डेरा बाबा लुटरू महादेव: यहां गाय के थनों से निकलता है पानी

Edited By ,Updated: 23 May, 2015 10:59 AM

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देवभूमि के नाम से विख्यात हिमालय की गोद में बसा सुन्दर भू-भाग भारत का एक मनोहारी प्रदेश है हिमाचल। यहां की सांस्कृतिक धरोहर भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठतम धरोहर है जो परम्परागत विश्वासों, आस्थाओं एवं स्मृतियों के साथ आज भी जीवन्त एवं गतिशील है।

देवभूमि के नाम से विख्यात हिमालय की गोद में बसा सुन्दर भू-भाग भारत का एक मनोहारी प्रदेश है हिमाचल। यहां की सांस्कृतिक धरोहर भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठतम धरोहर है जो परम्परागत विश्वासों, आस्थाओं एवं स्मृतियों के साथ आज भी जीवन्त एवं गतिशील है। सोलन जिला को प्रदेश का प्रवेश द्वार माना जाता है तथा अर्की जिला सोलन की एक प्रमुख तहसील है ।  

स्वतन्त्रता पूर्व अर्की बाघल रियासत के नाम से प्रसिद्ध थी। उपमण्डल में प्राचीन मन्दिरों व गुफाओं की भरमार है । यहां नगर के शीश पर पवित्र लुटरू महादेव गुफा स्थित है। लुटरू महादेव रूद्र रूप शिवजी की आदि गुफा है। आदि काल से प्राकृतिक स्वनिर्मित शिवलिंग के कारण बाघल रियासत की स्थापना से पूर्व साधु सन्त यहां एकान्त वास करते रहे हैं। 

डेरा बाबा लुटरू ऊना की तरह यह भी रूद्र शिव का पावन स्थल है । लुटरू शब्द रूद्र ,रूदर, लुदर, लुदरू और लुटरू में भाषा परिवर्तन से अस्तित्व में आया। प्राचीन लुटरू महादेव गुफा एक प्राकृतिक चमत्कार की तरह है। आग्रेय चट्टानों से निर्मित इस गुफा की लम्बाई पूर्व से पश्चिम की तरफ लगभग 25 फूट तथा उत्तर से दक्षिण की ओर 42 फूट है । गुफा की ऊंचाई तल से 6 फूट से 30 फूट तक है ।  

यह इस प्रकार स्वनिर्मित है कि वर्षाकाल में पानी की बौछारे आसमान से इसमें प्रवेश नहीं कर सकती। गुफा के ऊपर ढलुआ चट्टान के रूप में एक कोने से प्रकाश अन्दर आ सकता है । गुफा की ऊंचाई समुद्र तल से  लगभग 5500 फूट है तथा इसके चारों ओर 150 फूट का क्षेत्र एक विस्तृत चट्टान के रूप में फैला है । गुफा के अन्दर मध्य भाग में 8.लम्बी प्राचीन प्राकृतिक शिव की पिंडी विद्यमान है । गुफा की छत में परतदार चट्टानों के रूप में भिन्न-भिन्न लम्बाईयों के छोटे-बड़े गाय के थनों के आकार के शिवलिंग दिखाई पड़ते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार इनसे दूध की धारा बहती थी लेकिल अब वर्तमान में इन प्राकृतिक थनों से पानी की कुछ बुन्दे टपकती रहती हैं जिन्हें देख कर आज भी मानव आश्चर्यचकित हो जाता है।  

लुटरू गुफा को भगवान परशुराम की कर्म स्थली भी कहा जाता है । सहस्र बाहु को मारने के बाद जब परशुराम पिता के आदेश से शिव की अराधना करने हिमालय में आए थे तो उनके चरण यहां पड़े थे। पौराणिक मान्यता के अनुसार राजा भागीरथ के प्रयत्न से गंगा स्वर्ग में शिवजी की जटाओं में सिमटी थी तो इसके छींटे यहां लुटरू धार पर भी पड़े थे जो आज भी शकनी गंगा के रूप में विद्यमान है तथा यही से अर्की नगर के लिए पानी की आपूर्ति की जाती है । 

1805 ई. में गोरखों ने जब बाघल रियासत पर आक्रमण किया था तो गुफा को उस समय उन्होंने अपना आवास बनाया था। गोरखा सेनापति अमर सिंह राणा ने अर्की नगर को बाघल रियासत की राजधानी बनाया था। आज से 40 वर्ष पूर्व बाबा शीलनाथ जी यहां बैठा करते थे जो पंजाब के चमकौर साहिब के शिव मन्दिर के महान महात्माओं में से एक थे। वर्ष 1982 में केरल राज्य में जन्में महात्मा सन्मोगानन्द सरस्वती जी महाराज का यहां आगमन हुआ था जिन्होंने इसका विस्तार करने में खासी रूचि दिखाई थी। आज यहां उनकी समाधि बनी है ।  यहां आज भी लोग दूर-दूर से गुफा के दर्शन करने आते हैं। हर वर्ष महाशिवरात्रि के पर्व को यहां विशाल मेला लगता है ।  

आजकल बाबा भारती जी व महात्मा विजय भारती जी यहां विराजमान हैं तथा उनकी देख-रेख में इसके संचालन के लिए लुटरू महादेव सुधार सभा का गठन भी किया गया है । वर्तमान में गुफा में प्रवेश के लिए लगभग 100 सिढ़िया बनाई गई हैं तथा गुफा के नीचे विशाल धर्मशाला का निर्माण किया गया है । सुधार समित के सदस्य मनोज कुमार ने बताया कि लुटरू महादेव गुफा में पहुंचने के लिए अर्की नगर की प्रमुख सडक़ से इसे जोड़ने के लिए पर्यटन विभाग द्वारा इसका निर्माण किया गया है तथा स्थान-स्थान पर यात्रियों के ठहरने के लिए पर्यटन विभाग द्वारा रेन शैल्टरों का निर्माण किया गया है ।

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