शादी के लिए कुंवारे युवक आज भी निभाते हैं ये रस्म

Edited By ,Updated: 05 Mar, 2015 10:54 AM

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भारतीय पंचाग के अनुसार जैसे ही फागण का महीना शुरू होता है चारों और मस्ती-सी छा जाती है। फागण का महीना शुरू होते ही गांव के गली मोहल्लों में....

मंडी आदमपुर (भारद्वाज): भारतीय पंचाग के अनुसार जैसे ही फागण का महीना शुरू होता है चारों और मस्ती-सी छा जाती है। फागण का महीना शुरू होते ही गांव के गली मोहल्लों में होली के गीत कानों में सुनाई पडऩे लग जाते हैं। महिलाएं इन होली के गीतों पर जमकर झूमती हुई नजर आती हैं। समय के साथ होली को मनाने के तौर तरीकों में हमें बदलाव सहज ही देखने को मिला रहा है। मगर आज भी एक परंपरा जिंदा है और वह है होलिका दहन पर होलिका की लपटों से प्रह्लाद रूपी हरी डाल को निकालने की।

इस पुरातन परम्परा को आज भी क्षेत्र के युवाओं द्वारा बखूबी निभाया जा रहा है, वह भी विशेषत: कुंवारे युवकों द्वारा। कम होने की बजाय इस विरासत को सम्भालने हर वर्ष सैंकड़ों कुंवारे युवकों की एक फौज तैयार हो रही है। होलिका दहन के समय उसके चारों ओर कुंवारे युवकों का हुजूम इस कशम-कश में रहता है कि कौन प्रह्लाद रूपी हरी डाल को आग की पलटों में से सुरक्षित बाहर निकाल कर लाएगा। भक्त प्रहलाद तो शायद इन कुंवारों की न सुने लेकिन यह परंपरा हमारा ध्यान प्रदेश में गिरते लिंगानुपात की और जरूर आकर्षित करती है। अगर हमने कन्या भू्रण हत्या के कलंक को समाज से नहीं मिटाया तो शायद होलिका से प्रह्लाद को बाहर निकालने वाले युवकों की संख्या अगले 2-4 वर्षों में 4 गुना होती नजर आएगी और कितने ही ऐेसे युवा होंगे जिन्हें अपना जीवन साथी नहीं मिल पाएगा।

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