Edited By ,Updated: 28 Feb, 2015 08:32 AM
शास्त्रानुसार नवग्रहों में शनिदेव का स्थान सर्वाधिक महत्वपूर्ण है । शास्त्रों में शनिदेव को सूर्य का पुत्र माना गया है । इनकी माता का नाम छाया ....
शास्त्रानुसार नवग्रहों में शनिदेव का स्थान सर्वाधिक महत्वपूर्ण है । शास्त्रों में शनिदेव को सूर्य का पुत्र माना गया है । इनकी माता का नाम छाया है । सूर्य की पत्नी छाया के पुत्र होने के कारण इनका रंग काला है । मनु और यमराज शनि के भाई हैं तथा यमुनाजी इनकी बहन हैं । शनिदेव का शरीर इंद्रनीलमणि के समान है । इनका रंग श्यामवर्ण माना जाता है। शनि के मस्तक पर स्वर्णमुकुट शोभित रहता है एवं वे नीले वस्त्र धारण किए रहते हैं । शनिदेव का वाहन कौआं है । शनि की चार भुजाएं हैं । इनके एक हाथ में धनुष, एक हाथ में बाण, एक हाथ में त्रिशूल और एक हाथ में वरमुद्रा सुशोभित है।
शनिदेव का तेज करोड़ों सूर्य के समान बताया गया हैं । शनिदेव न्याय, श्रम व प्रजा के देवता हैं । यदि किसी व्यक्ति के कर्म पवित्र हैं तो शनि सुखी-समृद्धि जीवन प्रदान करते हैं । गरीब और असहाय लोगों पर शनि की विशेष कृपा रहती है । जो लोग गरीबों को परेशान करते हैं, उन्हें शनि के कोप का सामना करना पड़ता है । सूर्यपुत्र शनि को न्यायाधीश का पद प्राप्त है । इस वजह से शनि ही हमारे कर्मों का शुभ-अशुभ फल प्रदान करते हैं । जिस व्यक्ति के जैसे कर्म होते हैं, ठीक वैसे ही फल शनि प्रदान करते हैं । परंतु ज्योतिषियों द्वारा नवग्रहों में न्यायाधीश शनि की सर्वाधिक निंदा की गई है ।
ज्योतिषियों ने आमजन को शनिदेव से इतना भयभीत कर रखा है कि इनके नाम से ही लोग थर-थर कांपने लगते हैं । शनि की महादशा, साढ़ेसाती, ढैया सहित शनि के गोचर तक का महान भय सृजित किया गया है । क्या हकीकत में शनिदेव इतने क्रूर हैं कि बिना किसी वजह के वह लोगों को परेशान करते हैं ? वास्तविकता में शनिदेव मात्र दुष्ट व व्यभिचारी के लिए काल हैं, अन्यथा की स्थिति में शनिदेव कल्याणकारी सिद्ध होते हैं तथा अपनी विविध दशाओं में मनुष्य़ की उन्नति कराते हैं ।
इन्हीं शनि की साढ़ेसाती की दशा में अनेक लोगों को महान राजनेता बनते हुए देखा गया है, जबकि क्रूर पापात्माओं को ये जेल तक का रास्ता दिखा देते हैं । ऐसे में शनिदेव को हमेशा हानिकर कहकर बदनाम करना कहां तक उचित है? ज्योतिष के लिहाज़ से देखा जाए तो शनि की लग्न कुंडली में कैसी स्थिति है इस पर निर्भर करता है कि शनि की विभिन्न दशाएं आपके लिए फायदेमंद रहेंगी अथवा हानिप्रद । कुण्डली के अनिष्ट भावों में मौजूद (छः, आठ, बारह) शनि तथा त्रिषडायेश (तीन, छः, ग्यारह) शनि की स्थिति हानिकारक होती है तथा सामान्य उपायों से इससे मुक्ति संभव नहीं ।
ये जरूर है कि ऐसे में किसी डर-भय की बजाय शास्त्रों में वर्णित तरीके आजमाएं जाएं तो शनि का प्रकोप अवश्य कम होता है ।शनि उसे कम से कम हानि पहुंचाते हैं, जिनका चाल-चलन अच्छा होता है । जो जातक मांस-मदिरा परस्त्री-परपुरुष गमन से दूर रहते हैं साथ ही उच्च नैतिक आचरण का पालन करते हैं, उन्हें भी शनि नुकसान नहीं पहुंचाते ।
आचार्य कमल नंदलाल
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