‘रामनवमी’ : श्रीराम से रामराज्य तक

Edited By ,Updated: 28 Mar, 2015 01:38 AM

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जिस प्रकार हम अपना या दूसरों का जन्मदिन मनाते हैं, उसी प्रकार राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर से लेकर महात्मा गांधी तथा अन्य महापुरुषों का जन्मदिन भी मनाते हैं।

(पूरन चंद सरीन): जिस प्रकार हम अपना या दूसरों का जन्मदिन मनाते हैं, उसी प्रकार राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर से लेकर महात्मा गांधी तथा अन्य महापुरुषों का जन्मदिन भी मनाते हैं। 

रामचन्द्र एक राजा थे और राजा अपनी प्रजा के पालन, सुरक्षा और सुशासन के लिए जिम्मेदार होता है। प्रजा अपने राजा से प्रेम करने के साथ-साथ भयभीत भी रहती है कि कहीं किसी प्रजाजन की अभद्रता के कारण राजा का कोपभाजन न बनना पड़े।
 
राजा रामचन्द्र, उनके रामराज्य और उनकी प्रजा पालक की भूमिका पर हम आज के संदर्भ में विचार करें और आज के राजाओं से तुलना करें तो हम उनके मानवीय स्वरूप को समझ पाएंगे। इससे होगा यह कि भगवान के रूप मेें उनकी प्रतिष्ठा भी बरकरार रहेगी और यह समझने में आसानी होगी कि आखिर राम को भगवान की तरह क्यों समझा जाने लगा?
 
आगे बढऩे से पहले यह समझ लें कि वर्तमान युग में भी ऐसे व्यक्ति हुए हैं, जिन्होंने अपने जीवन में अनेक ऐसे कार्य किए कि दांतों तले उंगली दबानी पड़ जाती है। उनके कृत्य हमारे मन में उनके प्रति अगाध श्रद्धा भर देते हैं और मन करता है कि उन्हें भी हम उन महापुरुषों की श्रेणी में रखें, जिन्हें हम भगवान या देवी-देवता मानते हैं और उनके जीवन चरित्र को आलौकिक, चमत्कारपूर्ण और अनुसरण योग्य जानते हैं।
 
उदाहरण के तौर पर महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता आंदोलन का जिस प्रकार नेतृत्व किया और पूरी दुनिया को अङ्क्षहसा की एक नई परिभाषा वाला सिद्धांत दिया, वह अपने आप में अकल्पनीय है।
 
सुभाष बोस ने जिस प्रकार आजादी की लड़ाई में योगदान दिया और कठिन से कठिन परिस्थिति को अपना दास बना लिया, वह भुलाया नहीं जा सकता। वीर सावरकर के बारे में जब पढ़ते हैं कि वह पानी के जहाज के गुसलखाने से समुद्र में निकल गए तो रोमांच हो  आता है। रामचरित्र का वर्णन गोस्वामी तुलसीदास ने विविधता, सामान्य जन की समझ में आने वाली भाषा में किया है, वह हमें राजा रामचन्द्र या भगवान राम को समझने के लिए पर्याप्त है।
 
यहां हम रामनवमी के अवसर पर कुछ विशिष्ट बातों का उल्लेख कर रहे हैं : सबसे पहले यह चौपाई देखिए
‘‘सेवक सठ, नृप, कृपन, कुनारी, कपटी मित्र, सूल सम चारी।’’
 
सेवक चाहे किसी व्यक्ति का हो, शासन का हो  या सरकार का, यदि वह झूठा है, बदमाश है, बेईमान है तो शूल के समान ही है। इसीलिए कहते हैं कि सेवक हो तो हनुमान जैसा और स्वामी हो तो राम जैसा।
 
राजा कैसा हो, वह कृपण यानी कि कंजूस न हो, प्रजा के हित की बजाय अपनी हितसाधना न करे, नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करने में कोताही न करे, उन्हेें रोजगार के अवसर  देने में कंजूसी न करे। नारी यदि कुनारी हो तो घर, परिवार से लेकर समाज तक की व्यवस्था बिगड़ सकती है। उसी तरह जो अपने आपको हमारा मित्र कहता है, हमारे सामने हमारी तारीफ करता है और सबसे हितैषी के रूप में व्यवहार करता है लेकिन अंदर से कपट रखता है, हमारी जड़ खोदने में कसर नहीं छोड़ता और हमारी पीठ में छुरा घोंपने के लिए तैयार रहता है, अगर उसकी पहचान हो जाए तो विश्वासघात से बचा जा सकता है।
 
इस प्रकार अपने चारों ओर देखें तो आसानी से समझ में आ जाएगा कि इन अवगुणों से युक्त ये 4 व्यक्ति किसी व्यक्ति के जीवन को किस प्रकार मुश्किलों से भर सकते हैं। इसलिए नौकर-चाकर रखने से पहले जांच-पड़ताल जरूरी है, सही व्यक्ति को ही वोट देकर हम अपना शासक चुनें, नारी का स्वभाव परख लें और मित्र तो हमेशा बहुत सोच-समझ कर बनाएं। मित्र के प्रति कैसा व्यवहार करें, यह इस चौपाई से स्पष्ट हो जाता है : ‘‘निज सुख गिरि सम रज करि जान। मित्र दुख रज मेरू समान।’’
 
