Edited By ,Updated: 05 May, 2015 07:39 PM
भोले बाबा श्री हरि विष्णु के अन्नय भक्त हैं। जब-जब श्री हरि ने लोक कल्याण के लिए अवतार धारण किए भोले बाबा उनके दर्शनों के लिए अलग-अलग रूप धारण कर गए।
भोले बाबा श्री हरि विष्णु के अन्नय भक्त हैं। जब-जब श्री हरि ने लोक कल्याण के लिए अवतार धारण किए भोले बाबा उनके दर्शनों के लिए अलग-अलग रूप धारण कर गए। जब श्री हरि ने मोहिनी अवतार लिया तो भोले बाबा उनके इस रूप के दर्शनों से वंचित रह गए। जब उन्होंने अन्य देवगणों से मोहिनी रूप की सुंदरता का बखान सुना तो उनके मन में भगवान के मोहिनी रूप को देखने की तीव्र इच्छा हुई।
वह बैकुण्ठ लोक में श्री हरि के पास गए और उन्हें अपने मोहिनी रूप का दर्शन करवाने के लिए विनती करने लगे। श्री हरि ने कहा मेरा वह रूप बहुत ही मनमोहक था। जोकि दैत्यों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए मैंने लिया था। आप वो रूप न ही देखें तो अच्छा है अन्यथा आप खुद पर नियंत्रण नहीं रख पाएंगे।
भोले बाबा को तो अपने इष्ट के दर्शन करने थे वह उनसे बहुत अनुनय विनय करने लगे। भगवान अपने भक्त के हठ के समक्ष झुक गए और उन्होंने अपने भक्त की प्रसन्नता के लिए एक बार फिर से मोहिनी रूप धारण किया। श्री हरि का यह रूप बहुत ही मनमोहक और आकर्षक था।
उस रूप को देख कर भोले बाबा अपनी सुध-बुध खो बैठे और मोहिनी को पकड़ने के लिए वह उसकी ओर बढ़ने लगे। मोहिनी आगे-आगे भागने लगी और भोले बाबा उसके पीछे-पीछे। मोहिनी अपने पीछे-पीछे भोले बाबा को साधु-महात्माओं के आश्रम से लेकर तीनों लोक घुमा आई।
माना जाता है की इस बीच भोले बाबा का वीर्य स्खलित हो गया जहां-जहां उस वीर्य की बूंदे गिरी वह स्थान गंगोत्री था। दरसल भगवान शंकर का वीर्य ही जगत में व्याप्त पारा है अर्थात सर्वजगत में अमुल्य पारद तत्व है। गंगाजल के कण-कण में पारद है। शास्त्रानुसार यह पारद ही है जो संपूर्ण जगत के सर्जन का मूलाधार है क्योंकि संपूर्ण जगत ही आदि शक्ति के रज अर्थात गंधक और शिव की वीर्य अर्थात पारद से बना है।
आचार्य कमल नंदलाल
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