मोदी के व्यक्तित्व के कुछ सकारात्मक-नकारात्मक पहलू

Edited By ,Updated: 23 May, 2015 11:23 PM

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परसों नरेन्द्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री के रूप में एक वर्ष पूरा कर लेंगे। इस अवधि के बारे में एक निविवाद बात यह है कि वह समाचारों में छाए रहे हैं।

(करण थापर): परसों नरेन्द्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री के रूप में एक वर्ष पूरा कर लेंगे। इस अवधि के बारे में एक निविवाद बात यह है कि वह समाचारों में छाए रहे हैं। आप उन्हें पसन्द करते हैं या उनके आलोचक हैं गत 365 दिन में व्यावहारिक रूप में वह हर समाचार के केन्द्रीय विषय रहे हैं। यह अपने आप में एक अतुलनीय उपलब्धि है।

मेरी नजरों में 3 विशिष्ट सकारात्मक बातें खास तौर पर उल्लेखनीय हैं। पहली यह कि प्रधानमंत्री एक गजब के वक्ता हैं। आप बेशक उनसे असहमत हों पर जो बातें वह कह रहे हैं वे आपको पूरी तरह मंत्रमुग्ध किए रखती हैं। बीच-बीच में उनकी शैली बेशक नाटकीय हो जाती है, कभी-कभार उनका विषय-वस्तु घिसा-पिटा हो जाता है और उनकी बातों में दोहराव आ जाता है तो भी मैंने टी.वी. पर  वस्तुत: उनका प्रत्येक भाषण सुना है और यह बात मानता हूं कि वह आपका ध्यान इधर-उधर नहीं जाने देते। यदि ऐसा हो तो ज्यादा देर के लिए नहीं होता।
 
दूसरी बात यह है कि आप बेशक इससे सहमत हों या न हों कि वह विदेश नीति को हैंडल करने के मामले में असाधारण रूप में दक्ष सिद्ध हुए हैं, फिर भी बहुत कम लोग इस बात से इंकार कर सकते हैं कि शी जिनपिंग से लेकर बराक ओबामा, शिंजो अबे से लेकर स्टीफन हार्पर और टोनी एबट से लेकर फ्रांसुआ ओलांदे तक के बिल्कुल ही अलग-अलग किस्म के नेताओं के साथ जिस सहजता और कौशल के साथ उन्होंने सुर-ताल बैठाया है वह अपने आप में कमाल है। जिस व्यक्ति को राजनीतिक रूप में कभी अछूत समझा जाता था उसके लिए यह उपलब्धि लगभग असंभव को संभव करने जैसी है।
 
तीसरी सकारात्मक बात है कि प्रधानमंत्री में अथाह ऊर्जा भरी हुई है। कभी छुट्टी न करने वाली उनकी बात हो सकता है कि मात्र हेकड़ी ही हो, तो भी इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि वह थकने का नाम नहीं लेते। यदि कोई एक व्यक्ति हमें ‘चढ़दी कला’ में ला सकता है,  हमारी व्यवस्था को ऊर्जावान बना सकता है और किसी भी कीमत पर बदलाव ला सकता है तो मोदी ही ऐसा व्यक्ति होने का आसाधारण दावा ठोक सकते हैं।
 
वैसे अन्य सभी चीजों की तरह उनके भी कुछ नकारात्मक पहलू हैं। मैं एक नकारात्मक पहलू और एक  पहेली को चिन्हित करूंगा। यह नकारात्मक पक्ष इस तथ्य में से पैदा होता है कि भारत में प्रधानमंत्री केवल राजनीतिक नेता ही नहीं होता, उसे राष्ट्र को परेशान करने वाले मुद्दों पर नैतिक स्टैंड लेना पड़ता है ताकि हम राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने तथा स्पष्ट दिशा दिखाने वाले व्यक्ति के गिर्द एकजुट हो सकें। 
 
खेद की बात है कि मोदी या तो यह काम करते नहीं या फिर अनमने ढंग से अंजाम दे रहे हैं। वह पूरे ‘लव जेहाद’ अभियान के दौरान मौन रहे जबकि मुस्लिम उनके मुंह से कुछ सुनने को बेकरार थे। धर्मान्तरण के अभियान पर प्रतिक्रिया के मामले में भी उनकी चाल बहुत धीमी रही जिससे भारत के ईसाइयों को बेवजह परेशानी झेलनी पड़ी। मोदी को इससे अवश्य ही यह सबक सीखना होगा कि ऐसे अवसरों पर उनकी चुप्पी ऐसी आशंकाओं को जन्म देती है जिन्हें वह गवारा नहीं कर सकते।
 
अब बात करते हैं पहेली की। इससे निपटना अधिक कठिन है। यह पहेली उन भारी-भरकम अपेक्षाओं का परिणाम है जो उनकी चुनावी जीत ने जगाई हैं। इन अपेक्षाओं को न तो तेजी से, न ही पर्याप्त रूप में कभी पूरा किया जा सकता है। इस मामले में मोदी अपनी ही सफलता के शिकार हुए हैं। पहेली यह है कि विपक्ष के साथ-साथ भारतीय मजदूर संघ और भारतीय किसान संघ जैसे मोदी के समर्थक भी उनकी आॢथक नीतियों को किसान विरोधी एवं अमीरों की पक्षधर समझते हैं।
 
इसके विपरीत निवेशक और उद्योगपति सुधारों के मामले में उनकी पर्याप्त दृढ़ता की कमी के कारण निराश  लगते हैं। श्री मोदी चक्की के दो पाटों के बीच फंसे हुए हैं। मैं इसका हल सुझाए बिना नहीं रह सकता : एकाग्र मन से और बिना झिझक के सुधारों के मार्ग पर आगे बढ़ते जाएं और इस प्रकार उस वृद्धि का सृजन करें जो रोजगार देने के लिए देश को चाहिए। इसके राजनीतिक परिणामों के बारे में ङ्क्षचता करने या किन्तु-परन्तु करने का समय नहीं बचा है। अगला चुनाव 4 वर्ष दूर है। यदि मोदी जनता से किए हुए वायदे पूरे कर देते हैं तो जितनी भी राजनीतिक आशंकाएं उनको आज दरपेश हैं सभी छू-मंतर हो जाएंगी।
 
अंतिम बात मैं इस आशंका से कह रहा हूं कि मोदी शायद इस प्रकार के स्तंभ पढ़ते ही नहीं। यदि प्रधानमंत्रियों के पास पत्रकारों के लिए कोई समय है तो वह शायद उन चीजों को पढऩे के लिए है जिन्हें वे पसन्द करते हैं तथा जिन से वे सहमत होते हैं। लेकिन श्री मोदी को यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि राजनीति में उनके प्रतिद्वंद्वियों के दायरे से बाहर और यहां तक कि उनके आलोचकों में भी ऐसे लोग मौजूद हैं जो केवल इसलिए उनको सफल होता देखना चाहते हैं  क्योंकि भारत के पास प्रधानमंत्री वाली काबिलियत रखने वाले वही एकमात्र व्यक्ति हैं और भारत किसी भी कीमत पर दुनिया से पिछडऩा या औंधे मुंह गिरना नहीं चाहता।     
 

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