भगवान शिव की पूजा में क्यों वर्जित है शंख का प्रयोग

Edited By ,Updated: 25 May, 2015 10:23 AM

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हिन्दू धर्म को विश्व के सभी धर्मों में सबसे पुराना और वेदों पर आधारित धर्म माना जाता है, यह अपने गर्भ में विभिन्न देवी देवताओं की उपासनाओं, मतों, धार्मिक पंथों, और दर्शनों को समेटे हुए है । हिन्दु धर्म के लोग अपनी-अपनी अास्था के अनुसार अपने इष्ट देव...

हिन्दू धर्म को विश्व के सभी धर्मों में सबसे पुराना और वेदों पर आधारित धर्म माना जाता है, यह अपने गर्भ में विभिन्न देवी देवताओं की उपासनाओं, मतों, धार्मिक पंथों, और दर्शनों को समेटे हुए है । हिन्दु धर्म के लोग अपनी-अपनी अास्था के अनुसार अपने इष्ट देव को मानते हैं । हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार पांच प्रमुख देवता हैं विष्णु, गणेश, सूर्य, शिव और शक्ति । जो शक्तियों के अलग-अलग रूप हैं। हिन्दू धर्म के इन प्रमुख देवताओं में से भगवान शिव को देवों के देव महादेव कहा जाता हैं । भगवान शिव के 108 नाम हैं । 

भगवान शिव को सभी विद्याओं का जनक भी माना जाता है। वे तंत्र से लेकर मंत्र तक और योग से लेकर समाधि तक प्रत्येक क्षेत्र के आदि और अंत हैं। यही नहीं वे संगीत के आदि सृजनकर्ता भी हैं, और नटराज के रुप में कलाकारों के आराध्य भी हैं । कोई भी प्रार्थना, पूजा पाठ, आराधना, मंत्र, स्तोत्र और स्तुतियों का फल तभी प्राप्त होता है जब आराधना विधि-विधान और शास्त्रोक्त तरीकों से की जाए । शिव उपासना में शंख का प्रयोग वर्जित माना गया है। पुरातन कथाओं के अनुसार भगवान शिव की पूजा में शंख का प्रयोग नहीं होता । इन्हें शंख से न तो जल अर्पित किया जाता है और न ही शंख बजाया जाता है । 

पुरातन कथा के अनुसार एक समय श्री राधा रानी गोलोक धाम से कहीं बाहर गई हुई थी । भगवान श्री कृष्ण अपनी सखी विरजा के साथ विहार कर रहे थे । संयोगवश उसी समय श्री राधा रानी वहां आ गई । सखी विरजा को अपने प्राण प्रिय श्री कृष्ण के साथ देख कर श्री राधा रानी को बहुत क्रोध आया । क्रोध में उन्होंने कुछ ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जिससे विरजा को बहुत लज्जा महसूस हुई । लज्जावश विरजा ने नदी का रूप धारण कर लिया और वह नदी बनकर बहने लगी । श्री राधा रानी के क्रोध भरे शब्दों को सुन कर भगवान श्री कृष्ण के मित्र सुदामा को बहुत बुरा लगा उन्होंने श्री राधा रानी से ऊंचे स्वर में बात की। जिससे क्रोधित श्री राधा रानी ने सुदामा को दानव बनने का श्राप दे दिया । 

आवेश में आए सुदामा ने भी हित-अहित का विचार किए बिना श्री राधा रानी को मनुष्य योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया । श्री राधा रानी के श्राप से सुदामा शंखचूर नाम का दानव बना । दंभ के पुत्र शंखचूर का वर्णन शिवपुराण में भी मिलता है। यह अपने बल के अवेशष में तीनों लोकों का स्वामी बन बैठा और साथ ही सभी साधु-संतों को सताने लगा । साधु-संतों की रक्षा के लिए भगवान शिव ने शंखचूर का वध कर दिया । शंखचूर श्री विष्णु और देवी लक्ष्मी का परम प्रिय भक्त था । भगवान विष्णु ने इसकी हड्डियों से शंख का निर्माण किया इसलिए विष्णु एवं अन्य देवी देवताओं को शंख से जल अर्पित किया जाता है ।

भगवान विष्णु को शंख इतना प्रिय है कि शंख से जल अर्पित करने पर भगवान विष्णु अति प्रसन्न हो जाते हैं लेकिन भगवान शिव की पूजा में शंख का न तो प्रयोग होता है और न ही जल दिया जाता है और न भगवान शिव की पूजा में शंख बजाया जाता है क्योंकि भगवान शिव ने शंखचूर का वध किया था  इसलिए शंख भगवान शिव की पूजा में वर्जित माना गया है ।

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