ता एडवोकेट अशोक अग्रवाल की पहल पर मरीज को ईडब्ल्यूएस कोटे के तहत माता चानन देवी अस्पताल में भर्ती कराकर जरुरी उपचार दिया गया।