Edited By ,Updated: 21 May, 2015 12:19 PM
कुंडली में राहु-केतु के संयोग से उत्पन्न पितृदोष (शाप) के कारण अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिनका कोई स्पष्ट कारण भी समझ में नहीं आता है।
कुंडली में राहु-केतु के संयोग से उत्पन्न पितृदोष (शाप) के कारण अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिनका कोई स्पष्ट कारण भी समझ में नहीं आता है। अत: पितृदोष के कारण उत्पन्न समस्याओं को प्रत्यक्ष लक्षण पहचान कर समझा जा सकता है तथा उसी के अनुसार उनका निदान किया जा सकता है।
समस्या : पुत्री का विवाह न होना, हर समय विपत्ति आपदा, बीमारी, कष्ट, पारिवारिक कलह, संतान न होना, ऋण, मुकद्दमा।
कुंडली में ग्रह स्थिति से पहचान : राहु-केतु जिस भाव (घर) में स्थित होते हैं, उसे तो नष्ट करते ही हैं और जिस किसी ग्रह के साथ युति संयोग करते हैं या उस ग्रह पर दृष्टि डालते हैं, उस ग्रह से संबंधित पितृदोष भी देते हैं।
सर्पश्राप दोष
चंद्रमा के साथ राहु की युति किसी स्थान में हो तो सर्पश्राप दोष नामक पितृदोष बनता है। यह योग जिस भाव में होता है, उस भाव को नष्ट कर, उससे संबंधित विचारणीय मामलों में अशुभफल देता है।
पितृश्राप दोष (पितृदोष )-
यदि 1, 5 भाव में सूर्य मंगल शनि स्थित हों तथा 8, 12 भाव में राहु, बृहस्पति स्थित हों तो यह पितृदोष बनता है।
मातृदोष : 4, 5 भाव में शनि तथा राहु हो तो मातृदोष बनता है।
मातुल (मामा) दोष- 5, 6 भाव में शनि राहु हो तो यह दोष बनता है।
स्त्रीदोष द्वारा पितृदोष : 7 भाव में पापग्रह तथा राहु की स्थिति हो तो यह दोष बनता है।
ब्राह्मण दोष द्वारा पितृदोष : बृहस्पति से राहु कहीं भी युति करे तो यह दोष बनता है। यह दोष ब्राह्मण के अपमान में अपशब्द कह देने से बनता है।
नोट : संक्षेप में कुंडली के किसी भी भाव में राहु के साथ जो भी ग्रह बैठा हो उसका दोष इस प्रकार पहचाना जा सकता है।
राहु चंद्रमा की युति से मातृदोष, राहु सूर्य की युति से पितृदोष, राहु बृहस्पति की युति ब्राह्मण (बाबा) का दोष, राहु मंगल की युति से भाई का दोष, राहु बुध की युति से बहन, पुत्री, बुआ का दोष, राहु शुक्र की युति से सर्प, संतान दोष, राहु द्वादश भाव में होने से प्रेत श्राप दोष बनता है।
नोट : प्रेत श्राप दूर करने के लिए श्रीमद् भागवत पुराण सप्ताह का आयोजन करना चाहिए।
पितृदोष पर विशेष : पिता का कारक ऊर्जा का स्रोत सूर्य जब कष्टप्रद स्थिति में पीड़ित होता है तो पितृऋण के कारण जातक को अनेक दुख तथा शारीरिक, मानसिक कष्ट भोगने पड़ते हैं तथा उनका प्रत्यक्ष कारण भी नहीं पता चलता। सिंह राशि का राश्यंक 5 होता है। नैसर्गिक कुंडली में पंचमेश सूर्य होता है अत: पितृदोष जानने के लिए पंचम भाव देखना महत्वपूर्ण होता है।
सूर्य कर्क वृश्चिक मीन, वृषभ कन्या मकर में हो अथवा इन राशियों में राहु से युत हो तो पितृदोष होता है। इसी प्रकार अग्नि राशि मेष, सिंह धनु में राहु (दलदली भूमि का स्वामी अथवा केतु मेष धनु राशि (स्वर्ग के जल का स्वामी केतु होता है) तो पितृदोष होता है।
नोट : केतु यदि सिंह राशि में हो तो यह दोष नहीं होता है।
पितृदोष के प्रत्यक्ष लक्षण : यदि जातक अपना जन्म स्थान सदैव के लिए त्याग करके 300 किलोमीटर से दूर जाकर बस जाता है, पैतृक मकान को नष्ट करता है या बेच देता है तो पितृदोष समझना चाहिए।
पितृ दोष का अशुभ फल : कुंडली के सिंह राशि से वृश्चिक राशि तक के सभी 4 भाव कार्यहीन या फलहीन हो जाते हैं और इनसे संबंधित विचारणीय मामलों में अशुभ फल भयानक कष्ट मिलता है।
पितृदोष की पहचान के कुंडली की ग्रह स्थिति के अलावा अन्य लक्षण:
(क) जातक के मकान या पैतृक मकान की छत पर टूटी लकड़ी का सामान या बेकार लकड़ी या अन्य सामान पड़ा हो या गल रहा हो।
(ख) मकान में कहीं अपारदर्शी कांच या शीशा टूटा-फूटा पड़ा होगा।