Edited By Niyati Bhandari,Updated: 19 Apr, 2020 05:59 AM
जब भी कोई धार्मिक कर्म अथवा शुभ काम का श्री गणेश करना होता है तो पंडित जी सबसे पहले धरती माता का पूजन कराते हैं। धरती माता पर सात स्वर्ग विद्यमान हैं। उनके नीचे सात पाताल और ऊपर ब्रह्मलोक है। ब्रह्मलोक से भी ऊपर एक लोक है जिसे ध्रुवलोक कहा जाता है।
जब भी कोई धार्मिक कर्म अथवा शुभ काम का श्री गणेश करना होता है तो पंडित जी सबसे पहले धरती माता का पूजन कराते हैं। धरती माता पर सात स्वर्ग विद्यमान हैं। उनके नीचे सात पाताल और ऊपर ब्रह्मलोक है। ब्रह्मलोक से भी ऊपर एक लोक है जिसे ध्रुवलोक कहा जाता है।
श्री विष्णु ने जगत भलाई के लिए जब वाराहवतार लिया तो धरती माता उनकी पत्नी थी उनसे मंगल का जन्म हुआ और मंगल से घटेश की वंशावली चली। श्री विष्णु ने स्वयं धरती माता का पूजन धूप, दीप, नैवेद्य, सिंदूर, चंदन, वस्त्र, फूल और बलि आदि सामग्रियों से किया तत्पश्चात ब्रह्मा व संपूर्ण प्रधान मुनियों ने। भगवान की आज्ञा से धरतीवासी धरती माता का पूजन करने लगे।
सुबह बिस्तर छोड़ने के उपरांत धरती माता पर पग रखने से पहले उन्हें प्रणाम करें। धरती माता के पूजन में इस मंत्र का जाप पूरी श्रद्धा और विश्वास से किया जाने से उनकी कृपा प्राप्त की जा सकती है।
पृथ्वी पूजन मंत्र
मंत्र इस प्रकार है- ऊँ ह्रीं श्रीं वसुधायै स्वाहा।
जो पुरुष प्रातः काल इस मंत्र का जाप करता है, उसे बलवान राजा होने का सौभाग्य अनेक जन्मों के लिए प्राप्त होता है।
इसे पढ़ने से मनुष्य पृथ्वी के दान से उत्पन्न पुण्य का अधिकारी बन जाता है।
किसी की भूमी हड़पने वाला व्यक्ति ‘कालसूत्र’ नामक नरक भोगता है। उसका यह पाप उसके पुत्र और पौत्र तक का पीछा करता है। आने वाली पुश्तों के पास भूमी नहीं ठहरती।