फिक्स कोटे में सस्ती तो ओपन कोटे में कैसे महंगी हो जाती है शराब

Edited By ,Updated: 06 Mar, 2015 02:57 AM

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पंजाब में आबकारी विभाग में डिस्टीलरियों तथा अधिकारियों के बीच जो सांठगांठ चल रही है, उसके कारण राज्य के शराब ठेकेदारों की जेब से तो पैसा निकल रहा है लेकिन ...

जालंधर (पाहवा): पंजाब में आबकारी विभाग में डिस्टीलरियों तथा अधिकारियों के बीच जो सांठगांठ चल रही है, उसके कारण राज्य के शराब ठेकेदारों की जेब से तो पैसा निकल रहा है लेकिन वह राज्य सरकार के खजाने में न जाकर डिस्टीलरी मालिकों की ही जेब में जा रहा है। यह करोड़ों रुपए किस कारण से डिस्टीलरी मालिकों के पास भेजे जा रहे हैं, इस बात को लेकर राज्य का आबकारी विभाग निशाने पर आ गया है। 

आबकारी विभाग ने जो शराब के दाम फिक्स किए हैं, उनमें अन्य राज्यों के दामों से 30 से 60 रुपए का अंतर है लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती। राज्य के ही फिक्स व ओपन कोटे में भी रेट में भारी अंतर है जबकि ब्रांड, शराब व क्वांटिटी एक जैसी है। 
 
आंकड़ों के खेल ने खोली पोल
 
आबकारी विभाग से मिले आंकड़ों के अनुसार पंजाब में 50 डिग्री शराब ओपन कोटे में अगर क्वार्टर का रेट 361.99 रुपए है तो फिक्स कोटे में उसका दाम 317.52 रुपए है। वही शराब, वही ब्रांड लेकिन करीब 45 रुपए प्रति पेटी का साफ अंतर दिख रहा है। 
 
इसी प्रकार फिक्स कोटे में हॉफ का दाम 357.22 रुपए है, वहीं ओपन कोटे में यह दाम 407.64 रुपए हो जाता है। इसमें भी करीब 50 रुपए का अंतर है। जबकि निप जिसे बोतल भी कहा जाता है, में फिक्स कोटे में 421.49 रुपए अंकित है, जबकि ओपन कोटे में वही दाम 481.57 रुपए है जिसमें करीब 60 रुपए का अंतर है। ओपन तथा फिक्स कोटे में दाम में अंतर क्यों रखा गया है, इस बात को लेकर खुद विभाग तथा डिस्टीलरी मालिक ही शिकंजे में आते हैं। 
 
अगर डिस्टीलरी ने अपनी मर्जी से यह दाम बढ़ाए हैं तो विभाग के अधिकारी उन पर कार्रवाई क्यों नहीं करते तथा अगर विभाग के अधिकारियों की शह पर यह काम हो रहा है तो राज्य की सरकार हाथ पर हाथ रख कर इस गोलमाल को अंजाम दिया जाना क्यों देख रही है?
 
कोई खास अंतर नहीं है फिक्स व ओपन कोटे में
 
ओपन तथा फिक्स कोटे में अगर सरकारी तौर पर देखा जाए तो कोई खास अंतर नहीं है। आबकारी नीति के अनुसार फिक्स कोटे के तहत एक निश्चित मात्रा में कोटा जारी किया जाता है, जिसे निर्धारित डिस्टीलरी से शराब ठेकेदार को उठाना ही होता है। वह इसे उठाने से इंकार नहीं कर सकता। 
 
वहीं ओपन कोटा वह कोटा है, जिसमें पूरे वर्ष के शराब के कोटे में से फिक्स कोटे के तहत खरीदी जा चुकी शराब का बाकी हिस्सा ओपन कोटे के तहत खरीदना होता है। इसमें शराब ठेकेदार की मर्जी होती है कि वह किसी भी डिस्टीलरी से यह कोटा खरीद सकता है लेकिन राज्य के आबकारी विभाग के अधिकारी निर्धारित डिस्टीलरियों से ही यह कोटा खरीदने के लिए बाध्य कर रहे हैं। 
 
