जब भी हों जीवन में हताश और निराश तो याद रखें ये बात

Edited By ,Updated: 26 May, 2015 08:10 AM

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एक जगह चार दीपक जल रहे थे। वे आपस में बातें करने लगे। पहला दीपक बोला- ‘‘हे ईश्वर! इस दुनिया में कितनी मार-काट मची हुई है। लोग स्वार्थ से अंधे हो गए हैं। ऐसे लोगों के लिए मेरी रोशनी किस काम की। और वह बुझ गया।’’

एक जगह चार दीपक जल रहे थे। वे आपस में बातें करने लगे। पहला दीपक बोला- ‘‘हे ईश्वर! इस दुनिया में कितनी मार-काट मची हुई है। लोग स्वार्थ से अंधे हो गए हैं। ऐसे लोगों के लिए मेरी रोशनी किस काम की। और वह बुझ गया।’’

उसकी बात सुन रहा दूसरा दीपक भी कहने लगा, ‘‘लोगों के लिए पैसा ही सब कुछ हो गया है। जीवन से ज्ञान और संस्कार का प्रकाश खत्म हो चुका है, फिर मैं ही जल कर क्या कर लूंगा?’’ और वह भी बुझ गया।

तीसरा दीपक तो और भी निराश था। हालांकि उसमें पहले दो दीपों से ज्यादा तेल बाकी था। वह बोला, ‘‘अच्छी बात बताई जाए सही राह दिखाई जाए तो लोग बुरा मानने लग जाते हैं, मजाक उड़ाते हैं। फिर मेरी रोशनी से क्या फर्क पड़ जाएगा।’’ और वह भी मंद पड़ कर बुझ गया।

लेकिन चौथा दीपक जलता रहा। उसने मन ही मन कहा, ‘‘जब तक मुझ में तेल और बाती बाकी है, मैं जलता रहूंगा।’’  हमें इस चौथे दीपक की तरह बनने की जरूरत है।

शिकायतें न करें, हताश न हों। सच्चाई के मार्ग पर चलते रहें। यही नहीं, बुझ चुके अन्य दीपों को भी रोशन करते चलें।

 

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