Edited By ,Updated: 27 Apr, 2015 02:37 AM
शीत मरुभूमि की विकट परिस्थितियों को चुनौती देने और सरहदों पर सेना के लिए युद्ध हथियारों को पहुंचाने वाले विलुप्त प्राय: प्रजाति के चमुर्थी घोड़ों का कोई विकल्प नहीं।
रामपुर बुशहर : शीत मरुभूमि की विकट परिस्थितियों को चुनौती देने और सरहदों पर सेना के लिए युद्ध हथियारों को पहुंचाने वाले विलुप्त प्राय: प्रजाति के चमुर्थी घोड़ों का कोई विकल्प नहीं।
चमुर्थी घोड़े को पहाड़ों का जहाज भी कहा जाता है। चमुर्थी प्रजाति के घोड़ों का व्यापार लद्दाख और रामपुर के अंतर्राष्ट्रीय लवी मेले में खूब होता है। उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक विश्व में चमुर्थी घोड़ों की संख्या करीब 3 हजार है जिसमें से करीब एक हजार हिमाचल प्रदेश में हैं।
यह है खासियत
शीत मरुभूमि हो या फिर बर्फीलेे पहाड़, चमुर्थी की सवारी को यहां आरामदायक और सुरक्षित माना जाता है। ये जानवर संकरे रास्तों पर भी सरपट दौड़ते हैं। चमुर्थी अंदाजा पहले ही लगा लेता है कि नदी-नाले के ऊपर बर्फ कितनी जमी है और बर्फ के टूट कर पानी में बहने का खतरा है या नहीं। पशुपालक नदी के ऊपर जमी बर्फ में पहले उसे गुजारते हैं जहां बर्फ टूट कर नदी में बहने खतरा हो तो उस स्थान को पहले ही यह जानवर भांप कर वापस आ जाता है।
चमुर्थी अंधेरा हो या बर्फ जमी हो, हिफाजत से रास्ता तय करता है। चमुर्थी का कद 12 से 14 हाथ ऊंचा होता है। यह जानवर माइनस 30 से प्लस 30 डिग्री तापमान में रहने की क्षमता रखता है। इसमें भूखे रहने और ठंड सहने की भी अधिक क्षमता है।