कांग्रेस और वामपंथियों में ‘फ्रैंडली फाइट’ की संभावना

Edited By ,Updated: 26 Apr, 2015 01:16 AM

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सीताराम येचुरी ने जब से प्रकाश कारत के हाथों से सी.पी.एम. की बागडोर ली है, कांग्रेस व वामदलों के अंतर्संबंधों में एक नए रिश्ते की प्रस्फुटन दिखाई देने लगी है,

(त्रिदीब रमण): सीताराम येचुरी ने जब से प्रकाश कारत के हाथों से सी.पी.एम. की बागडोर ली है, कांग्रेस व वामदलों के अंतर्संबंधों में एक नए रिश्ते की प्रस्फुटन दिखाई देने लगी है, ये भी कयास लगने लगे हैं कि बिहार और बंगाल में कांग्रेस तथा वामपंथी एक ‘फ्रैंडली फाइट’ की नई इबारत लिख सकते हैं। अपने पति को पार्टी की कमान मिलने की खुशी में येचुरी की पत्नी सीमा चिश्ती ने नई दिल्ली स्थित अपने आवास पर बेहद करीबी मित्रों की एक पार्टी रखी। 10-11 लोगों की इस पार्टी में दिग्विजय सिंह, गुलाम नबी आजाद जैसे कांग्रेसी दिग्गज दिखाई पड़ गए। 

वैसे भी येचुरी के पार्टी महासचिव बनने के बाद सी.पी.एम. में बंगाल बनाम केरल का झगड़ा भी खुलकर सामने आ गया है। इसका नजारा तब देखने को मिला जब पार्टी की एक ‘क्लोका डोर मीटिंग’ में केरल के कुछ पार्टी नेता बंगाल के सी.पी.एम. नेता बिमान बोस पर चढ़ बैठे और येचुरी खेमा असहाय होकर यह सब देखता रहा, उसके बाद ही यह जुमला बेतरह उछला कि- ‘बेंगाल टाइगर हैज गॉन फॉर ए स्लीप’ यानी बंगाल टाइगर सोने चला गया।
 
वरुण की आशा
गांधी परिवार के भगवा चिराग वरुण गांधी अपने एक नए बौद्धिक अवतार में सामने आए हैं। भले ही मोदी-युगीन पार्टी उनके लिए नई भूमिका पारिभाषित नहीं कर पा रही हो पर भाजपा के यह पूर्व महासचिव व सुल्तानपुर के सांसद इन दिनों लगातार विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं में विचारोत्तेजक लेख लिखने में जुटे हैं। अब तक वरुण-रेलवे सुधार, स्मार्ट सिटी, स्वास्थ्य व्यवस्था, शिक्षा नीति और किसानों की दुर्दशा को लेकर कई लेख लिख चुके हैं, अब इस 29 तारीख को उनकी कविताओं का संग्रह ‘स्टिलनैस’ यानी ‘स्थित प्रज्ञता’ बाजार में आने को तैयार है। इस पुस्तक को हार्पर कॉङ्क्षलस ने छापा है। 
 
वरुण ने अपना यह संग्रह अपनी दिवंगत नानी श्रीमती अमतेश्वर आनंद की स्मृतियों को समपत किया है। इस कविता संग्रह की ‘होप’ यानी ‘आशा’ कविता में वरुण लिखते हैं (उसका हिन्दी तर्जुमा पेश है)-
 
‘तेरी आवाज मुझे देती है अतीत को बिसराने की ताकत जब भी देखता हूं प्रतिच्छाया अपनी तब इल्म होता है मुझे अपनी अंतस की यात्रा का और तब रहता है मुझे इंतजार वक्त के पुरस्कार का।’
 
क्या इन पंक्तियों में वरुण की अपनी मौजूदा राजनीति की झलक दिखाई नहीं देती?
 
