संतोष ही सबसे बड़ा धन

Edited By ,Updated: 26 Apr, 2015 11:50 AM

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इस संसार में आज तक किसी को भी प्राप्त धन से, इस जीवन से और खान-पान से पूर्ण तृप्ति कभी नहीं मिली । पहले भी अब भी और आगे भी इन चीजों से संतोष होने वाला नहीं है.....

धनेषु जीवितव्येषु स्त्रीषु चाहारकर्मसु।
अतृप्त: प्राणिन: सर्वेयाता यास्यन्ति यान्ति च।।


अर्थ : इस संसार में आज तक किसी को भी प्राप्त धन से, इस जीवन से और खान-पान से पूर्ण तृप्ति कभी नहीं मिली । पहले भी अब भी और आगे भी इन चीजों से संतोष होने वाला नहीं है । इनका जितना अधिक उपभोग किया जाता है उतनी ही तृष्णा बढ़ती जाती है ।। 13।।

भावार्थ : मनुष्य की इच्छाएं अनन्त हैं । वे कभी पूरी नहीं होतीं । एक इच्छा के पूर्ण होते ही दूसरी सामने आकर खड़ी हो जाती है । तात्पर्य यह कि मनुष्य अपने आप से कभी संतुष्ट नहीं होता । अत: संतोष ही सबसे बड़ा धन है ।

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