नेहरू व इंदिरा ने भी लिया था ‘राजनीति से मुक्ति’ का फैसला

Edited By ,Updated: 28 Feb, 2015 03:19 AM

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राजनीति से कुछ समय के लिए छुट्टी लेने के राहुल गांधी के निर्णय से उनके दो पूर्वजों के ऐसे ही उदाहरणों की यादें ताजा हो गई हैं। फर्क केवल इतना है कि जहां उनके पडऩाना जवाहर लाल नेहरू और ...

(रशीद किदवई) राजनीति से कुछ समय के लिए छुट्टी लेने के राहुल गांधी के निर्णय से उनके दो पूर्वजों के ऐसे ही उदाहरणों की यादें ताजा हो गई हैं। फर्क केवल इतना है कि जहां उनके पडऩाना जवाहर लाल नेहरू और दादी इंदिरा गांधी ने राजनीति से पूरी तरह किनारा करने का फैसला किया था, वहीं राहुल केवल कुछ समय के लिए छुट्टी ले रहे हैं।

नेहरू और इंदिरा के फैसलों से पार्टी में हड़कम्प मच गया था और उसने उन्हें अपने फैसले बदलने पर राजी कर लिया। दोनों ने ही बाद में प्रधानमंत्री के रूप में इतिहास की धारा ही बदल दी। राहुल के लिए ऐसा पराक्रम कर पाना फिलहाल बहुत भारी चुनौती दिखाई देता है।

एक और महत्वपूर्ण फर्क यह है कि जहां नेहरू और इंदिरा दोनों ने उस समय राजनीति से संन्यास लेने का फैसला लिया था, जब वह पूरी तरह शक्तिशाली थे, जबकि राहुल की स्थिति उनके सर्वथा विपरीत है। राहुल की काबिलियत और कार्यशैली पर शृंखलाबद्ध चुनावी पराजयों के बाद कांग्रेस के अंदर और बाहर ढेरों सवाल उठाए जा रहे हैं।

नेहरू ने राजनीति से रिटायर होने के लिए कांग्रेस कार्यकारिणी और पार्टी के संसदीय बोर्ड से दो बार अनुमति मांगी थी। 1950 में जब वल्लभभाई पटेल से वरदहस्त प्राप्त पुरुषोत्तम दास टंडन ने पार्टी अध्यक्ष के चुनाव में नेहरू के चहेते आचार्य कृपलानी को पराजित कर दिया, तो नेहरू काफी परेशान थे। नेहरू द्वारा राजनीति से संन्यास लेने की धमकी के कुछ माह बाद टंडन जी को त्यागपत्र देना पड़ा।

1958 में नेहरू ने एक बार फिर राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद को बताया कि वह राजनीति के दबावों से स्वतंत्र होकर पुस्तकों और दोस्तों के बीच शांत जीवन व्यतीत करना चाहते हैं और देश के विभिन्न तीर्थ स्थलों की सहज यात्रा करना चाहते हैं। एक बार फिर पार्टी ने उन्हें इस विचार का परित्याग करने के लिए मना लिया। इंदिरा भी जब नेहरू के प्रधानमंत्री होते हुए प्रधानमंत्री आवास में सरकारी तौर पर आने वाले लोगों का आतिथ्य करती थीं तो दो बार उन्होंने ‘राजनीति से मुक्ति पाने’ का राग अलापा था। उन्होंने अपनी सहेली अमरीकन फोटोग्राफर तथा लेखिका डोरोथी नार्मन को 1958 में पत्र लिखा था कि वह खुद को बुरी तरह फंसा हुआ और अव्यवस्थित पा रही हैं। उन्होंने लिखा, ‘‘जब मैं छोटी बच्ची थी, तभी से मुझे ऐसा लगता है कि कोई अदृश्य शक्ति मुझे जबरदस्ती एक विशेष दिशा में आगे बढ़ा रही है, जैसे मैंने कोई ऋण अदा करना हो। लेकिन अचानक ही ऐसे लगने लगता है कि ऋण का भुगतान हो गया है। कुछ भी हो, मेरे अंदर ऐसी जबरदस्त भावना पैदा होती है कि सब कुछ छोड़ दूं और किसी दूरस्थ पर्वतीय स्थल पर जाकर एकांत में रहूं।  मुझे इस बात की कोई चिन्ता न हो कि मुझे दोबारा भारी काम का बोझ वहन करना है।’’

