Edited By ,Updated: 01 Apr, 2015 12:39 PM
मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में बहुत से मंदिर अवस्थित हैं इसलिए यह मंदिरों की नगरी कहलाता है। प्रत्येक मंदिर की अपनी-अपनी विशिष्टता है।
मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में बहुत से मंदिर अवस्थित हैं इसलिए यह मंदिरों की नगरी कहलाता है। प्रत्येक मंदिर की अपनी-अपनी विशिष्टता है। इन्हीं विशिष्ट मंदिरों में देवी गढ़कालिका मंदिर भैरवगढ़ क्षेत्र में स्थित हैं और उनके समीप ही शिप्रा तट पर ओखलेश्वर नाम का प्राचीन सिद्ध श्मशान है। नाथ परंपरा की भर्तृहरि गुफा और मत्स्येंद्रनाथ की समाधि भी इस मंदिर के समीप ही है।
मान्यता है कि ये देवी महाकवि कालिदास की आराध्य देवी हैं। इनके आशीष से कालिदास ने कालजयी रचनाएं रची थी। सम्राट विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक कालिदास भी थे। तंत्र-मंत्र के लिए प्रसिद्ध इस नगरी में बाबा भूतनाथ भगवान महाकालेश्वर का अधिपत्य है। मंदिर शहर के बाहरी इलाके में गढ़ पर स्थापित होने के कारण गढ़ कहलाता है। उज्जैन शाक्य मत का गढ़ रहा है।
तंत्र-मंत्र करने वाले विद्वान यहां विशेष रूप से आते हैं और मनचाही सिद्धियों को अंजाम देते हैं। इसके अतिरिक्त प्रतिदिन बहुत से भक्त मां के दर्शनों के लिए आते हैं। इस मंदिर की स्थापना किस काल में हुई इस विषय पर विभिन्न विद्वानों के अपने अपने विचार हैं। माना जाता है की जिस युग में महाभारत युद्ध हुआ उसी काल में मंदिर होंद में आया लेकिन इसमें स्थापित मां का स्वरूप सतयुग के समय का है।
कुछ काल उपरांत इस मंदिर का कायाकल्प सम्राट हर्षवर्धन ने करवाया तत्पश्चात स्टेट काल में ग्वालियर के महाराजा ने इसका पुनर्निर्माण करवाया।