भारत और चीन चाहें या नहीं चाहें उन्हें आस-पड़ोस में रहना है: दलाई लामा

Edited By Punjab Kesari,Updated: 19 Nov, 2017 09:37 PM

whether india or china want or not they have to live in the neighborhood

तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने रविवार को कहा कि भारत और चीन चाहे इसे पसंद करें या नहीं उन्हें ‘आस-पड़ोस’ में रहना है। साथ ही उन्होंने कहा कि दोनों देश अधिक करुणामय संसार बनाने के लिए साथ मिलकर काम कर सकते हैं। 82 वर्षीय बौद्ध भिक्षु ने यह भी...

नई दिल्ली: तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने रविवार को कहा कि भारत और चीन चाहे इसे पसंद करें या नहीं उन्हें ‘आस-पड़ोस’ में रहना है। साथ ही उन्होंने कहा कि दोनों देश अधिक करुणामय संसार बनाने के लिए साथ मिलकर काम कर सकते हैं। 

82 वर्षीय बौद्ध भिक्षु ने यह भी कहा कि तिब्बती चीन से स्वतंत्रता या अलगाव की मांग नहीं कर रहे हैं, बल्कि अधिक स्वायत्तता की मांग कर रहे हैं। उन्होंने ‘यूरोपीय संघ की भावना की भी प्रशंसा’ की। तिब्बती आध्यात्मिक गुरु ने ‘भारत संघ’ के विचार की सराहना की। उन्होंने अपनी हालिया मणिपुर यात्रा का हवाला देते हुए कहा कि उन्हें अधिक ‘व्यापक और समग्र’ तरीके से सोचने की आवश्यकता है। मणिपुर में उन्हें पता चला कि कुछ नेता राज्य के लिए स्वतंत्रता चाहते हैं। उन्होंने कहा कि भारत और चीन में दो अरब से अधिक लोग हैं। हालांकि उनके बीच मतभेद है। 

नालंदा के विचार उनके लिए अजनबी नहीं हैं। बिहार स्थित प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय में चीन, कोरिया, जापान, तिब्बत, मंगोलिया, तुर्की, श्रीलंका और अन्य देशों के विद्वान आते थे। इन विद्वानों ने इस अनोखे विश्वविद्यालय के वातावरण, स्थापत्य और सीखने के बारे में रिकॉर्ड छोड़े हैं। नोबेल पुरस्कार से सम्मानित दलाई लामा ने कहा ‘‘भारत और चीन अधिक करुणामय संसार, अधिक करुणामय मानवता के लिए कुछ कर सकते हैं।’’ डोकलाम मुद्दे पर द्विपक्षीय संबंधों में तनाव के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने संवाददाताओं से कहा, ‘‘और तब भारत और चीन व्यावहारिक स्तर पर भी दोनों में किसी के भी पास दूसरे को तबाह करने की क्षमता नहीं है। आप चाहे इसे पसंद करें या नहीं, आपको आस-पड़ोस में रहना है।’’ 

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