हत्या देवी मंदिर में शव से साबित हुई राजकुमारी की पवित्रता!

Edited By ,Updated: 20 May, 2015 04:17 PM

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हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में हत्या देवी का मंदिर है। जो वर्ष में केवल एक ही दिन खुलता है। यहां हत्या देवी का पूजन होता है। यहां देश-विदेश से भक्त दर्शन करने और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए आते हैं। मंदिर का इतिहास बहुत ही दिलचस्प है।

हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में हत्या देवी का मंदिर है। जो वर्ष में केवल एक ही दिन खुलता है। यहां हत्या देवी का पूजन होता है। यहां देश-विदेश से भक्त दर्शन करने और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए आते हैं। मंदिर का इतिहास बहुत ही दिलचस्प है।
 

प्राचीनकाल में हिमाचल के मंडी जिले का नाम सुकेत था। रूप सेन के तीन बेटे थे। उन्हीं में से एक वीरसेन नाम के बेटे ने इस स्थान को बसाया था।
 
माना जाता है कि राजा राम सेन की बेटी राजकुमारी चंद्रावती भगवान गौरी-शंकर की भक्त थीं। एक समय की बात है राजकुमारी महल में अपनी सखियों के संग खेल रही थी। खेल में भाग लेने वाली सभी लड़कियां ही थी लेकिन एक सखी ने पुरूष रूप बना रखा था। वह सभी खेल में मग्न थी। उसी वक्त वहां से राज पुरोहित निकले तो उन्होंने पुरूष रूप सखी के साथ राजकुमारी को देखा तो राजा से जाकर कहा कि राजकुमारी किसी पुरूष के साथ हैं।
 
राजा ने क्रोध में आकर उसी समय राजकुमारी को अपने राज्य की शीतकालीन राजधानी पागंणा में भेज दिया। जब राजकुमारी को इस बात का ज्ञात हुआ तो उन्होंने इसे अपना तिरस्कार समझा। स्वयं को पावन और शुद्ध साबित करने के लिए उन्होंने रती नाम का विषाक्त बीज एक पत्थर पर पिसकर खा लिया। जिससे उनकी मौत हो गई। जिस पत्थर पर उन्होंने बीज को पीसा था वह पत्थर आज भी पागंणा में देखा जा सकता है।
 
मरनोपरांत राजकुमारी ने अपने पिता के सपने में आकर कहा कि मेरी काया को महामाया देवी कोट मंदिर पागंणा के बाह्यांचल में दबाया जाए। छह महीने के उपरांत पुन मेरा देह जमीन में से निकालना। अगर मैं पावन हुई तो मेरी देह यथावत रहेगी और न हुई तो सड़ जाएगी। राजा ने अपनी पुत्री की अभिलाषा पूर्ण की और उसके कहे अनुसार उसकी अंत्येष्टि की।
 
छह माह पश्चात पागंणा के बाह्यांचल को खोदकर जब राजकुमारी के शव को निकाला गया तो वह यथावत था। राजकुमारी चंद्रावती पवित्र और पावन थी यह सिद्ध होने के बाद राजा को बहुत मलाल हुआ। चंद्रावती की इच्छा अनुसार उनके पार्थिव शरीर की वहां अंतेष्टि की जाए जहां इससे पूर्व कभी किसी का अंतिम संस्कार न हुआ हो। उनके पिता ने चंदपुर नामक स्‍थान पर शव का अंतिम संस्कार किया और उनकी इच्छा के अनुसार भगवान गौरी-शंकर का मंदिर भी बनवाया गया। आज के दौर में इस मंदिर को दक्षिणेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।
 
महामाया देवी कोट मंदिर पागंणा के छह मंजिला भवन बने मंदिर में राजकुमारी चंद्रावती को हत्या देवी नाम से पूजा जाता है। आम जनमानस इस मंदिर के दर्शन हमेशा नहीं कर सकता केवल विशेष दिन पर ही इसे खोला जाता है। 

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