..जब बेटी के लिए मुफ्ती ने आतंकवादियों के आगे टेके थे घुटने!

Edited By ,Updated: 01 Mar, 2015 12:43 PM

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जम्मू-कश्मीर के नए मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद अटल इरादों और बड़े तूफानों में भी अपनी कश्ती को पार लगाने की कुवत रखने के लिए जाने जाते हैं

जम्मू: जम्मू-कश्मीर के नए मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद अटल इरादों और बड़े तूफानों में भी अपनी कश्ती को पार लगाने की कुवत रखने के लिए जाने जाते हैं जिनकी आंखों में कश्मीर की राजनीति के दशकों के अनुभव की रौशनी है। अब वह भाजपा के साथ नाजुक गठबंधन को आकार देते हुए दूसरी बार जम्मू-कश्मीर की कमान संभालने जा रहे हैं। 

79 वर्षीय सईद को मृदुभाषी और सौम्य राजनेता के रूप में देखा जाता है लेकिन देश के पहले मुस्लिम गृह मंत्री की छवि को उस समय आघात लगा था जब वी पी सिंह की अगुवाई वाली उनकी सरकार ने उनकी तीन बेटियों में से एक रूबिया की रिहाई के बदले में पांच लोगों को छोडऩे की आतंकवादियों की मांग के आगे घुटने टेक दिए थे। रूबिया की रिहाई के बदले में आतंकवादियों की रिहाई के संवेदनशील राज्य जम्मू-कश्मीर की राजनीति में दूरगामी प्रभाव पड़े। 

दो दिसंबर 1989 को राष्ट्रीय मोर्चे की सरकार के गठन के पांच दिन के बाद ही रूबिया का अपहरण कर लिया गया था। अक्सर अपनी राजनीतिक निष्ठाओं को बदलते रहने वाले सईद उस समय केंद्र में गृह मंत्री थे जब घाटी में आतंकवाद ने सिर उठाना शुरू किया था और उसी समय 1990 में वादियों से कश्मीरी पंडितों के विस्थापन की कुख्यात कहानी शुरू हुई। 

अपनी बेटी महबूबा मुफ्ती के साथ 1999 में खुद की राजनीतिक पार्टी ‘जम्मू कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट (जेकेपीडीपी) का गठन करने से पूर्व सईद ने अपने राजनीतिक कैरियर का लंबा समय कांग्रेस में बिताया और कुछ समय वह वीपी सिंह के तहत जन मोर्चे में भी रहे। 1950 के दशक में वह जी एम सादिक की कमान में डेमोक्रेटिक नेशनल कांफ्रेंस के सदस्य भी रहे। 

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