सड़क दुर्घटनाओं में ‘भारत नम्बर वन पर’, दुर्घटना करने वालों को कड़ी सजा हो : सुप्रीम कोर्ट

Edited By ,Updated: 01 Apr, 2015 12:18 AM

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संयुक्त राष्ट्र ने ऐसे 10 देशों की पहचान की है जहां सबसे अधिक सड़क दुर्घटनाएं होती हैं। इनमें भारत प्रथम स्थान पर है और इसी कारण भारत को विश्व में ‘सड़क दुर्घटनाओं की राजधानी’ भी कहा जाता है।

संयुक्त राष्ट्र ने ऐसे 10 देशों की पहचान की है जहां सबसे अधिक सड़क दुर्घटनाएं होती हैं। इनमें भारत प्रथम स्थान पर है और इसी कारण भारत को विश्व में ‘सड़क दुर्घटनाओं की राजधानी’ भी कहा जाता है।

भारत में सड़क दुर्घटनाओं में सबसे ज्यादा मौतें पंजाब में होती हैं तथा इसमें अमृतसर और लुधियाना जिले पहले स्थान पर हैं। अमृतसर और लुधियाना में 2012 में प्रत्येक 10 सड़क दुर्घटनाओं में 6 लोगों की मौत हुई।

सड़क मंत्रालय द्वारा जारी ‘भारत में सड़क दुर्घटनाएं’ रिपोर्ट के अनुसार यात्रियों के लिए पंजाब की सड़कें जानलेवा साबित हो रही हैं और पिछले 4 वर्षों से यहां प्रति 100 दुर्घटनाओं में मृतकों की संख्या लगातार बढ़ रही है। जहां 2009 में इसका प्रतिशत 65.9 था, वहीं 2012 में यह बढ़कर 76 हो गया। 

प्रति वर्ष यहां 4800 से अधिक लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जा रहे हैं। पंजाब वाहन चालकों के लिए ही नहीं बल्कि सड़क पर चलने वाले अन्य लोगों के लिए भी असुरक्षित होता जा रहा है। इसके लिए शराब पीकर गाड़ी चलाना, नो एंट्री नियमों का पालन न करना और रैश ड्राइविंग अधिक जिम्मेदार हैं।

सड़क दुर्घटनाओं में लगातार हो रही मौतों के बावजूद दोषी वाहन चालकों के नाममात्र सजा पर छूट जाने से वाहन चालकों में लापरवाही और तेज रफ्तार से तथा नशा करके वाहन चलाने की कुप्रवृत्ति लगातार बढ़ रही है जिसके संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने 30 मार्च को सुनाए एक महत्वपूर्ण  निर्णय में दोषियों को कठोर सजा देने की सिफारिश की है।

14 जून, 2007 को एक सड़क दुर्घटना में सौरभ बख्शी नामक युवक की कार की टक्कर से 2 लोगों की मृत्यु हो गई थी। पटियाला की एक अदालत ने इस मामले में दोषी को एक साल की सजा सुनाई थी जिसे दोषी द्वारा मृतकों के परिवार को 85000 रुपए क्षतिपूर्ति की अदायगी कर देने पर हाईकोर्ट ने घटा कर 24 दिन कर दिया था और राज्य सरकार ने इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

सुप्रीम कोर्ट के योग्य न्यायाधीशों न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति प्रफुल्ल सी. पंत की अध्यक्षता वाली पीठ ने सौरभ की कैद बढ़ा कर 6 महीने करते हुए सड़क दुर्घटनाओं में भारी-भरकम मुआवजा देकर अमीरों के बच निकलने और हल्की सजा देने को ‘न्याय का मजाक’ बताते हुए कहा :

‘‘दोषी द्वारा मृतकों के परिवार को क्षतिपूर्ति  देने के आधार पर उसकी सजा कम कर देने का कोई औचित्य नहीं है। इससे न्यायपालिका पर लोगों का विश्वास खत्म होगा क्योंकि ऐसा होने पर तो हर सम्पन्न व्यक्ति यह सोचने लगेगा कि क्षतिपूर्ति दो और सजा से बच निकलो।’’

‘‘लोगों को मार डालने या कुचल देने वाले वाहन चालकों के प्रति कोई नर्मी नहीं बरती जानी चाहिए। ऐसे वाहन चालकों का रवैया अत्यधिक लापरवाही भरा होता है और वे स्वयं को ‘राजा’ से कम नहीं समझते। इस कारण  राहगीर स्वयं को असुरक्षित महसूस करते हैं और सभ्य लोग हमेशा डरते हुए वाहन चलाते हैं।’’

‘‘गरीब की जान भी उतनी ही मूल्यवान है, जितनी विलासितापूर्ण जीवन बिताने वाले अमीर की। अत: कानून निर्माताओं को भारतीय दंड संहिता की धारा 304-ए में सजा देने की नीति (जिसमें इस समय अधिकतम 2 साल की कैद या जुर्माना या दोनों का प्रावधान है) पर फिर से विचार करना चाहिए और सजा में वृद्धि करनी चाहिए। सजा देने का उद्देश्य दोषी को सुधारना होता है परन्तु कई बार ऐसे अवसर आते हैं जब कठोर दंड देना जरूरी हो जाता है।’’

आज जहां सभी प्रकार के वाहन चालकों में नतीजे की परवाह किए बगैर तेज रफ्तार से वाहन चलाने का रुझान लगातार बढ़ रहा है, वहीं साधन-सम्पन्न परिवारों द्वारा अपने अवयस्क बच्चों को वाहन देकर सड़कों पर उतारने का रुझान भी बहुत बढ़ गया है जो अक्सर दुर्घटना का कारण बनता है।

अत: जहां सुप्रीम कोर्ट ने वयस्कों द्वारा रैश और नशे में ड्राइविंग के प्रति कठोर सजा के पक्ष में आवाज उठाई है, वहीं इसे अवयस्कों द्वारा वाहन चलाने का रुझान रोकने के लिए भी सरकार को कड़े पग उठाने का निर्देश देना चाहिए।

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