‘मोदी और केजरीवाल ‘तानाशाही’ के प्रतीक’

Edited By ,Updated: 26 Apr, 2015 05:47 PM

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एकता परिषद के संस्थापक और गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता पी.वी. राजगोपाल लोकतांत्रिक व्यवस्था में ‘भारी बहुमत’ से सत्ता में आए राजनेताओं के क्रियाकलाप को देश और समाज के लिए हानिकर मानते हैं।

भोपाल: एकता परिषद के संस्थापक और गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता पी.वी. राजगोपाल लोकतांत्रिक व्यवस्था में ‘भारी बहुमत’ से सत्ता में आए राजनेताओं के क्रियाकलाप को देश और समाज के लिए हानिकर मानते हैं। उनका कहना है कि भारी बहुमत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को ‘तानाशाही’ का प्रतीक बना दिया है। ये नेता डेमोक्रेसी के ‘डिक्टेटर’ बन गए हैं। 

मध्य प्रदेश की राजधानी आए राजगोपाल ने बातचीत में सत्तधारी राजनीतिक दलों के रवैए के चलते समाज में बढ़ते असुरक्षा के भाव पर बेवाक राय रखी। उन्होंने कहा कि राजनीतिक दल सत्ता में आने के बाद यह भूल चले हैं कि उनकी समाज के प्रति क्या जिम्मेदारी व जवाबदारी है। ऐसा इसलिए हुआ है, क्योंकि उन्हें जनता ने भारी बहुमत दे दिया है, जिसकी उन्हें उम्मीद नहीं थी। विपक्ष बचा नहीं, नतीजा यह कि वे तानाशाह हो गए।

केंद्र सरकार के भूमि अधिग्रहण कानून को राजगोपाल जन-विरोधी मानते हैं। उनका कहना है कि जिन लोगों ने चुनाव जिताने में मोदी की मदद की थी, आज मोदी उन्हीं लोगों के लिए काम कर रहे हैं। उन्हें बड़े उद्योगपतियों का कर्ज चुकाना है। यही कारण है कि एक ऐसा कानून लाया जा रहा है, जिसमें मनमाने तरीके से किसी की भी जमीन छीन ली जाएगी। हर तरफ जल, जंगल और जमीन की लूट मची है। जो इसके खिलाफ आवाज उठाता है, उसे दबाने की हर संभव कोशिश होती है।

एक सवाल के जवाब में राजगोपाल ने कहा कि मोदी सरकार ने सामाजिक आंदोलनों को कुचलने का कुचक्र चला रखा है, अपरोक्ष रूप से सामाजिक संगठनों पर आपातकाल (इमरजेंसी) लगा हुआ है। जो आवाज उठा रहा है, उसे दबाया जा रहा है। एफसीआरए के तहत सामाजिक संगठनों का फिर से पंजीयन कराया जा रहा है और इसके चलते 13 हजार से अधिक संगठनों को प्रतिबंधित कर दिया गया है। उन्होंने कहा, ‘मोदी सरकार सामाजिक व मानवाधिकार आंदोलनों को दबाने के लिए हर हथकंडा अपनाने में पीछे नहीं है।’ 

जनांदोलनों की ताकत का हवाला देते हुए राजगोपाल कहते हैं कि आंदोलनों को दबाना आसान नहीं है। भूमि अधिग्रहण कानून को लेकर देश के किसान तय कर चुके हैं कि उन्हें भले ही बड़ी कीमत चुकाना पड़े, मगर ऐसे काले कानून को वह अमल में नहीं आने देंगे। अगर सरकार अपनी जिद पर अड़ी रही तो यह देश ‘रणभूमि’ में बदल जाएगा, यहां जमीन पाने के लिए खून बहेगा। भट्टा पारसौल को यह देश अभी भूला नहीं है।

राजगोपाल के मुताबिक, मोदी विश्वबैंक की नजर में स्वयं को स्थापित करना चाहते हैं और यही कारण है कि उसी के मुताबिक नीतियों में बदलाव कर रहे हैं। विश्वबैंक की ग्रेडिंग में भारत 142वें स्थान पर है, मोदी इसे 50 के भीतर लाना चाहते हैं। इसके लिए जरूरी है कि विश्वबैंक की मंशा के मुताबिक निवेश को प्रोत्साहित किया जाए। 

उन्होंने कहा कि कड़वा सच यह है कि निवेश तभी आएगा, जब कंपनियों को श्रम कानून, आदिवासी कानून व पर्यावरण कानून से खिलवाड़ की अनुमति मिले और अदालतों का भी रुख बदले। इसके लिए मोदी सरकार हर संभव कदम भी उठा रही है। इस सरकार को देश की मानव विकासवादी संस्कृति की परवाह तक नहीं है, यह तो भौतिकवादी संस्कृति को बढ़ावा देने में लग गई है। 

गांधी शांति प्रतिष्ठान के उपाध्यक्ष राजगोपाल ने आगे कहा कि एक तरफ जहां बहुमत के चलते मोदी तानाशाह जैसा बर्ताव कर रहे हैं, वही हाल दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल की है। आंदोलन में लेागों ने उनका जो चेहरा देखा था, अब वह उसके उलट नजर आने लगे हैं। वह हमेशा लोकतंत्र और पारदर्शिता के बात करते थे, मगर अब क्या कर रहे हैं, यह सबके सामने है। 

उन्होंने कहा कि मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार को लेकर धारणा बन गई थी कि यह सरकार भ्रष्ट है और आखिकार उसे सत्ता गंवानी पड़ी। अब मोदी सरकार के बारे में धारणा बन चली है कि यह किसान विरोधी, जन विरोधी और पूंजीपति समर्थक सरकार है। साल पूरा होते-होते इस सरकार की चमक फीकी पड़ चली है, लिहाजा अगले चुनाव में इसका भी जाना तय है।

एक सवाल के जवाब में राजगोपाल ने कहा कि देश में जनसंगठनों की कमी नहीं है, इन संगठनों में कोई माक्र्सवादी, समाजवादी, गांधीवादी तो कोई अंबेडकरवादी विचारधारा को लेकर चल रहा है। इन सभी को एकजुट होना होगा। जनसंगठनों को एकजुट देखकर सरकार सचेत होगी और उसे समाज व संस्कृति विरोधी कदम पीछे खींचने को मजबूर होना पड़ेगा।

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