भारत में मात्र एक ही जगह पर देखें जा सकते हैं मंदिर, मस्जिद तथा गुरुद्वारा

Edited By ,Updated: 23 Feb, 2015 10:28 AM

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मंदिर, मस्जिद तथा गुरुद्वारा इसी एक जगह पर देखे जा सकते हैं भारत में अमृतसर से 55 कि.मी., ब्यास से 23 कि.मी. तथा जालंधर से 65 कि.मी. दूरी पर बसे घुमान गांव को न केवल

मंदिर, मस्जिद तथा गुरुद्वारा इसी एक जगह पर देखे जा सकते हैं भारत में अमृतसर से 55 कि.मी., ब्यास से 23 कि.मी. तथा जालंधर से 65 कि.मी. दूरी पर बसे घुमान गांव को न केवल महाराष्ट्र में बल्कि सिखों तथा समस्त पंजाबी जनता की दृष्टि में भी अनन्य साधारण महत्व प्राप्त है। 

संत नामदेव जी का जन्म सन 1272 में महाराष्ट्र के नरसी बामनी गांव में हुआ और जीवन के उत्तर काल में उन्होंने घुमान में 20 से भी अधिक वर्ष बिताए थे। उस जमाने में भी आज ही की तरह पंजाब में नशीले पदार्थों की व्यसनाधीनता बढ़ी थी। साथ में मुगल शासकों के अत्याचार बढऩे लगे थे। ऐसे समय में संत नामदेव जी ने भजन, कीर्तन के माध्यम से जनजागृति उत्पन्न कीं। 

एक ओर हिन्दू धर्म के वर्णवर्चस्ववादी कर्मठता के खिलाफ और दूसरी ओर अत्याचारी मुगलों के खिलाफ उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम लोगों को इकट्ठा किया और उनमें जागृति उत्पन्न की। सन् 1350 में संत नामदेव जी ने घुमान गांव में समाधि ली (महाराष्ट्र में ऐसा मानना है कि वह महाराष्ट्र लौटे और यहां पंढरपुर में उन्होंने समाधि ली)। ऐसा कहा जाता है कि मोहम्मद तुगलक के चचेरे भाई फिरोज तुगलक ने नामदेव जी के सम्मान में उनकी समाधि स्वयं बनवाई थी। घुमान में मंदिर, मस्जिद तथा गुरुद्वारा एक ही जगह बनाए गए हैं, जो भारत में मात्र इसी जगह देखने को मिलता है। 

पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब में संत नामदेव जी की 61 पंक्तियां सम्मिलित हैं, जोकि विश्व भर में फैले सिख तथा पंजाबी भाइयों के लिए प्रात: स्मरणीय हैं। संत नामदेव जी को राष्ट्रीय तथा सामाजिक एकता के सर्वश्रेष्ठ संत के रूप में देखा जाता है।

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