महादेव की जटाओं से पैदा हुआ पहला रुद्रावतार

Edited By ,Updated: 02 Mar, 2015 08:35 AM

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शिव महापुराण में महादेव के अनेक अवतारों का वर्णन है, परंतु विरले ही इन अवतारों के बारे में जानते हैं । शास्त्र अनुसार महादेव के 19 ...

शिव महापुराण में महादेव के अनेक अवतारों का वर्णन है, परंतु विरले ही इन अवतारों के बारे में जानते हैं । शास्त्र अनुसार महादेव के 19 अवतार हुए थे । इस लेख के माध्यम से हम अपने पाठकों को बता रहे हैं भगवान शंकर के पहले रुद्रावतार वीरभद्र के बारे में ।शास्त्रानुसार महादेव का पहला वीरभद्रावतार तब हुआ था जब ब्रह्मा के पुत्र दक्षप्रजापति ने हरिद्वार के कनखल क्षेत्र में महायज्ञ का आयोजन किया लेकिन अपने दामाद भगवान शंकर को उसमें नहीं बुलाया ।

जबकि दक्ष की पुत्री सती का विवाह महादेव से हुआ था। यज्ञ की बात ज्ञात होने पर सती ने भी वहां चलने को कहा लेकिन महादेव ने बिना आमंत्रण के जाने से मना कर दिया । फिर भी सती जिद कर अकेली ही वहां चली गई । अपने पिता के घर जब उन्होंने महादेव और स्वयं का अपमान अनुभव किया तो उन्हें क्रोध भी हुआ और उन्होंने यज्ञवेदी में कूदकर अपनी देह त्याग दी । जब महादेव को यह पता हुआ तो उन्होंने क्रोध में अपने सिर से एक जटा उखाड़ी और उसे रोषपूर्वक पर्वत के ऊपर पटक दिया। उस जटा के पूर्वभाग से महाभंयकर वीरभद्र प्रगट हुए । 

शास्त्रों श्रीमद् भागवत में भी इस कथा का उल्लेख आता है । भागवत अनुसार सती के प्राण त्यागने से दु:खी भगवान शंकर ने उग्र रूप धारण कर क्रोध में अपने होंठ चबाते हुए अपनी एक जटा उखाड़ ली, जो बिजली और आग की लपट के समान दीप्त हो रही थी । सहसा खड़े होकर उन्होंने गंभीर अठ्ठाहस के साथ जटा को पृथ्वी पर पटक दिया। इसी से महाभयंकर वीरभद्र प्रकट हुए । महादेव ने वीरभद्र को दक्ष प्रजापति के यज्ञ का विध्वंस करने और विद्रोहियों के अहंकार का नाश करने की आज्ञा दी । महादेव का आदेश सुन वीरभद्र क्रोध से कांप उठे । वे कनखल क्षेत्र जाकर उछ्ल-उछलकर यज्ञ का विध्वंस करने लगे ।

यज्ञमंडप में भगदड़ मच गई । देवता और ॠषि-मुनि भाग खड़े हुए । हालांकि दक्ष को परास्त करना बहुत कठिन काम था । लेकिन वीरभद्र ने इस काम को भी कर दिखाया । महादेव के वीरभद्र अवतार ने दक्ष के यज्ञ का विध्वंस कर दिया और देखते ही देखते उन्होंने दक्ष का मस्तक काटकर फेंक देया तथा उसे मृत्युदंड दिया । धर्मग्रंथों में वीरों के दो वर्गों का स्पष्टीकरण आता है। पहला भद्र वीर व दूसरा अभद्र वीर । भद्र वीर का अर्थ है सभ्यता और अनुशासन का पालन करने वाला सभ्य वीर वर्ग तथा दूसरा असभ्यता और निर्लज्जता का पालन करने वाला असभ्य अभद्र वीर वर्ग है ।

सभ्य वीरों का काम होता है हमेशा धर्म के पथ पर चलना तथा नि:सहायों की सहायता करना । वहीं असभ्य वीर वर्ग सदैव अधर्म के मार्ग पर चलते हैं तथा नि:शक्तों को परेशान करते हैं । भद्र का अर्थ होता है कल्याणकारी। महादेव की जटाओं से पैदा हुआ पहले रुद्रावतार वीरभद्र भद्रता, वीरता और ईश्वर भक्ति के प्रतीक है ।

- आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल kamal.nandlal@gmail.com

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