Edited By Punjab Kesari,Updated: 19 Jan, 2018 08:06 PM
सांसद होने के साथ सोनिया गांधी को राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का चेयरमैन बनाए जाने से लाभ के पद का मामला बन गया था। विवाद खड़ा होने की वजह से सोनिया गांधी को लोकसभा सदस्यता से इस्तीफा देकर रायबरेली से दोबारा चुनाव लड़ना पड़ा था। इसी तरह साल 2006 में ही...
नई दिल्लीः चुनाव आयोग ने लाभ के पद के मामले में आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों को अयोग्य करार दिया है। एेसे में अब अंतिम फैसला राष्ट्रपति को करना है। हालांकि यह पहला मौका नहीं है, जब जनप्रतिनिधियों पर इस तरह की कार्रवाई हुई हो। कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान साल 2006 में लाभ के पद वाले दो बड़े मामले सामने आए थे। इसके चलते सोनिया गांधी को लोकसभा और जय बच्चन को राज्यसभा की सदस्यता से हाथ धोना पड़ा था।
दरअसल, उस दौरान सांसद होने के साथ सोनिया गांधी को राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का चेयरमैन बनाए जाने से लाभ के पद का मामला बन गया था। विवाद खड़ा होने की वजह से सोनिया गांधी को लोकसभा सदस्यता से इस्तीफा देकर रायबरेली से दोबारा चुनाव लड़ना पड़ा था। इसी तरह साल 2006 में ही जया बच्चन पर भी आरोप लगा कि वह राज्यसभा सांसद होने के साथ-साथ यूपी फिल्म विकास निगम की चेयरमैन भी हैं। इसे 'लाभ का पद' माना गया और चुनाव आयोग्य ने जया बच्चन को अयोग्य ठहरा दिया।
हालांकि आयोग के इस फैसले को जया बच्चन ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी था लेकिन वहां उन्हें कोई राहत नहीं मिल सकी। उस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि अगर किसी सांसद या विधायक ने 'लाभ का पद' लिया है तो उसकी सदस्यता जाएगी चाहे उसने वेतन या दूसरे भत्ते लिए हों या नहीं।
लाभ का पद को लेकर यह है नियम
- भारत के संविधान में इसे लेकर स्पष्ट व्याख्या है। संविधान के अनुच्छेद 102 (1) A के तहत सांसद या विधायक ऐसे किसी अन्य पद पर नहीं हो सकते जहां वेतन, भत्ते या अन्य दूसरी तरह के फायदे मिलते हों।
- इसके अलावा संविधान के अनुच्छेद 191 (1) (A) और जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 9 (A) के तहत भी सांसदों और विधायकों को अन्य पद लेने से रोकने का प्रावधान है।