लाला लाजपत राय:आजादी के सच्चे देश भक्त को सलाम

Edited By ,Updated: 28 Jan, 2015 09:45 AM

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लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी 1865 को गांव ढुडीके (अब जिला मोगा) में श्री राधा कृष्ण तथा गुलाब देवी के घर हुआ। राधा कृष्ण एक प्राइमरी स्कूल में अध्यापक थे। मैट्रिक तक की शिक्षा पूरी करने के बाद लाला जी गवर्नमैंट कालेज लाहौर में दाखिल हुए। इस...

लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी 1865 को गांव ढुडीके (अब जिला मोगा)  में श्री राधा कृष्ण तथा गुलाब देवी के घर हुआ। राधा कृष्ण एक प्राइमरी स्कूल में अध्यापक थे। मैट्रिक तक की शिक्षा पूरी करने के बाद लाला जी गवर्नमैंट कालेज लाहौर में दाखिल हुए। इस कालेज में लाला जी की मित्रता हंस राज तथा गुरु दत्त से हुई जो डी.ए.वी. संस्थानों की स्थापना में उनके सहयोगी थे। मुख्तियारी की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद लाला जी ने जगराओं में विधि व्यवसाय शुरू कर दिया। कुछ वर्ष बाद वह हिसार चले गए। विधि व्यवसाय के साथ-साथ ही वह नगर के कल्याण कार्यों में भी भाग लेते थे। इसी दौरान उन्हें हिसार नगर निगम का सदस्य चुन लिया गया। लाला जी एक अच्छे लेखक तथा वक्ता थे। 

आगे चल कर वह लाहौर चले गए और वहां उन्होंने अपना विधि व्यवसाय लाहौर हाईकोर्ट में जारी रखा। उन्होंने किसानों द्वारा नहरों के पानी के इस्तेमाल पर लगाए गए टैक्स के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन किया और ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ का नारा दिया। शहीद-ए-आजम सरदार भगत सिंह के चाचा स. अजीत सिंह ने लाला जी को लायलपुर आने का निमंत्रण दिया। जहां लाला जी ने किसान कांफ्रैंस की अध्यक्षता की।

कुछ दिन बाद उन्हें तथा अजीत सिंह को गिरफ्तार करके 1907 में मांडले जेल भेज दिया गया।  लालाजी आर्य समाज से जुड़ गए। जब स्वामी दयानंद जी का देहांत हुआ तो आर्य समाज में स्वामी जी की उचित यादगार संबंधी बहस चल पड़ी। लाला जी के समूह ने दयानंद एंग्लो वैदिक स्कूल शुरू करने की वकालत की।  उन्होंने 1886 में डी.ए.वी. स्कूल तथा 1889 में डी.ए.वी. कालेज शुरू किया। उन्होंने अपने कालेज के मित्र हंस राज को इसका प्रिंसीपल बनने का आग्रह किया और गुरुदत्त को कालेज का लैक्चरर बनाया। 

लाला जी ने अपने मित्रों के साथ मिल कर पंजाब नैशनल बैंक शुरू किया और वह खुद इसके निदेशक बने। 1913 में लाला जी ने जगराओं में राधा कृष्ण हाई स्कूल शुरू किया जो अब लाजपत राय कालेज बन चुका है। वह स्वतंत्रता आंदोलन के प्रचार हेतु 1914 में इंगलैंड और उसके बाद अमेरिका भी गए। 

उन्होंने इंडिया होम रूल लीग की स्थापना भी की। फरवरी 1920 में वह भारत वापस आ गए। लाला जी अब एक राष्ट्रीय नेता बन चुके थे और वह पंजाब के बाहर भी काफी प्रसिद्ध थे। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में लाल- बाल-पाल त्रयी काफी प्रसिद्ध थी जिसमें लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक तथा बिपिन चंद्रपाल शामिल थे। 1920 में जब तिलक जी का देहांत हुआ तो लाला जी ने युवाओं को स्वच्छ राजनीति की शिक्षा देने के लिए लाहौर में ‘तिलक स्कूल आफ पॉलीटिक्स’ शुरू किया था। इसी वर्ष उन्होंने लाहौर से एक साप्ताहिक पत्र ‘वंदे मातरम’ भी शुरू किया। कलकत्ता में कांग्रेस के विशेष सत्र की भी उन्होंने अध्यक्षता की थी जहां असहयोग का प्रस्ताव पास किया गया और विदेशी चीजों का बहिष्कार करने का आह्वान किया गया।

1920 में लाला जी ने लाहौर में नैशनल कालेज की शुरूआत की। उन्होंने ‘सर्वैंट्स ऑफ पीपल सोसाइटी’ की भी स्थापना की ताकि मातृभूमि की सेवा के लिए राष्ट्रप्रेमियों को प्रोत्साहित किया जा सके। 1924 में लाला जी ने मेरठ में कुमार आश्रम की स्थापना की जिसमें पिछड़ी श्रेणियों के बच्चों को मुफ्त शिक्षा दी जाती थी। 1925 में लाला जी ने लाहौर में लक्ष्मी इंश्योरैंस कम्पनी की स्थापना की। इसी वर्ष उन्होंने ‘द पीपल’  नामक एक अंग्रेजी साप्ताहिक पत्र की भी शुरूआत की।  उन्होंने अपने मित्रों को लाहौर से अंग्रेजी दैनिक ‘द ट्रिब्यून’ शुरू करने हेतु प्रोत्साहित किया। 1927 में उन्होंने अपनी माता की याद में ‘गुलाब देवी अस्पताल’ की शुरूआत भी की थी। 

उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के मामले में निर्णय लेने के लिए साइमन कमिशन की नियुक्ति का विरोध किया और लाहौर के रेलवे स्टेशन पर एक बड़े विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया। इसमें उन्होंने नारा दिया था ‘साइमन कमिशन गो बैक’।  30 अक्तूबर 1928 को उन पर लाठियों से बुरी तरह प्रहार किया गया था। उसी दिन शाम के वक्त लाहौर में एक मीटिंग के दौरान उन्होंने अपने भाषण में घोषणा की थी कि उनके शारीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश साम्राज्य के कफन में आखिरी कील साबित होगी। इन्हीं चोटों के चलते 17 नवम्बर 1928 को लाला जी का देहांत हो गया। लाला जी जैसी महान विभूतियों के कारण ही हमें 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता प्राप्त हुई थी।

                                                                                                                                            —सत्यपाल

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