अपना पहाड़ जैसा दुख भी धूल की तरह और मित्र का धूल जैसा दुख भी पर्वत जैसा लगे, तब ही समझें कि आपस में मैत्री है।
अब एक और चौपाई देखिए: ‘‘नहि दरिद्र सम दुख जग माही, संत मिलन सम सुख जग नाहीं’’
 
गरीबी सबसे बड़ा अभिशाप है लेकिन जिन कारणों से एक गरीब व्यक्ति जीवन भर गरीबी के चंगुल में ही फंसा रहता है, उन्हें समझना जरूरी है। हम गरीब क्यों बने रहते हैं क्योंकि जिन्हें वोट देकर हमने सत्ता सौंपी उनकी नीति ही ऐसी रही कि हम गरीब के गरीब रहे। गरीबी के लिए हम जिम्मेदार नहीं हैं, बल्कि हमारे नेता, नीति निर्माता और शासक जिम्मेदार हैं। कहने का अर्थ यह कि यदि हमारा वोट गलत व्यक्ति को जाता है तो सरकार बनने पर वह हमें गरीब ही रखेगा।
 
दूसरी बात यह कि संत अर्थात श्रेष्ठ, ईमानदार व्यक्ति हमारा शासक बनता है, तो हमारा जीवन सुखी रह सकता है। कांग्रेस का पतन और भाजपा का सत्तासीन होना इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। 
 
एक और चौपाई में कहा गया है :‘‘धीरज, धर्म, मित्र अरू नारी, आपत काल परखिए चारी’’
 
अक्सर यह सुनते हैं कि हमें धैर्य से काम लेना चाहिए मतलब कि जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए, बिना अच्छी तरह विचार किए कोई कदम नहीं उठाना चाहिए और कठिनाई आने पर विचलित नहीं होना चाहिए। यह बात राजा रामचन्द्र के जीवन से स्पष्ट हो जाती है। उनके प्रत्येक कार्य में धीरज की प्रधानता होती थी, उनका कोई  काम या  निर्णय  बहुत  सोच-विचार  कर,  सत्य और असत्य की कसौटी पर कसने के बाद ही शुरू होता था।
 
इसी प्रकार धर्म यानी अपने कर्म को लेकर वह कभी संशय में नहीं पड़े। हमारा मित्र कौन है, कौन शत्रु और हम कब, कैसे और कहां सच्चे मित्र की परख कर सकते हैं इसके अनेक उदाहरण मिलते हैं। सुग्रीव, नल, नील से लेकर विभीषण तक मित्र की परिभाषा की व्याख्या करते प्रतीत होते हैं। नारी का उनके हृदय में सर्वोच्च स्थान था, चाहे माताएं हों, पत्नी हो, अहिल्या हो, शबरी हो या शूर्पनखा। इसकी पराकाष्ठा तब दिखाई देती है, जब समाज में सीता की आलोचना से विचलित होकर वह उन्हें गृह त्याग करने के लिए विवश कर देते हैं। तुलसीदास के राम ने अच्छाई और बुराई की पहचान का कितना साधारण सा उपाय इस चौपाई में दिया है:
 
‘‘सहज सरल रघुबर वचन,  कुमति  कुटिल करि  जान।  चलई  जोंक  जल  वकगति  जद्यपि  सलिलु समान।’’
 
जो दुष्ट है वह चाल नहीं बदलता, चाहे कितना भी प्रयत्न कर ले, उसे दंड देना ही पड़ता है। उदाहरण के लिए पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह अपने कार्यकाल के दौरान दुष्टों को सजा देने में चूक गए, मित्रों की पहचान न कर सके और राजा का कत्र्तव्य निभाने के बजाय कांग्रेस अध्यक्ष के दास की भूमिका में आ गए तो सरकार का पतन तो होना ही था। स्वयं चाहे कोई कितना ईमानदार हो लेकिन अपने मित्र तथा सेवक की पहचान में गलती हो गई तो राजपाट, पद, प्रतिष्ठा का धूल में मिलना निश्चित है।
 
यह बात वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर भी  लागू  होती  है। उनके प्रति जनभावनाएं जो लगभग एक वर्ष पहले थीं, उनमें अब तेजी से गिरावट हो रही है, यह बात समझना जरूरी है। 
 
आज  रामनवमी  के  अवसर पर राम को भगवान राम की तरह नहीं, राजा रामचन्द्र की तरह देखें तो लगेगा कि वह तो सम्पूर्ण मानव थे, उनमें एक सामान्य व्यक्ति की भांति गुण और दोष थे और यह जानते थे कि अपने दुर्गुणों  पर  कैसे  काबू  पाया जाए और सामान्य जन के हितों की रक्षा कैसे की जाए। इसीलिए आज भी हम रामराज्य की कल्पना करते हैं। 
 
 
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