Edited By Niyati Bhandari,Updated: 03 Apr, 2020 02:51 PM
शरीर को स्वस्थ और पुष्ट रखने के लिए पर्याप्त ऊर्जा या ऊष्मा की अवश्यकता होती है। चारों और फैले आकाश और उसमें व्याप्त विद्युत तरंगों से ही ठोस पोषण प्राप्त किया जा सकता है। सनातन धर्म के पौराणिक शास्त्रों में भोजन से संबंधित बहुत से नियम निर्धारित...
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
शरीर को स्वस्थ और पुष्ट रखने के लिए पर्याप्त ऊर्जा या ऊष्मा की अवश्यकता होती है। चारों और फैले आकाश और उसमें व्याप्त विद्युत तरंगों से ही ठोस पोषण प्राप्त किया जा सकता है। सनातन धर्म के पौराणिक शास्त्रों में भोजन से संबंधित बहुत से नियम निर्धारित किए गए हैं। जैसे हाथ-पैर, मुंह धोकर आसन पर पूर्व या दक्षिण की ओर मुख करके भोजन करने से यश एवं आयु बढ़ती है। भोजन हमेशा शांत एवं प्रसन्नचित्त होकर करना चाहिए। खाने के साथ- साथ उपवास का भी विशेष महत्त्व है। उपवास के विषय में आयुर्वेद कहता है-
‘‘लंघनम् परमौषधम् ’’
अर्थात ‘‘उपवास सर्वश्रेष्ठ औषधि है।’’
महाभारत के अनुशासन पर्व में भोजन से संबंधित महत्वपूर्ण नियम बताए गए हैं
घर में बनने वाले खाने को सर्वप्रथम भगवान तत्पश्चात पितरों को भोग लगाएं। फिर उस प्रसाद को सभी पारिवारिक सदस्य मिल कर ग्रहण करें।
किसी भी भोज्य पदार्थ के ऊपर से कोई लांघ जाए तो उस भोजन को ग्रहण नहीं करना चाहिए क्योंकि वो अपवित्र हो जाता है।
जूठा भोजन न तो स्वयं खाना चाहिए और न ही किसी को देना चाहिए इससे पुण्य क्षय होते हैं।
मेहनत से कमाए अन्न में ही बरकत होती है। गलत कामों से हासिल अन्न को खाने से बुद्धि भ्रष्ट होती है।
ऋतुमती स्त्री के हाथ का बना खाना अथवा उसकी परछाई पड़ा भोजन करना भी निषिद्ध है।
कुत्ते द्वारा छूआ अथवा देखा भोजन कदापि ग्रहण न करें। घर में बनी आखिरी रोेटी अवश्य कुत्ते को डालें।
भोजन में बाल अथवा कीड़ा गिर जाए तो वह खाना अशुद्ध हो जाता है। उसे खाने से स्वस्थ शरीर भी अस्वस्थ हो जाता है।
भोजन करते समय उसमें छींक या आंसू पड़ जाए तो वह खाना न खाएं।