ओबामा के भारत आने पर क्यों चिढा़ पाक मीडिया, जरा पढ़िए!

Edited By ,Updated: 01 Feb, 2015 01:53 PM

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भारत में गणतंत्र दिवस के मौके पर आए खास मेहमान अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा का दौरा अभी तक पाकिस्तानी उर्दू मीडिया में छाया है। पाक के विभिन्न मीडिया ग्रुपों ने ओबामा दौरे के बारे में अपनी अलग-अलग राय दी हैं।

नई दिल्ली: भारत में गणतंत्र दिवस के मौके पर आए खास मेहमान अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा का दौरा अभी तक पाकिस्तानी उर्दू मीडिया में छाया है। पाक के विभिन्न मीडिया ग्रुपों ने ओबामा दौरे के बारे में अपनी अलग-अलग राय दी हैं।

दैनिक एक्सप्रेस लिखता है कि अमरीकी राष्ट्रपति के भारत दौरे से साफ हो गया है कि अमरीका आने वाले समय में इस क्षेत्र में किस तरह की नीतियां लागू करना चाहता है। अमरीका का झुकाव भारत की तरफ इतना बढ़ गया है कि वो उसे सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य बनाने का समर्थन तक कर रहा है।

अखबार के अनुसार, अमरीका अच्छी तरह जानता है कि पाकिस्तान कभी चीन के ख‌िलाफ अमरीका का साथ नहीं देगा इसलिए उसने भारत को चीन का रास्ता रोकने का जरिया बनाया है। 

भारतीय प्रधानमंत्री के हाथों की बनी चाय पीने के बाद राष्ट्रपति ओबामा ने जिस तरह दिलदारियां दिखाई हैं, उससे पता चलता है कि वॉशिंगटन की प्राथमिकताएं बदल गई हैं, ठीक वैसे ही जैसे अतीत में बदलती रही हैं।

वहीं, नवाज वक्त ने कहा है कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ जब अमरीका गए तो राष्ट्रपति ओबामा ने उन्हें चंद मिनट की मुलाकात का भी वक्त नहीं दिया और भारत आए तो अपने अहम सहयोगी पाकिस्तानी की तरफ कमर करके वापस लौट गए।इससे भारत की कामयाब और 'हमारी कमजोर विदेश नीति का पता चलता है'।

अखबार ने कश्मीर का मुद्दा उठाते हुए सुरक्षा परिषद में भारत की स्थाई सदस्य की दावेदारी पर भी सवाल उठाया है और भारत और अमरीका के बीच नए रक्षा समझौतों को पूरे क्षेत्र के एक नया खतरा भी बताया है।

वहीं, दैनिक दुनिया ने पाकिस्तान में लगातार जारी पेट्रोल संकट पर लिखा है कि सत्ता संभालते हुए नवाज शरीफ ने कहा था कि मंत्रालयों पर नजर रखी जाएगी और अच्छा काम न करना वाले मंत्रियों को हटा दिया जाएगा, अब पेट्रोल संकट और इस मंत्रालय का कामकाज उन्हें अपना वादा याद दिला रहे हैं।

 

अखबार कहता है कि 'सबका साथ सबका विकास' के नारे के साथ सत्ता में आई मोदी सरकार पहले रोज से ही विवादित मुद्दों को उठाने की कोशिश कर रही है। अखबार के मुताबिक पहले 370 को खत्म करने की बात, फिर धर्मांतरण को उठाना और इसी तरह राम मंदिर का निर्माण का मुद्दा उठाना।

 

दिल्ली में समाजसेवी अन्ना हजारे के दो पूर्व सहयोगियों किरण बेदी और अरविंद केजरीवाल की सियासी जंग पर संपादकीय लिखा है।

 

अखबार लिखता है कि अन्ना हजारे जहां राजनीति को कीचड़ और गंदगी बताते हैं, वहीं उनके शागिर्द खामोशी से इस कीचड़ में शामिल हो जाते हैं। वहीं कांग्रेस को अखबार की सलाह है कि वो आसमान से नीचे उतरे और भ्रष्टाचार के ख‌िलाफ मुहिम छेड़े।   

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