लेकिन यह पत्र लिखने के कुछ ही महीने बाद इंदिरा गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष बन कर पार्टी के भी कई लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया। नेहरू की मृत्यु के बाद आलोचकों ने आरोप लगाया कि उन्होंने अपने बाद अपनी बेटी को प्रधानमंत्री के पद पर आसीन करने के लिए पहले से ही प्रयास जारी रखे थे। फिर भी कांग्रेस के अंदर बहुत बड़े वर्ग का यह मानना था कि इंदिरा ने यह पद अपने गुणों के आधार पर अर्जित किया था।

इंदिरा ने केरल के संकट का हल निकाला था और भाषाई टकराव को समाप्त करने के लिए महाराष्ट्र और गुजरात के दो अलग-अलग राज्यों के सृजन की भी सिफारिश की थी। 1960 में जब कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में उनका कार्यकाल समाप्त हुआ तो कांग्रेस कार्यकारिणी ने उन्हेें दोबारा चुनाव लडऩे का अनुरोध किया जो उन्होंने ठुकरा दिया।

1963 में जब ये अटकलें जोरों पर थीं कि नेहरू के बाद इंदिरा गांधी ही प्रधानमंत्री बनेंगी, तो वयोवृद्ध नेहरू को इससे बहुत धक्का लगा। उस समय एक बार फिर इंदिरा के दिमाग में राजनीति से मुक्ति पाने का विचार छा गया। उन्होंने नार्मन को पत्र लिखा कि उनकी सबसे बड़ी इच्छा यह है कि लंदन में जाकर नए सिरे से जीवन शुरू करूं। उन्होंने तो उस घर को भी चिन्हित कर दिया था जहां उनकी रहने की योजना थी। उनकी यह भी योजना थी कि भारतीय विद्याॢथयों को इस बंगले के कुछ कमरे किराए पर देकर वह अपना खर्चा चला लेंगी। लेकिन ऐसा होने की नौबत ही नहीं आई और अगले 2 दशकों तक इंदिरा भारतीय राजनीति के आकाश पर छाई रहीं।

परन्तु राहुल यदि पार्टी उपाध्यक्ष हैं तो अपनी कारगुजारी के कारण नहीं बल्कि वंशावली के कारण। निजी रूप में कांग्रेस के बहुत से नेता आज यही चाहते हैं कि काश! वह राजनीति को अलविदा कहें और अपनी बहन प्रियंका वाड्रा को बेंगलूर में होने जा रहे पार्टी के आगामी सत्र में बागडोर सौंप दें। कुछ लोगों का यह मानना है कि राजनीति से अंशकालिक अवकाश लेने के राहुल के फैसले का चुनावी पराजयों से कुछ लेना-देना नहीं, बल्कि वह अपने निजी जीवन की कुछ समस्याएं हल करना चाहते हैं। कुछ अन्य लोगों का मानना है कि ऐसा करके राहुल अपने कदम के राजनीतिक प्रभाव का जायजा ले रहे हैं।

पार्टी के एक प्रभावशाली गुट ने हाल ही में सोनिया गांधी से मांग की थी कि वह कांग्रेस अध्यक्षा के रूप में  काम करना जारी रखें। जबकि दिग्विजय सिंह जैसे कुछ लोग यह चाहते हैं कि उनके स्थान पर राहुल पार्टी की कमान संभालें। 1998 में कांग्रेस अध्यक्ष बनने वाली सोनिया गांधी आज तक इस पद पर बनी हुई हैं और कांग्रेस के इतिहास में सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष रहने का कीॢतमान उन्हीं का है। (टै.)

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