ऐतिहासिक रहस्य: पौराणिक शास्त्रों से जानें होली की कथाएं

Edited By ,Updated: 05 Mar, 2015 10:15 AM

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होली भारत के सबसे पुराने पर्वों में से है। यह कितना पुराना है इसके विषय में ठीक जानकारी नहीं है परंतु पौराणिक शास्त्रों में अनेक कथाएं मिलती हैं और

होली भारत के सबसे पुराने पर्वों में से है। यह कितना पुराना है इसके विषय में ठीक जानकारी नहीं है परंतु पौराणिक शास्त्रों में अनेक कथाएं मिलती हैं और हर कथा में एक समानता है कि असत्य पर सत्य की विजय और दुराचार पर सदाचार की विजय और विजय को उत्सव मनाने की बात कही गई है।

रंगोत्सव का शास्त्रीय आधारभूत: वायुमंडल में रंगों, पानी, कीचड़ अबीर व गुलाल का गुबार उड़ाकर हम देवताओं को इन रंगों के माध्यम से बुलाते हैं, ऐसा भाव रखकर हम देवताओं का स्वागत करते हैं। देवता के चरणों में नतमस्तक होना ही धूलिवंदन का उद्देश्य है। इस संदर्भ में भविष्य पुराण में ढुण्ढा नामक राक्षसी की पौराणिक कथा आती है। ढुण्ढा नामक राक्षसी गांव-गाव में घुसकर बालकों को कष्ट देती थी। उन्हें रोग व व्याधि से ग्रस्त करती थी। उसे गांव से भगाने के लिए लोगों ने अनेक प्रयास किए परंतु वे सफल नहीं हुए। अंत में लोगों ने उसे अपमानित और गालियां देकर  गांव से भगा दिया। 

उत्तर भारत में ढुण्ढा राक्षसी की बजाय होली की रात पूतना को जलाया जाता है। होली के पूर्व तीन दिन भगवान कृष्ण के बाल रूप को पालने में सुलाकर उनका उत्सव मनाते हैं। चैत्र पूर्णिमा पर पूतना का दहन करते हैं।

मदन का दहन: दक्षिण भारत के लोग कामदेव से विजय के प्रतीक के रूप में होलिका रंगोत्सव मनाते हैं। शास्त्रानुसार भगवान शंकर तपाचरण में मग्न थे। वे समाधिस्थ थे। उस समय मदन अर्थात कामदेव ने उनके अंत: करण में प्रवेश किया। उन्हें कौन चंचल कर रहा है, यह देखने हेतु शंकर ने नेत्र खोले और मदन को देखते क्षणभर में भस्मसात कर दिया अर्थात कामदेव को भस्म कर धुल में मिला दिया। होली अर्थात मदन का दहन। मदन अर्थात "काम" पर विजय प्राप्त करने की क्षमता होली में है; इसी भाव को लेकर होली का उत्सव मनाया जाता है।  

आचार्य कमल नंदलाल

ईमेल kamal.nandlal@gmail.com 

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