जेतली की नई प्रशंसक मैडम गांधी!
महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित जे.जे. बिल को जिसमें जूविनाइल की उम्र 18 से 16 वर्ष करने की बात कही गई है, कैबिनेट से पास कराने के लिए विभाग की मंत्री मेनका गांधी को न जाने कितने पापड़ बेलने पड़े। जब इस बिल का मसौदा कैबिनेट के समक्ष आया तो दो मंत्रियों यानी अकाली दल की हरसिमरत कौर बादल और तेदेपा के अशोक गणपति राजू ने इसका खासा विरोध दर्ज कराया कि नाबालिगों से बचपने में कई अपराध हो जाते हैं। 
 
इस पर अरुण जेतली ने मोर्चा संभाला व इस बिल के समर्थन में जेतली के अकाटय तर्कों के समक्ष तमाम मंत्रियों ने हथियार डाल दिए और कैबिनेट से यह बिल क्लियर हो गया। कैबिनेट की मीटिंग से जब तमाम मंत्रिगण बाहर आने लगे तो मेनका खास तौर से अरुण जेतली के पास गईं तथा विनम्र स्वरों में उनसे कहा-‘भले ही बाहर इस बिल का श्रेय मुझे मिले पर इस श्रेय के असली हकदार तो आप ही हैं।’ 
 
मोदी का मीडिया मैनेजमैंट
मोदी विरोध की अलख जगाने वाले देश के एक सबसे बड़े मीडिया समूह के मालिक प्रधानमंत्री से मिलने पहुंचे, इनके ‘नेशन वांट्स टू नो’ खटराग अलापने वाले चैनल प्रमुख का कार्यकाल इस नवम्बर में रिन्यूू होना है। सूत्र बताते हैं कि इन देसी मीडिया मुगल से मोदी ने निहायत साफगोई और तल्खी से कहा कि आपका चैनल और प्रकाशन समूह मेरी सरकार की इमेज प्रो-पूंजीवादी प्रोजैक्ट कर रहा है, यह कोई अच्छी बात नहीं है, आपको तो मालूम है कि मेरा एप्रोच हमेशा से ‘प्रो-पीपल’ रहा है। 
 
देसी मीडिया मुगलों ने प्रधानमंत्री के समक्ष हथियार डालते हुए कहा- ‘हम अपने न्यूज चैनल या अखबार में अपना रोजाना हस्तक्षेप नहीं रखते हैं, बेहतर यह रहेगा कि आप हमारे न्यूज चैनल व अखबार में सीनियर पोजीशन के लिए अपने कुछ लोग सजैस्ट कर दीजिए जो सरकार का नजरिया ठीक से सामने रख सकें, हम उन्हें नौकरी पर रख लेंगे।’ 
 
...और अंत में 
बिहार के यह आसन्न विधानसभा चुनाव मोदी-शाह जोड़ी के लिए अग्नि परीक्षा के सदृश हैं। भाजपा के अंदरूनी सर्वेक्षण में पसंदीदा नेताओं की सूची में सुशील मोदी रैंकिंग में बेतरह लुढ़क गए हैं परन्तु भाजपा के एक प्रमुख केंद्रीय नेता जिन्हें मोदी का सबसे ज्यादा विश्वासपात्र माना जाता है, वे लगातार मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के लिए सुशील मोदी के नाम की पैरवी कर रहे हैं। 
 
वहीं केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन और रवि शंकर प्रसाद इन दिनों मोदी के सबसे विश्वासपात्रों के तौर पर उभर कर सामने आए हैं। राधामोहन सिंह को कभी राजनाथ सिंह कैंप का एक मजबूत स्तंभ माना जाता था, पर सियासत में निष्ठ अक्सर समय सापेक्ष हुआ करती है, चुनांचे पिछले दिनों मोदी ने जिस तरह से राधामोहन सिंह की जी खोलकर तारीफ की, उससे ये भी कयास लगाए जा रहे हैं कि बिहार चुनाव के संदर्भ में राधामोहन भी भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री पद के दावेदार हो सकते हैं अगर राजग वहां बहुमत के लिए जरूरी आंकड़े को छू पाता है।      
 

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