3 डिस्टीलरियों पर मेहरबान विभाग
 
जानकारी के अनुसार राज्य की 3 प्रमुख डिस्टीलरियों पर राज्य के आबकारी विभाग के कुछ अधिकारी इस कदर मेहरबान हैं कि इन डिस्टीलरियों से शराब उठाने के लिए ठेकेदारों पर दबाव बना रहे हैं। कुछ डिस्टीलरियों से ठेकेदारों को परमिट बनाने के लिए मजबूर किया जाता है तथा उक्त डिस्टीलरी मालिक राज्य सरकार के फिक्स दाम से 50-60 अतिरिक्त चार्ज कर कमाई कर रहे हैं। इस अतिरिक्त चार्ज का भुगतान करने के लिए राज्य के आबकारी विभाग के ही कुछ अधिकारी ठेकेदारों को मजबूर भी करते हैं। जबकि वही शराब इन डिस्टीलरियों के अतिरिक्त अन्य डिस्टीलरियों के पास कम दाम पर उपलब्ध है।  
 
करोड़ों के वारे-न्यारे डिस्टीलरियों के
 
राज्य के कुछ डिस्टीलरी मालिकों पर आबकारी विभाग के अधिकारी इस हद तक मेहरबान हैं कि उनकी करोड़ों पेटी शराब बिकवाने तक का भी प्रबंध कर रहे हैं। प्रति पेटी सामान्य डिस्टीलरियों से 100 से 200 रुपए तक का अंतर है। ठेकेदार अगर कोई शराब बिना सिफारिश वाली डिस्टीलरी से लें तो उसके दाम कम जबकि अगर वही शराब अधिकारियों की शह हासिल करने वाली डिस्टीलरियों से खरीदी जाए तो 200 रुपए तक की महंगी उपलब्ध होती है। 
 
ऐसे में अगर 1 करोड़ पेटी शराब के हिसाब से देखा जाए तो 200 करोड़ रुपया सीधे-सीधे डिस्टीलरी मालिक को दिया जा रहा है। ऐसे में न तो सरकार के हिस्से कुछ आया और न ही ठेकेदार का कुछ फायदा हुआ, यह 200 करोड़ रुपए का फायदा डिस्टीलरी मालिक को देने का क्या मतलब? इस बात को लेकर विभाग के अधिकारी संदेह के घेरे में हैं। जो शराब फिक्स कोटे में सस्ती उपलब्ध है, वही शराब 3 खास डिस्टीलरियों के ओपन कोटे में 100 से 200 रुपए महंगी हो जाती है जबकि सरकार की आबकारी नीति में ऐसी कोई व्यवस्था ही नहीं है। 
 
अन्य डिस्टीलरी से शराब खरीदने पर होता है चालान
 
जो शराब ठेकेदार अधिकारियों के आदेश पर निर्धारित डिस्टीलरियों से शराब लेने की बजाय अन्य डिस्टीलरियों से सस्ती शराब लेने की कोशिश करते हैं, उन पर विभाग की पूरी तरह से गाज गिरती है। वैसे तो ऐसा कम ही होता है, जब ठेकेदार अपनी मनमर्जी करें। अगर कहीं कोई ठेकेदार ऐसी हिम्मत कर भी दे तो आबकारी विभाग उसके ठेकों पर बेवजह रेड कर उसे परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ता। अब एक ही राज्य में एक ही प्रकार की शराब अगर 2 डिस्टीलरियों में तैयार हो रही है तो खास अधिकारियों का आशीर्वाद हासिल डिस्टीलरी से ही वह शराब ठेकेदार को खरीदनी होगी।

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