स्वाइन फ्लू से डरें नहीं, सावधानी बरतें : एस.एम.ओ.

Edited By ,Updated: 02 Mar, 2015 05:39 AM

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स्वाइन फ्लू अपना दायरा बढ़ा रहा है। इससे डरने की बजाय जरूरत है सतर्क होने की। इसके लक्षण पहचानने की और सावधानी बरतने की।

शाहाबाद मारकंडा (अरुण): स्वाइन फ्लू अपना दायरा बढ़ा रहा है। इससे डरने की बजाय जरूरत है सतर्क होने की। इसके लक्षण पहचानने की और सावधानी बरतने की। स्वाइन फ्लू सांस से जुड़ा रोग है। सरकारी अस्पताल के एस.एम.ओ. डा. रविंद्र शर्मा ने बताया कि यह इंफ्लूएंजा (एच 1-एन 1) वायरस से फैलता है। इस बार इस वायरस ने खुद को बदल लिया है। स्वाइन फ्लू के लक्षण हैं बुखार, नाक बहना, खांसी, गले में खराश, सांस लेने में कठिनाई, जोड़ों व सिर में दर्द, थकावट और सर्दी लगती है, दस्त व उल्टी लग सकती है, थूक के साथ खून आ सकता है, बीमारी बढऩे पर शरीर का रंग काला पडऩे लगता है।

बच्चे-बुजुर्गों का रखें ख्याल
स्वाइन फ्लू का वायरस किसी भी उम्र के व्यक्ति को चपेट में ले सकता है लेकिन 65 साल से ज्यादा के बुजुर्ग, 5 साल से कम के बच्चे, गर्भवती महिलाएं और लम्बी बीमारी से ग्रस्त लोग इससे अधिक प्रभावित हो सकते हैं क्योंकि उनकी प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। जिन लोगों को स्वाइन फ्लू हो भी जाता है, वे इलाज के जरिए 7 दिन में ठीक हो जाते हैं। कुछ लोगों को तो अस्पताल में भर्ती भी नहीं होना पड़ता।

ऐसे फैलता है वायरस
स्वाइन फ्लू का वायरस हवा के जरिए या छूने से दूसरे व्यक्ति के शरीर में मुंह या नाक के रास्ते प्रवेश कर जाता है। संक्रमित व्यक्ति की इस्तेमाल की किसी भी चीज को छूने से यह फैल सकता है जैसे फोन, रिमोट कंट्रोल, की-बोर्ड, बिस्तर और दरवाजे का हैंडल।

बीमारी और इलाज की 3 श्रेणियां
वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी डा. रविंद्र शर्मा के अनुसार स्क्रीनिंग के बाद स्वाइन फ्लू के मरीजों को 3 श्रेणियों में रखा जाता है। पहली श्रेणी के मरीज को हल्का बुखार, आंखों में जलन और बदन दर्द रहता है। ऐसे मरीज को परामर्श देकर, बचाव के साधन बताकर टैमीफ्लू नामक कैप्सूल का कोर्स करवाया जाता है जो 3 से 5 दिन का होता है। दूसरी श्रेणी के मरीजों को तेज बुखार, छाती में दर्द, जुकाम, खांसी और बहुत कमजोरी होती है। उन्हें टैमीफ्लू कैप्सूल के अलावा परहेज बताए जाते हैं। परिवार के लोगों से अलग रहने को कहा जाता है। तीसरी श्रेणी वह होती है जब मरीज को सांस लेने में तकलीफ होने लगे। उसे खांसी, जुकाम व तेज बुखार हो और भूख न लग रही हो। उसका रंग काला पडऩे लगा हो। ऐसे मरीज के विशेष वार्ड में भर्ती किया जाता है। उसके सम्पर्क में आने वाले हर व्यक्ति की स्क्रीनिंग की जाती है।

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