जो जैसा कर्म करता है, उसे वैसा फल मिलता है : कृष्ण विज

Edited By ,Updated: 25 Mar, 2015 10:48 AM

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जो जैसे कर्म करता है, उसे वैसा ही फल मिलता है जिसकी जैसी करनी होती है, उसकी गति भी वैसी होती है। उक्त शब्द श्री रामशरणम् आश्रम 17-लिंक रोड द्वारा साईंदास स्कूल ग्राऊंड में आयोजित रामायण ज्ञान यज्ञ में श्री कृष्ण विज ने स्वामी सत्यानंद द्वारा रचित...

जो जैसे कर्म करता है, उसे वैसा ही फल मिलता है जिसकी जैसी करनी होती है, उसकी गति भी वैसी होती है। उक्त शब्द श्री रामशरणम् आश्रम 17-लिंक रोड द्वारा साईंदास स्कूल ग्राऊंड में आयोजित रामायण ज्ञान यज्ञ में श्री कृष्ण विज ने स्वामी सत्यानंद द्वारा रचित रामायण के श्लोकों की व्याख्या के दौरान कहे।

श्रीमती रेखा विज द्वारा उच्चारित चौपाइयों की व्याख्या करते हुए श्री कृष्ण विज ने कहा कि वन गमन के समय श्री राम सबसे पहले भारद्वाज के आश्रम में पहुंचते हैं तो भारद्वाज जी उन्हें रहने के लिए कहते हैं कि बड़ा मनोरम स्थान है लेकिन प्रभु श्री राम भारद्वाज जी से कहते हैं कि यहां से अवध बहुत नजदीक है, इसलिए कोई अन्य स्थान बताएं।

तब भारद्वाज जी उन्हें चित्रकूट में जाने के लिए कहते हैं। इस पर श्री राम चित्रकूट की ओर प्रस्थान करते हैं। वहां पर पहुंच कर लक्ष्मण लकडिय़ां इकट्ठी करके सुंदर कुटिया बनाते हैं।

इधर सुमंत प्रभु श्री राम को छोड़कर खाली रथ लेकर अयोध्या पहुंचते हैं तो सभी उदास नर-नारी सुमंत से पूछते हैं कि हमारे राम को कहां छोड़कर आए हो। कथा प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए श्री कृष्ण विज ने कहा कि सुमंत राजा दशरथ के पास पहुंचते हैं और जब हाल-चाल पूछते हैं तो सुमंत कहते हैं कि प्रभु श्री राम ने कहा है कि तीनों माताओं को मेरा प्रणाम कहना। इधर राजा दशरथ राम के वियोग में कौशल्या को बताते हैं कि जब अंत समय आता है तो जीवन की कार्यशैली फिल्म की तरह सामने आती है। मुझे पहली जिंदगी याद आ रही है। 

कौशल्या से राजा दशरथ की वार्ता का व्याख्यान सुनाते हुए श्री कृष्ण विज ने बताया- राजा दशरथ ने कौशल्या को बताया कि जब मैं जवानी में था तो शब्द विद्या को सिद्ध करने के लिए रात भर जंगल में एक पेड़ पर बैठकर इंतजार कर रहा था कि दूर तालाब से पानी पीने की आवाज आई। ऐसा लगा कि कोई हाथी पानी पी रहा था। जैसे ही शब्दभेदी बाण चलाया तो उधर बाण से घायल हाय-हाय की आवाज आई। मौके पर जाकर देखा कि एक नौजवान के बाण लगा हुआ और वह तड़प रहा है। कथा का समापन ‘सर्वशक्तिमते परमात्मने...’ के साथ हुआ।

 

 

 

 

 

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