अब सबसिडी की आड़ में फूलने लगा घरेलू गैस की कालाबाजारी का धंधा

Edited By ,Updated: 04 Mar, 2015 03:49 AM

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घरेलू गैस सिलैंडर पर शुरू की गई डी.बी.टी.एल. (डायरैक्ट बैनीफिट ट्रांसफर योजना) के बाद ज्यादातर गैस एजैंसियों के कारिंदों की नजर ऐसे खपतकारों को तलाशने में लग गई है जिनके ...

लुधियाना (खुराना): घरेलू गैस सिलैंडर पर शुरू की गई डी.बी.टी.एल. (डायरैक्ट बैनीफिट ट्रांसफर योजना) के बाद ज्यादातर गैस एजैंसियों के कारिंदों की नजर ऐसे खपतकारों को तलाशने में लग गई है जिनके रसोई घरों में गैस की खपत नाममात्र हो रही है ताकि इन उपभोक्ताओं से सांठ-गांठ कर यह कारिंदे अपनी ऊपर की कमाई का जुगाड़ कर सकें। 
 
बताया जा रहा है कि घरेलू गैस सिलैंडरों की कालाबाजारी की गेंद अब कुछ एजैंसी मालिक के हाथों से लुढ़क कर डिलीवरी मैन के पाले में आ गई है। अब गैस की कालाबाजारी को अंजाम देने के लिए एजैंसियों के कारिंदे उन उपभोक्ताओं को अपना हमराज बनाने में जुट चुके  हैं जिनके पूरे वर्ष में 12 से कम सिलैंडर घरों में इस्तेमाल होते हैं। 
 
कैसे खेला जा रहा है गौरखधंधे का यह खेल
 
अब अगर बात की जाए काली कमाई के लिए कारिंदों द्वारा किए गए इस जुगाड़ की तो बताया जा रहा है कि जिन परिवारों के  रसोई घरों में घरेलू सिलैंडरों की खपत पूरे साल 5 या 6 की रहती है, उन्हें यह कारिंदे अपना मैथेमैटिक प्लान पढ़ाते हुए अपने गेड़े में कुछ यूं लेते हैं कि अगर सरकार आपको पूरे वर्ष में 12 सिलैंडरों पर सबसिडी दे रही है तो आप 6 सिलैंडरों की सबसिडी व्यर्थ क्यों कर रहे हैं।
 
जब खपतकार कारिंदों से यह कहते हैं कि हमारा इतने ही सिलैंडर से गुजारा हो जाता है तो शुरू होता है प्लान का दूसरा अध्याय जिसमें कारिंदे उपभोक्ता को बताते हैं कि अन्य रहते सिलैंडरों की बुकिंग करवाने पर सबसिडी की राशि आपके बैंक अकाऊंट में सरकार द्वारा ट्रांसफर कर दी जाएगी जबकि बाद में कागजों में आपको डिलीवरी मिल जाएगी। 
 
इस तरह से वह सिलैंडर हम किसी अन्य जरूरतमंद को दे देंगे और ऐसे में आपको फायदा होगा कि साल में 5-6 बार व्यर्थ जाने वाली सबसिडी की राशि 1200 से 1500 रुपए आपके बैंक अकाऊंट में ट्रांसफर हो सकेंगे।
 
कम्पनियां तैयार कर रही हैं ऐसे लोगों से निपटने की रणनीति
 
इस संबंध मे बातचीत करते हुए इंडेन गैस कम्पनी के एक आलाधिकारी ने बताया कि ऐसी शिकायतें हमें लगातार मिल रही हैं कि कुछ एजैंसी के कारिंदों ने कालाबाजारी के लिए अपना नैटवर्क मार्कीट में फैला रखा है। 
 
उन्होंने कहा उनसे निपटने कि लिए कम्पनियों द्वारा नए सॉफ्टवेयर तैयार किए गए हैं जिनसे यह जानकारी आसानी से मिल जाएगी कि किस खपतकार को कितने सिलैंडरों की पूरे वर्ष में जरूरत पड़ी और अन्य सिलैंडर कब और कहां गए। 

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