इंडियन नेवी के लेफ्टिनेंट कंमाडर को भारतीय डाक से लगा हजारों का चूना

Edited By ,Updated: 28 Jan, 2015 08:59 AM

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भारतीय डाक को लोग बड़ा ही सुरक्षित साधन मानते है अपने तक अपनी चीजें पहुंचाने को लेकिन अगर वहां से भी उनकी चीजों की अदला-बदला या हेर-फेर हो जाए

जालंधर: भारतीय डाक को लोग बड़ा ही सुरक्षित साधन मानते है अपने तक अपनी चीजें पहुंचाने को लेकिन अगर वहां से भी उनकी चीजों की अदला-बदला या हेर-फेर हो जाए तो फिर आम जानता किस पर विशवास करेगी। कुछ ऐसा ही हुआ जालंधर के कमल पार्क सोडल रोड की रहने वाली मंजू सचदेवा के साथ। मंजू सचदेवा पत्नी भारत भूषण का बेटा कार्तिक सचदेवा विशाखापट्टनम में इंडियन नेवी में लेफ्टिनेंट कंमाडर है।

लेफ्टिनेंट कंमाडर कार्तिक सचदेवा ने अपनी मां मंजू सचदेवा को विशाखापट्टनम से जालंधर भारतीय डाक द्वारा skechers कंपनी के जूते और एक ट्रेक सूट भेजा। लेफ्टिनेंट कंमाडर कार्तिक सचदेवा ने Whatsapp के जरिये अपनी मां को फोटो भी भेजी की वो नीले रंग के जूते भेज रहा है और एक ट्रेक सूट भी लेकिन उनकी मां मंजू के होश उस समय फख्ता हो गए जब उन्होंने डाकिए द्वारा दिए पार्सल को खोला।

दरअसल पार्सल में जूतों और ट्रेक सूट की जगह चेन्नई की Motorindia की 5-6 कितीबे निकलीं। मंजू सचदेवा पहले तो अपने बेटे से फोन पर बात की और फिर बिना देर किए अपने घर के पास इंडस्ट्रियल एरिया डाकघर में गई। मंजू सचदेवा ने आरोप लगाते हुए कहा कि वहां अधिकारियों ने इस बात से पल्ला झाड़ दिया और कहा कि इसमें उनकी कोई गलती है नहीं और अगर पार्सल से कुछ और सामान निकला है तो इसमें भी उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं है।

मंजू सचदेवा ने आरोप लगाते हुए कहा कि उन्होंने डाक अधिकारियों से कहा कि वे शिकायत के रूप में आर्जी देना चाहती हैं इस पर डाक अधिकारियों ने कहा कि वे इसे मंजूर नहीं कर सकते क्योंकि हो सकता है सामान पीछे से ही बदल दिया गया और वे इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं।

मंजू सचदेवा डाक अधिकारियों के इस व्यवहार से काफी आहत हैं और उन्होंने कहा कि खुद उनका बेटा देश की सेवा के लिए घर से दूर है और सरकार का इस तरह का व्यवहार सच में चौंकाने वाला है क्योंकि डाक विभाग को चाहिए कि वे इसकी डांच करे कि आखिर सामान गया कहां। मंजू सचदेवा ने कहा कि पार्सल रजिस्ट्रड है और ऐसे में वह अच्छे से सील था तो सामान कैसे गायब हुआ। मंजू सचदेवा ने बताया कि जूतों की कीमत करीब पांच हजार थी जबकि ट्रेक सूट तीन हजार का था।

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