इंसान के तौर पर आप खुद को कहां खड़ा पाते हैं?

Edited By ,Updated: 22 Apr, 2015 09:30 AM

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इन दिनों हर व्यक्ति की मुख्य पहचान उसके व्यवसाय से ही जुड़ी है। हर व्यक्ति अपने व्यवसाय के आधार पर ही पहचाना जाता है। किसी व्यवसाय को अपनाने का अर्थ यही होता है कि हम ‘अर्थ के बाजार’ के कुछ नियमों को अपनाते हैं।

इन दिनों हर व्यक्ति की मुख्य पहचान उसके व्यवसाय से ही जुड़ी है। हर व्यक्ति अपने व्यवसाय के आधार पर ही पहचाना जाता है। किसी व्यवसाय को अपनाने का अर्थ यही होता है कि हम ‘अर्थ के बाजार’ के कुछ नियमों को अपनाते हैं।

हम ऐसा कौशल विकसित करते हैं जिसके जरिए हम धन अर्जित कर सकें। लेकिन इस पूरे उपक्रम में लोग अपने आंतरिक गुणों की तरफ ध्यान देना ही भूल जाते हैं। आप अपने आसपास नजर दौड़ाएं तो पाएंगे कि मन और हृदय की मांग क्या है इसकी तरफ अब उतना ध्यान नहीं रह गया है।

यही वजह है कि हर किसी का व्यक्तित्व उसके व्यवसाय के अनुरूप हो गया है और उसके आंतरिक मूल्यों का कोई महत्व नहीं रह गया है। इस तरह हम अपने व्यवसाय में तो सफल हैं लेकिन क्या हम इंसान के तौर पर खुद को कहीं खड़ा पाते हैं?

आप किसी भी व्यक्ति से बातचीत कीजिए आप पाएंगे कि वह उसके व्यवसाय से जुड़ी हर जानकारी आपके साथ बांटेगा लेकिन जब आप उससे किन्हीं और मुद्दों के बारे में, जीवन के बारे में बात करेंगे तो वह चुप्पी साध लेगा। आप यह भी पा सकते हैं कि वह इस मुद्दे पर बातचीत के लिए मानसिक रूप से तैयार ही नहीं है।

लोग अपने जीवन को एक ही किसी चीज में लगा देते हैं और बाकी चीजों की तरफ उनका ध्यान ही नहीं जाता है। उन्हें लगता है कि जब वे अपनी प्राथमिकताओं में जीवन की अन्य बातों को शामिल करेंगे तो वे उतने सफल नहीं होंगे। उन्हें यह भय रहता है कि अगर वे अपनी समझ का विस्तार करने का प्रयास करेंगे तो सफल होने का मौका खो देंगे।

लेकिन सिर्फ अपनी आर्थिक सफलता के बारे में ही नहीं सोचना चाहिए बल्कि समझ के विस्तार को लेकर भी सजग होना चाहिए। 

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