नशा करने में लड़कियां भी किसी से कम नहीं

Edited By ,Updated: 04 Mar, 2015 07:33 AM

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गेहूं व कपास उत्पादन में पूरे प्रदेश में अव्वल और रक्तदान एवं देहदान के क्षेत्रों में रिकॉर्डधारी सिरसा जिले की उजली तस्वीर का धुंधला पहलू है मादक पदार्थों की....

युवाओं के प्राण छीन रहा नशा
सिरसा : गेहूं व कपास उत्पादन में पूरे प्रदेश में अव्वल और रक्तदान एवं देहदान के क्षेत्रों में रिकॉर्डधारी सिरसा जिले की उजली तस्वीर का धुंधला पहलू है मादक पदार्थों की तस्करी और बड़ी संख्या में नौजवानों का नशे की गिरफ्त में होना। औसतन साल भर में 35 हत्याओं के मामले जिले में सामने आते हैं लेकिन उससे बड़ी चुनौती पुलिस के लिए मादक पदार्थों की तस्करी की रहती है। फिलहाल जिले में नए पुलिस कप्तान की नियुक्ति हुई है। उन्होंने कार्यभार संभालने के बाद इस दिशा में पहल भी की है। अलबत्ता जितने भी पुलिस कप्तान आए हैं, उनमें से वी. कामराज और विकास अरोड़ा को छोड़कर कोई भी अभी तक मादक पदार्थों की तस्करी पर अंकुश नहीं लगा सके।

जिले में नशा कितने पैर पसार चुका है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2008 से 2013 तक जिले में मादक पदार्थ अधिनियम के अंतर्गत 1400 से अधिक मामले दर्ज हुए हैं। जुआ अधिनियम के मामलों के बाद यह सबसे अधिक संख्या है। पिछले 5 सालों में पुलिस ने तस्करी के मामले में 100 से अधिक महिलाओं को पकड़ा है। जिले के कालांवाली, रोड़ी, डबवाली के इलाके में अफीम, भुक्की व स्मैक के नशे ने तबाही मचा दी है। 80 से अधिक गांव नशे की जकडऩ में हैं। मौत का कारोबार कथित शासकीय संरक्षण के चलते कुछेक लोगों के लिए मुनाफे का गोरखधंधा बन गया है।

आलम यह है कि गांवों में नशा करने वाले युवकों की शादियां टूट रही हैं, जमीनें बिक रही हैं और नशे की पूॢत न होने के चलते हताश व परेशान हुए युवा आत्महत्या कर रहे हैं। दरअसल सिरसा के कोई 80 के करीब गांव चूरापोस्त, नशीली दवाइयों व अफीम जैसे नशों की गिरफ्त में हैं। ग्रामीण तबके में मजदूर वर्ग, किशोर व यहां तक की महिलाएं भी नशे की गिरफ्त में हैं। अकेले कालांवाली के नशा मुक्तिकेंद्र में जो अब बंद कर दिया गया है, में पिछले कुछ अरसे में करीब 12 महिलाएं इलाज के लिए आ चुकी हैं। यह महिलाएं भुक्की जैसा नशा करती हैं। पिछले 2004 से 2012 तक ही इस केंद्र में नशे से ग्रस्त करीब 2500 से अधिक लोगों का इलाज किया गया। इस आंकड़े से जाहिर होता है कि यह इलाका नशे में किस तरह से जकड़ा हुआ है।

दरअसल पुलिस के ढुलमुल रवैये व शासकीय उदासीनता के चलते नशे का धंधा तस्करों के लिए मुनाफे का गोरखधंधा बना हुआ है। पंजाब व राजस्थान की सीमा से सटा सिरसा मौत के कारोबारियों के लिए शुष्क बंदरगाह बना हुआ है। पुलिस की ही रिपोर्ट के मुताबिक जिले के करीब 83 गांव नशे की गिरफ्त में हैं। यहां हर वर्ष बड़ी तादाद में मौत का सामान तस्करी के जरिए राजस्थान से पंजाब पहुंचाया जाता है। आंकड़ों की गहरी पैठ भी मौत के फलते-फूलते कारोबार पर मोहर लगाती है। वर्ष 2006 से 2010 की अवधि तक की जिले में मादक पदार्थ अधिनियम के अंतर्गत 1700 से अधिक मामले दर्ज हो चुके हैं।

तस्करों पर शिकंजा कसने में पुलिस की ढुलमुल कार्यशैली भी गाहे-बगाहे उजागर होती है। खास बात है कि नशे का यह कारोबार मुनाफे का गोरखधंधा बन गया है। पंजाब केसरी ने कुछ ऐसे तथ्य भी जुटाए जिसमें नशे के इस कारोबार पर राजनेताओं की भी छत्रछाया उजागर हुई। कथित शासकीय संरक्षण के चलते नशे के इस कारोबार ने कालांवाली, रोड़ी व डबवाली जैसे समृद्ध इलाकों में तबाही मचा दी है। नशा करने का यह सिलसिला 14 वर्ष की अल्पायु में ही शुरू हो जाता है। इसकी वजह सिरसा अफीम तस्करों के लिए एक सुरक्षित बंदरगाह बनता जा रहा है।

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