Edited By ,Updated: 23 Apr, 2015 01:18 AM
देश में आवारा कुत्तों की लगातार बढ़ रही संख्या बहुत बड़ी समस्या बन चुकी है। देश का कोई भी कोना आवारा कुत्तों के खतरे से बचा हुआ नहीं है।
देश में आवारा कुत्तों की लगातार बढ़ रही संख्या बहुत बड़ी समस्या बन चुकी है। देश का कोई भी कोना आवारा कुत्तों के खतरे से बचा हुआ नहीं है। आवारा कुत्ते 20-20 के झुंड में घूमते नजर आते हैं और विदेशी मुद्रा अर्जित करने वाले पर्यटक नगर भी इनके प्रकोप से मुक्त नहीं हैं।
अभी हाल ही में मनीमाजरा में एक 6 वर्षीय बच्ची की आवारा कुत्ते द्वारा बुरी तरह काटने से हुए ‘रैबीज’ रोग के परिणामस्वरूप हुई दर्दनाक मौत की काफी चर्चा रही क्योंकि पालतू कुत्तों की तुलना में आवारा कुत्तों के काटने से जीवन को अधिक खतरा होता है।
आवारा कुत्ते विभिन्न बीमारियों के वाहक होते हैं और उनके काटने पर तुरंत चिकित्सा आवश्यक होती है। रैबीज के ज्यादा केस आवारा कुत्तों के काटने से ही होते हैं। यदि इसका वायरस व्यक्ति की केंद्रीय स्नायु प्रणाली में प्रवेश कर जाए तो इससे पैदा संक्रमण लगभग असाध्य होता है और कुछ ही दिनों में रोगी की जान ले बैठता है। सही ढंग से इलाज न कराने पर तो काटने के कई वर्ष बाद भी इसके विषाणु व्यक्ति को शिकार बना सकते हैं।
हाल ही की एक अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्ट के अनुसार विश्व भर में आवारा कुत्तों के काटने के चलते रैबीज से प्रतिवर्ष 59,000 से अधिक मौतें होती हैं और इनमें से सर्वाधिक 36 प्रतिशत अर्थात 20,000 से भी अधिक मौतें भारत में ही होती हैं। इससे भी अधिक बुरी बात यह है कि अधिकांश अस्पतालों द्वारा कुत्ते के काटे रोगी की बहुत कम देखभाल करने व कुत्तों के काटे केस गंभीरतापूर्वक न लेने सेे अधिकांश मौतें घरों में ही हो जाती हैं।
कुत्तों के काटने से होने वाली मौतों की तुलना में रैबीज से बचाव के लिए टीकाकृत और नसबंदी किए हुए कुत्तों की संख्या बहुत कम है। भारत में मात्र 15 प्रतिशत कुत्ते ही टीकाकरण के दायरे में हैं जबकि टीकाकरण के बाद ये कुत्ते कम काटते हैं और उनका व्यवहार भी मित्रवत हो जाता है।
बचावात्मक उपायों के प्रति जनचेतना के अभाव, अपर्याप्त कुत्ता टीकाकरण तथा कुत्ते के काटने के बाद रोगी की देखभाल में कमी और स्वास्थ्य केन्द्रों में ‘एंटी रैबीज’ दवाओं की उपलब्धता न होने के कारण भारत में यह समस्या गंभीर रूप धारण कर गई है।
कुत्तों के काटने से पैदा खतरों बारे जागृति का इतना अभाव है कि देश में केवल 70 प्रतिशत आबादी ही रैबीज के बारे में जानती है और उसमें से भी मात्र 30 प्रतिशत को ही पता है कि किसी भी जानवर के काटने के बाद घाव को सबसे पहले सादा पानी से धो लेना चाहिए और फिर साबुन लगाकर धोने के 24 घंटों के भीतर रैबीज से बचाव के टीके अवश्य लगवाने चाहिएं।
आवारा कुत्तों से भयभीत मनीमाजरा के सातवीं कक्षा के 5 छात्र-छात्राओं ने 30 नवम्बर, 2014 को पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश एस.जे. वजीफदार को एक पत्र में इस समस्या का समाधान करवाने का अनुरोध करते हुए लिखा था कि ‘‘दिन में कहीं आते-जाते समय कुत्तों के काटने का हर समय भय लगा रहता है जबकि रात को इनके लगातार भौंकने से लोग ठीक से सो भी नहीं पाते।’’
इन बच्चों ने आगे लिखा कि ‘‘केवल हमारे इलाके में 30 से 40 तक आवारा कुत्ते हैं जिनके डर के मारे हम पार्क में खेलने भी नहीं जा सकते। स्कूल आते-जाते समय भी हमें कुत्ते दौड़ाते हैं। इनके डर से लोगों का घर से निकलना तक मुश्किल हो गया है।’’ पंजाब और हरियाणा के नगरों से दायर की गई ऐसी ही अन्य याचिकाएं भी न्यायालयों में लंबित हैं।
कुत्तों के नसबंदी आप्रेशन संबंधी प्रयास भी अपर्याप्त हैं। अत: इन्हें भी तेज करने की आवश्यकता है। यदि आवारा कुत्तों की समस्या इसी प्रकार बढ़ती रही तब तो एक दिन लोगों का घर से निकलना भी मुश्किल हो जाएगा।
केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने पटियाला नगर निगम द्वारा करवाई जा रही कुत्तों की नसबंदी को लेकर हाल ही में उन पर क्रूरता बरते जाने पर अप्रसन्नता व्यक्त की थी परंतु यदि आवारा कुत्तों को पकड़ कर उनकी नसबंदी नहीं की जाएगी तो इस समस्या को किस प्रकार हल किया जा सकेगा, यह सोचने की बात है!