यहां प्रसाद के रूप में मिलता है गांजा

Edited By ,Updated: 20 Feb, 2015 08:33 AM

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जब भी कोई भक्त मंदिर में दर्शनों के लिए जाता है तो वह प्रसाद रूप में वहां स्थापित देवी अथवा देवता के लिए कोई न कोई भेंट अवश्य लेकर जाता है। आपने भगवान शिव के मंदिर में तो भांग जैसा

जब भी कोई भक्त मंदिर में दर्शनों के लिए जाता है तो वह प्रसाद रूप में वहां स्थापित देवी अथवा देवता के लिए कोई न कोई भेंट अवश्य लेकर जाता है। आपने भगवान शिव के मंदिर में तो भांग जैसा नशीला पदार्थ अर्पित करने के बारे में तो देखा और सुना ही होगा मगर आज हम आपको देवी दुर्गा के ऐसे मंदिर की मानसिक यात्रा करवाते हैं जहां प्रसाद रूप में गांजा अर्पित करने की परंपरा प्राचीनकाल से ही चली आ रही है।

बिहार के खगड़िया में अवस्थित मां दुर्गा का शक्तिपीठ मंदिर है। मां इस मंदिर में कात्यायिनी रूप में विराजित हैं। इस मंदिर में दर्शनों के लिए आने वाले भक्त प्रसाद रूप में अर्पित करते हैं गांजा और दूध। 

लोक मान्यता के अनुसार जब सती ने अपने पिता के घर भगवान शिव का अपमान होते देखा तो उन्होंने यज्ञ में अपनी देह का त्याग कर दिया। भगवान शिव सती के वियोग में दुखी उनकी देह को उठा कर इधर उधर भटकने लगे। तब भगवान विष्णु ने अपने तुदर्शन चक्र से देवी सती की देह के टुकड़े टुकड़े कर दिए। इस शक्तिपीठ में देवी सती की बाईं भुजा गिरी थी। 

लोक मान्यता के अनुसार प्राचीनकाल में श्रीपत महाराज नाम के पशुपालक मां के मंदिर की देख-रेख करते थे। यहां बहुत से लोगों की जीवीका का साधन पशुपालन है। जब भी कोई पशु पहला दूध देता तो वो देवी के मंदिर में अर्पित किया जाता क्योंकि उनका मानना था की औसा करने से उनके पशु अधिक से अधिक दूध देंगे और उनके कारोबार में बढ़ौतरी होगी।

श्रीपत महाराज बहुत चाव से गांजे का सेवन करते थे। एक दिन वो किसी कार्य हेतू जंगल गए औक खूंखार बाघ ने उन्हें अपना शिकार बना लिया। इस घटना के उपरांत से दूध के बाद गांजा अर्पित करने की परंपरा का आरंभ हुआ।

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