Edited By ,Updated: 27 May, 2015 09:17 AM
सुख और दुख जीवन में दिन और रात के समान हैं जैसे दिन के बाद रात होती है और रात के बाद सुंदर सुहावनी सुबह का आगाज होता है। उसी तरह दुख की काली रात के बाद सुख का आगाज होता है।
सुख और दुख जीवन में दिन और रात के समान हैं जैसे दिन के बाद रात होती है और रात के बाद सुंदर सुहावनी सुबह का आगाज होता है। उसी तरह दुख की काली रात के बाद सुख का आगाज होता है। धूप और छांव की तरह सुख और दुख जीवन में आते-जाते रहते हैं। दोनों में से कुछ भी स्थाई नहीं रहता। प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में किसी न किसी समस्या को लेकर परेशान रहता है।
महाभारत के एक प्रसंग में विदुर जी अपने एक श्लोक के माध्यम से बताते हैं की संसार के 6 ऐसे सुख भोग हैं जो किसी भी व्यक्ति के पास हों तो वो संसार का भाग्यशाली मनुष्य कहलाता है। दुख उसके पास भी नहीं फटकते।
श्लोक- अर्थागमों नित्यमरोगिता च प्रिया च भार्या प्रियवादिनी च।
वश्यश्च पुत्रो अर्थकरी च विद्या षट् जीव लोकेषु सुखानि राजन्।
अर्थात- दौलत, स्वस्थ शरीर, सुरूप सहचारी, प्यारा और मीठा बोलने वाली, पुत्र का आज्ञापालक होना और धन उत्पन्न करने वाली शिक्षा का ज्ञान होना
दौलत- दौलत और धन जीवन की ऐसी मूलभूत अवश्यकता है जिसके आधार पर ही समाज में हमारा वर्चस्व स्थापित होता है। जिस व्यक्ति के पास धन न हो उसे समाज में न तो सम्मान मिलता है और न ही यश। परिवार के पालन-पोषण से लेकर शिक्षा प्राप्त करने तक धन ही महत्वपूर्ण भूमीका निभाता है। वृद्धावस्था में जिस व्यक्ति के पास धन है केवल वह ही सुखी जीवन का यापन कर सकता है।
स्वस्थ शरीर- धर्म का पालन करने का साधन स्वस्थ शरीर ही है। शरीर स्वस्थ और निरोग हो तभी व्यक्ति दिनचर्या का पालन विधिवत कर सकता है, दैनिक कार्य और श्रम कर सकता है, किसी सुख-साधन का उपभोग कर सकता है, कोई उद्यम या उद्योग करके धनोपार्जन कर सकता है, अपने परिवार, समाज और राष्ट्र की सेवा कर सकता है, आत्मकल्याण के लिए साधना और ईश्वर की आराधना कर सकता है।
सुरूप सहचारी, प्यारा और मीठा बोलने वाली- जिस व्यक्ति की पत्नी क्रोधी स्वभाव की होती है, पति को प्रेम नहीं करती, पतिव्रत धर्म का पालन न करती हो हमेशा पति को दुख देती रहती हो। ऐसी पत्नी अपने और कुटुंब के लिए नरक के द्वार खोलती है। जो पत्नी ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान कर पति के लिए श्रृंगार करती है। ईश पूजन करने के उपरांत सुचारू रूप से घर गृहस्थी के काम करती है, बड़ों से सम्मान और छोटो से प्यार, घर आए अतिथियों का उचित सम्मान करना, आय के अनुसार गृहस्थी चलाना आदि कार्यों में दक्ष होती है ऐसी पत्नी अपने पति से भरपूर प्यार पाती है। स्वयं और कुटुंब के लिए स्वर्ग के द्वार खोलती है।
पुत्र का आज्ञापालक होना- पुत्र को घर का चिराग माना जाता है। आज्ञाकारी और धर्म के पग पर चलने वाला पुत्र ही सही मायनों में घर का चिराग कहलाने योग्य है। माता-पिता की आज्ञा न मानने वाला, अधर्म के मार्ग पर चलने वाला कुपुत्र जीवनकाल में ही नरक के समान दुख देता है।
धन उत्पन्न करने वाली शिक्षा का ज्ञान होना- राजा को रंक बनते और रंक को राजा बनते समय नहीं लगता क्योंकि धन किसी भी व्यक्ति के पास स्थाई तौर पर नहीं रूकता लेकिन शिक्षा के माध्यम से जो ज्ञान अर्जित किया जाता है उससे हम स्थायी धन का प्रबंध कर सकते हैं। ज्ञान ऐसी धरोहर है जिसे न तो नष्ट किया जा सकता है और न ही कोई चुरा सकता है। सम्मानपूर्वक जीवन यापन करने के लिए धन से अधिक ज्ञान की अवश्यकता होती है। ज्ञान के माध्यम से मनचाहा धन अर्जित किया जा सकता है।