इस बेटी के जज्बे को सलाम, असंभव को संभव करने में जुटी

Edited By ,Updated: 04 Mar, 2015 02:00 AM

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दिल में हौंसला और मजबूत इरादे हो तो किसी भी मंजिल तक पहुंचना कठिन नहीं। एक कहावत भी है कि पंखों से उड़ान नहीं होती, बल्कि हौंसलों से उड़ान होती है

छत्तीसगढ़ . दिल में हौंसला और मजबूत इरादे हो तो किसी भी मंजिल तक पहुंचना कठिन नहीं। एक कहावत भी है कि पंखों से उड़ान नहीं होती, बल्कि हौंसलों से उड़ान होती है। ऐसा ही सच कर दिखाया है कोरिया जिला मुख्यालय से सटे ग्राम पंचायत दुधानियाकला में रहनी वाली विकलांग 10 वर्षीय ममता ने। बैकठपुर से सटे दुधनिया गांव में रहने वाली ममता ने 9 साल पहले महेंद्रनाथ के घर जन्म लिया था। ममता बचपन से ही अक्षम थी। लेकिन ममता के माता-पिता ने इसे भगवान का दिया उपहार समझा तथा उसका पालन पोषण सामान्य बच्चों की तरह कि या। ममता अपने दोनों हाथ से काम नहीं कर सकती है।   
 
ममता के पिता महेंद्र नाथ का कहना है कि उसने अपनी बेटी के इलाज के लिए बहुत से डॉक्टरों को दिखाया, लेकिन उसके हाथ ठीक नहीं हो पाए।  पिता ने बताया कि वह शुरू से ही पढऩे लिखने में बहुत रूचि लेती थी। सामान्य बच्चों की तरह जब उसका खेलने का मन होता था तो वह पढ़ाई में मन लगा लेती है। इसे देखते हुए ममता के पिता ने उसे गांव के एक स्कूल में दाखिल करवा दिया। हालांकि ममता को शुरू में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। क्यांकि वह अपने दोनों हाथ से काम नहीं कर सकती थी। इसके बाद ममता ने हिम्मत नहीं हारी तथा अपने दोनों पैरो को ही अपने हाथ बना लिया।  इसके बाद चाहे लिखने का काम हो या चित्रकला का ममता अपने पैरो से ही काम करती है। खाने के लिए भी ममता अपने पैरो को इस्तेमाल करती है। ममता का सपना है कि वह पढ़ लिख कर टीचर बनना चाहती है। 

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