कट्टरपंथी अलगाववादी गिलानी का दूसरा चेहरा

Edited By ,Updated: 04 May, 2015 01:55 AM

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सिर्फ 16 दिन के अंतराल के बाद कट्टरवादी हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी ने 1 मई को घाटी में अपनी दूसरी सभा को सम्बोधित किया।

सिर्फ 16 दिन के अंतराल के बाद कट्टरवादी हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी ने 1 मई को घाटी में अपनी दूसरी सभा को सम्बोधित किया। इस बार उन्होंने श्रीनगर से 45 किलोमीटर दूर दक्षिण कश्मीर में पृथकतावादियों के गढ़ त्राल को चुना। वर्ष 2008 के बाद इस अत्यंत अशांत शहर में यह उनका पहला दौरा था। इससे पूर्व 18 अप्रैल को गिलानी ने इस इलाके के शीर्ष अलगाववादी सरगना खालिद मुजफ्फर के बड़े भाई की हत्या के विरुद्ध आयोजित प्रदर्शन की योजना बनाई थी लेकिन सरकार द्वारा घाटी में उनकी पहली रैली के बाद ही उन्हें घर में नजरबंद कर दिए जाने के कारण  वह ऐसा नहीं कर सके।

लेकिन यह गर्मदलीय हुर्रियत नेता सुरक्षा प्रबंधों को धत्ता बताते हुए 1 मई को सुबह-सवेरे ही घर से निकल गया। श्रीनगर में उनकी पहली रैली की भांति ही त्राल स्थित जामा मस्जिद परिसर में भी जब वह लोगों को सम्बोधित कर रहे थे तो उस समय लोगों के हाथ में पाकिस्तानी झंडे थे और वे पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगा रहे थे। 
 
अपने भाषण में गिलानी ने विस्थापित कश्मीरी पंडितों के लिए अलग टाऊनशिप का विरोध किया लेकिन अपनी मांगों की लम्बी सूची में 2 और नए मुद्दे जोड़ दिए। उन्होंने सरकार को श्री अमरनाथ यात्रा की अवधि एक महीने से अधिक न रखने की चेतावनी दी और इसके साथ ही यह भी कहा कि यदि इस यात्रा के लिए मात्र 15 दिनों की ही अनुमति दी जाए तो ज्यादा अच्छा होगा।
 
गिलानी के भाषण में जो दूसरी नई बात थी वह थी उनका मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के विरुद्ध प्रलाप। सईद की आलोचना करते हुए गिलानी ने उन्हें  ‘सबसे बड़ा दुष्ट’  तथा एक ‘शक्तिविहीन कठपुतली’ करार दिया जिसकी डोर दिल्ली सरकार के हाथ में है। 
 
यह 85 वर्षीय कट्टरवादी पृथकतावादी पूर्व में ‘जमात-ए-इस्लामी कश्मीर’ के सदस्य थे लेकिन बाद में उन्होंने अपनी पार्टी ‘तहरीक-ए-हुर्रियत’ का गठन किया। वह सर्वदलीय हुर्रियत कांफ्रैंस के चेयरमैन भी रहे जो कि 1993 में एक राजनीतिक मोर्चा बनाने वाले 26 राजनीतिक और धार्मिक संगठनों का गठबंधन था परंतु बाद में विभिन्न धड़ों में बंट गया।
 
कश्मीरी युवकों को जेहाद और पत्थरबाजी के लिए उकसाने के लिए गिलानी की हमेशा आलोचना होती रही है। समय-समय पर गिरफ्तार पत्थरबाजों ने यह बात स्वीकार की है कि सुरक्षा बलों पर पत्थर बरसाने के लिए हर शुक्रवार को उन्हें 400 रुपए प्रत्येक व्यक्ति के हिसाब से दिए जाते थे। इसके लिए गिलानी के स्थानीय समर्थक धन एकत्रित करते थे। यहां तक कि पाकिस्तान स्थित ‘लश्कर-ए-तोयबा’ भी इसमें शामिल था लेकिन सर्वाधिक आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि सभी पूर्ववर्ती और वर्तमान हुर्रियत नेताओं ने अपने खुद के बच्चों और परिवार के सदस्यों को बेहतरीन शिक्षा दिलाने के लिए या तो भारत के अन्य हिस्सों में भेजा या विदेशों में।
 
स्वयं गिलानी भी 2007 में गुर्दे के कैंसर का पता चलने पर इलाज के लिए पाकिस्तान नहीं गए। जहां उस समय उनका बड़ा बेटा और बहू डाक्टरी करते थे। इसकी बजाय उन्होंने दिल्ली के अपोलो अस्पताल तथा मुम्बई में अपना इलाज करवाया क्योंकि अमरीका, इंगलैंड और यूरोपीय संघ के देशों ने आतंकवाद के समर्थन और अमरीका विरोधी स्टैंड के कारण गिलानी को वीजा देने से इंकार कर दिया था। 
 
यही नहीं, उनका बेटा नईम दिल का दौरा पडऩे पर 12 वर्ष के बाद पाकिस्तान से भारत लौट आया था क्योंकि वह पाकिस्तान की नागरिकता नहीं चाहता था। हालांकि गिलानी की छोटी बेटी जद्दा में रहती है लेकिन वह इलाज के लिए मध्य पूर्व के किसी देश में भी नहीं गए। यही नहीं पिछले महीने अपनी पहली रैली के बाद उनके एक बार फिर बीमार होने पर उन्होंने अपना इलाज गुडग़ांव के एक प्रसिद्ध अस्पताल में करवाया था।
 
उनका एक मकान दिल्ली के मालवीय नगर में भी है जहां उनका दूसरा बेटा अपने परिवार के साथ रहता है। इसी प्रकार अन्य तमाम हुर्रियत नेता और यहां तक कि पूर्व हुर्रियत सदस्य भी भारत के किसी भी हिस्से में बसने या मकान खरीदने के विरुद्ध नहीं हैं लेकिन वे यह नहीं चाहते कि जम्मू-कश्मीर में हिंदू 15 दिन से अधिक तीर्थ यात्रा के लिए आएं।
 
जहां तक पाकिस्तान द्वारा पृथकतावादियों के पक्ष में खड़े होने और पंडितों के लिए अलग कालोनी का विरोध करने तथा संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के अनुसार कश्मीर समस्या हल करने की जिद का संबंध है, उसके लिए बेहतर होगा कि वे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव  का पुनरावलोकन कर ले क्योंकि कश्मीर को नवम्बर 2010 में विवादास्पद क्षेत्रों की सूची में से हटाया जा चुका है। 
 

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