काला नमक दिला सकता है आपको नौकरी में प्रमोशन व कोर्ट कचहरी में सफलता

Edited By ,Updated: 26 Mar, 2015 03:29 PM

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दस महाविद्याओं के अन्तर्गत देवी छिन्नमस्ता आती हैं। छिन्नमस्ता का अर्थ है छिन्न मस्तक वाली देवी। छिन्नमस्ता की गणना काली कुल में की जाती है। छिन्नमस्ता महाविद्या का संबंध महाप्रलय से है। महाप्रलय का ज्ञान कराने वाली यह महाविद्या भगवती का ही रौद्र...

दस महाविद्याओं के अन्तर्गत देवी छिन्नमस्ता आती हैं। छिन्नमस्ता का अर्थ है छिन्न मस्तक वाली देवी। छिन्नमस्ता की गणना काली कुल में की जाती है। छिन्नमस्ता महाविद्या का संबंध महाप्रलय से है। महाप्रलय का ज्ञान कराने वाली यह महाविद्या भगवती का ही रौद्र रूप हैं। 

कालितंत्रम् के अनुसार एक समय में देवी पार्वती अपनी सहचरी जया व विजया के साथ श्री मन्दाकिनी नदी में स्नान करने गई वहां कामाग्नि से पीड़ित वह कृष्णवर्ण की हो गई तदुपरांत जया व विजया ने उनसे भोजन मांगा क्योंकि वे क्षुधित थी, देवी ने उन्हे प्रतीक्षा करने को ही कहा परंतु सहचरियों ने बारबार देवी से भोजन की याचना की। तदुपरांत देवी ने अपनी कटार से अपना सिर छेदन कर दिया, छिन्न सिर देवी के बाएं हाथ पर आ गिरा, उनके कबन्ध से रक्त की तीन धाराएं निकली दो धाराएं उनकी सहचरी डाकिनी और वर्णिनी के मुख में गई तथा तीसरी धारा का छिन्न शिर से स्वयं पान करने लगी। उस समय उस रूप की छिन्नमस्ता संज्ञा हुई। 

महर्षि याज्ञवल्क्य और परशुराम इस विद्या के उपासक थे। श्री मत्स्येन्द्र नाथ व गोरखनाथ भी इसी के उपासक रहे। दैत्य हिरण्यकश्यप व वैरोचन भी इस शक्ति के एक निष्ठ साधक थे। अत: इन शक्ति को ‘वज्रवैरोचनीय भी कहते हैं। "वैरोचनीया कर्मफलेषु जुष्टाम्" तथागत बुद्ध भी इसी शक्ति के उपासक थे। श्री छिन्नमस्ता का पीठ "चिन्तपूर्णी" नाम से विख्यात है। भैरव तंत्र में इनके विषय में कथन है की सर्व कामनाओं, फलप्रदा प्रचण्ड चण्डिका छिन्नमस्ता जी का वर्णन किया जाता है। जिनके स्मरण मात्र से ही नर सदा शिव हो जाता है तथा पुत्र, धन, कवित्व, दीर्घ पाण्डित्य आदि ऐहिक विषय असंषित रूप से प्राप्त होते हैं। 

शाम के समय प्रदोषकाल में पूजा घर में दक्षिणपश्चिम मुखी होकर नीले रंग के आसन पर बैठ जाएं। अपने सामने लकड़ी के पट्टे पर नीला वस्त्र बिछाकर उस पर छिन्नमस्ता यंत्र स्थापित करें। दाएं हाथ में जल लेकर संकल्प करें तत्पश्चात हाथ जोड़कर छिन्नमस्ता देवी का ध्यान करें। 

ध्यान: प्रचण्ड चण्डिकां वक्ष्ये सर्वकाम फलप्रदाम्। यस्या: स्मरण मात्रेण सदाशिवो भवेन्नर:।।

देवी छिन्नमस्ता की विभिन्न प्रकार से पूजा करें। सरसों के तेल में नील मिलाकर दीपक करें। हो सके तो देवी पर नीले फूल (मन्दाकिनी अथवा सदाबहार) चढ़ाएं। देवी पर सुरमे से तिलक करें। लोहबान से धूप करें और इत्र अर्पित करें। उड़द से बने मिष्ठान का भोग लगाएं। तत्पश्चात बाएं हाथ में काले नमक की डली लेकर दाएं हाथ से काले हकीक अथवा अष्टमुखी रुद्राक्ष माला अथवा लाजवर्त की माला से देवी के इस अदभूत मंत्र का यथासंभव जाप करें।

मंत्र: श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचनीयै हूं हूं फट स्वाहा: ।।

जाप पूरा होने के बाद काले नमक की डली को बरगद के नीचे गाड़ दें। बची हुई सामग्री को जल प्रवाह कर दें। इस साधना से शत्रु का तुरंत नाश होता है, रोजगार में सफलता मिलती है, नौकरी में प्रमोशन मिलती है तथा कोर्ट कचहरी वादविवाद व मुकदमो मे निश्चित सफलता मिलती है। महाविद्या छिन्नमस्ता की साधना से जीवन की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है।

आचार्य कमल नंदलाल

ईमेल kamal.nandlal@gmail.com

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