‘हमारे नेताओं की फिसलती जुबानें’

Edited By ,Updated: 25 Feb, 2015 01:57 AM

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आजकल यह एक रुझान सा बन गया है कि नेतागण स्वयं को प्रभावशाली दिखाने के लिए प्राय: आक्रामक भाषा का इस्तेमाल कर जाते हैं। इससे शायद उनके ‘अहं’ की संतुष्टि तो हो जाती होगी परन्तु ऐसी ...

आजकल यह एक रुझान सा बन गया है कि नेतागण स्वयं को प्रभावशाली दिखाने के लिए प्राय: आक्रामक भाषा का इस्तेमाल कर जाते हैं। इससे शायद उनके ‘अहं’ की संतुष्टि तो हो जाती होगी परन्तु ऐसी बातों से निश्चित रूप से अनावश्यक विवाद उत्पन्न हो जाते हैं।

22 फरवरी को हरियाणा के शिक्षा मंत्री रामबिलास शर्मा ने रोहतक के महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय में आयोजित फाल्गुन मेले में भरे सभागार में देश के प्रथम प्रधानमंत्री स्व. पं. जवाहर लाल नेहरू पर एक व्यंग्यात्मक चुटकला सुनाते हुए पं. नेहरू के लिए ‘साला’ शब्द का इस्तेमाल कर डाला।

समारोह में भाषण करते हुए उन्होंने कहा कि ‘‘बहादुरगढ़ की बस में एक सवारी ने कहा कि आज जवाहर लाल नेहरू मर गए तो साथ बैठे लोगों ने कहा कि दादा लखमी चंद शर्मा जैसे चले गए तो फिर नेहरू ‘साला’ कहां बचता।’’

इस बयान से भारी विवाद पैदा हो गया और रामबिलास शर्मा को क्षमा-याचना करनी पड़ी परन्तु विपक्ष इससे संतुष्टï नहीं हुआ और इसे अपर्याप्त बताते हुए हरियाणा मंत्रिमंडल से उनकी छुट्टी करने की मांग कर रहा है।

हरियाणा के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप शर्मा के अनुसार यह बयान पं. नेहरू की विरासत समाप्त करने की भाजपा व संघ की सांठगांठ का  द्योतक है। अत: विधानसभा के आगामी सत्र में रामबिलास शर्मा को न तो बोलने दिया जाएगा, न ही सभा की कार्रवाई में हिस्सा लेने दिया जाएगा और न ही उन्हें मंत्री के रूप में किसी प्रश्र का उत्तर देने दिया जाएगा।

और अब हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने 23 फरवरी को रामबिलास शर्मा के बयान पर यह टिप्पणी करके एक और विवाद को जन्म दे दिया कि ‘‘पूर्व प्रधानमंत्री अच्छे आदमी तो थे नहीं लेकिन इस तरह खुले मंच से किसी के विषय में अभद्र टिप्पणी नहीं की जानी चाहिए।’’

वैचारिक मतभेदों के बावजूद देश के स्वतंत्रता संग्राम और आधुनिक भारत के निर्माण में पं. जवाहर लाल नेहरू के योगदान को कम करके आंकना उचित नहीं है। नेहरू ने देश की स्वतंत्रता के बाद, जब इसके मित्र कम और शत्रु अधिक थे, ऐसे हालात में देश को आगे ले जाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया और साम्प्रदायिकता का विरोध करते हुए धर्मनिरपेक्षता पर बल दिया। 

पं. नेहरू ने भारत के पुनर्गठन के मार्ग में आने वाली प्रत्येक चुनौती का बुद्धिमतापूर्वक सामना किया। योजना आयोग का गठन किया और पंचवर्षीय योजनाओं का शुभारंभ किया। उनकी नीतियों के कारण ही देश में कृषि, उद्योग और लोकतंत्र का एक नया युग शुरू हुआ। उन्होंने उपनिवेशवाद की समाप्ति के लिए गुटनिरपेक्ष आंदोलन की भी स्थापना की।

उनका कहना था कि ‘‘हिन्दुस्तान एक खूबसूरत औरत नहीं है, नंगे किसान हिन्दुस्तान हैं। वे न तो खूबसूरत हैं और न देखने में अच्छे हैं क्योंकि गरीबी अच्छी चीज नहीं है, यह बुरी चीज है।’’

इस संबंध में भाजपा के पूर्व ङ्क्षथक टैंक के.एन. गोविन्दाचार्य की निम्र टिप्पणी विचारणीय है कि ‘‘हमारे देश में अभी राजनेताओं को राजनीति की गंभीरता का अहसास होना बाकी है। नेताओं की मलीन होती भाषा और आचरण राजनीति एवं समाज के लिए चिंताजनक है।’’

‘‘इसकी जड़ में एक ही कारण है, लक्ष्यभ्रष्टïता। इसी कारण कुछ जनप्रतिनिधियों की सोच प्रदूषित हो जाती है। राजनीति समाज के हित साधन का माध्यम है लेकिन जब इसकी जगह आर्थिक लाभ और सामाजिक रुतबा बढ़ाने की प्रेरणा मिलने लगे तो यह राजनेताओं की वाणी और व्यवहार में नजर आता है।’’

अनेक विशेषताओं और त्रुटियों के बावजूद पं. नेहरू देश की वैज्ञानिक प्रगति के प्रेरणास्रोत भी थे। अत: हम उनकी नीतियों पर तो बहस करें, उनके चरित्र के संबंध में लांछन लगाना कदापि उचित नहीं है।

ऐसे समय में जबकि भाजपा को संसद में अनेक महत्वपूर्ण विधेयक पारित करवाने हैं और राज्यसभा में उसे संख्याबल की कमी का सामना करना पड़ रहा है, ऐसे बयान भाजपा की दूसरे दलों के साथ दूरी ही बढ़ाएंगे जबकि स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विभिन्न मुद्दों पर दूसरे दलों के साथ बैठकें करके उनसे सहयोग की याचना कर रहे हैं। 

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