मात्र हनुमान जी का ध्यान दुखों का काम करे तमाम

Edited By ,Updated: 30 Mar, 2015 07:10 AM

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एक बार की बात है माता अंजना हनुमान जी को कुटी में लिटा कर कहीं बाहर चली गईं। थोड़ी देर में इन्हें बहुत तेज भूख लगी। इतने में आकाश में सूर्य भगवान उगते हुए दिखलाई दिए। इन्होंने समझा यह कोई लाल-लाल सुंदर मीठा फल है। बस, एक ही छलांग में यह सूर्य भगवान...

एक बार की बात है माता अंजना हनुमान जी को कुटी में लिटा कर कहीं बाहर चली गईं। थोड़ी देर में इन्हें बहुत तेज भूख लगी। इतने में आकाश में सूर्य भगवान उगते हुए दिखलाई दिए। इन्होंने समझा यह कोई लाल-लाल सुंदर मीठा फल है। बस, एक ही छलांग में यह सूर्य भगवान के पास जा पहुंचे और उन्हें पकड़ कर मुंह में रख लिया।

सूर्य-ग्रहण का दिन था। सूर्य को ग्रसने के लिए राहू उनके पास पहुंच रहा था। उसे देख कर हनुमान जी ने सोचा यह कोई काला फल है इसलिए उसकी ओर भी झपटे। राहू किसी तरह भाग कर देवराज इंद्र के पास पहुंचा और उसने कांपते हुए स्वरों में इंद्रदेव से कहा, ‘‘भगवान! आज आपने यह कौन-सा दूसरा राहू सूर्य को ग्रसने के लिए भेज दिया है? यदि मैं भागा न होता तो वह मुझे भी खा गया होता।’’

राहू की बातें सुन कर भगवान इंद्र को बड़ा अचंभा हुआ। वह अपने सफेद ऐरावत हाथी पर सवार हो हाथ में वज्र ले बाहर निकले। उन्होंने देखा कि एक वानर-बालक सूर्य को मुंह में दबाए आकाश में खेल रहा है। हनुमान ने भी सफेद ऐरावत पर सवार इंद्र को देखा। उन्होंने समझा कि यह भी कोई खाने लायक सफेद फल है। वह उधर भी झपट पड़े।

यह देख कर देवराज इंद्र बहुत ही क्रोधित हो उठे। अपनी ओर झपटते हुए हनुमान से उन्होंने अपने को बचाया तथा सूर्य को छुड़ाने के लिए हनुमान की ठुड्डी (हनु) पर वज्र का तेज प्रहार किया। वज्र के उस प्रहार से हनुमान जी का मुंह खुल गया और वह बेहोश होकर पृथ्वी पर गिर पड़े।

हनुमान जी के गिरते ही उनके पिता वायु देवता वहां पहुंच गए। अपने बेहोश बालक को उठाकर उन्होंने छाती से लगा लिया। माता अंजना भी वहां दौड़ी हुई आ पहुंचीं। हनुमान को बेहोश देख कर वह रोने लगीं। वायु देवता ने क्रोध में आकर बहना ही बंद कर दिया। हवा के रुक जाने के कारण तीनों लोकों के सभी प्राणी व्याकुल हो उठे। पशु पक्षी बेहोश हो-होकर गिरने लगे। पेड़-पौधे और फसलें कुम्हलाने लगीं। ब्रह्मा जी इंद्र सहित सारे देवताओं को लेकर वायु देवता के पास पहुंचे।

उन्होंने अपने हाथों से छूकर हनुमान जी को जीवित करते हुए वायु देवता से कहा, ‘‘वायु देवता! आप तुरन्त बहना शुरू करें। वायु के बिना हम सब लोगों के प्राण संकट में पड़ गए हैं। यदि आपने बहने में जरा भी देर की तो तीनों लोकों के प्राणी मौत के मुंह में चले जाएंगे। आपके इस बालक को आज सभी देवताओं की ओर से वरदान प्राप्त होगा।’’

ब्रह्मा जी की बात सुन कर सभी देवताओं ने कहा, ‘‘आज से इस बालक पर किसी प्रकार के अस्त्र-शस्त्र का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।’’

इंद्र ने कहा, ‘‘मेरे वज्र का प्रभाव भी अब इस पर नहीं पड़ेगा। इसकी हनु (ठुड्डी) वज्र से टूट गई थी इसलिए इसका नाम आज से हनुमान होगा।’’

ब्रह्मा जी ने  कहा, ‘‘वायुदेव! तुम्हारा यह पुत्र बल, बुद्धि, विद्या में सबसे बढ़-चढ़ कर होगा। तीनों लोकों में किसी भी बात में इसकी बराबरी करने वाला दूसरा कोई न होगा। यह भगवान राम का सबसे बड़ा भक्त होगा। इसका ध्यान करते ही सबके सभी प्रकार के दुख दूर हो जाएंगे। यह मेरे ब्रह्मास्त्र के प्रभाव से सर्वथा मुक्त होगा।’’ 

वरदान से प्रसन्न होकर और ब्रह्मा जी एवं देवताओं की प्रार्थना सुन कर वायुदेव ने फिर पहले की तरह बहना शुरू कर दिया। तीनों लोकों के प्राणी प्रसन्न हो उठे।

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