मां लक्ष्मी के इस स्वरुप की साधना से आर्थिक संकट होते हैं दूर

Edited By ,Updated: 29 May, 2015 09:24 AM

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शास्त्रों मे देवी लक्ष्मी को ‘श्री’ भी कहा जाता है । कहते हैं भद्र स्त्री व पुरुषों के आगे श्री लगाने का प्रचलन “लक्ष्मी” शब्द से ही शुरू हुआ है । पर लक्ष्मी सिर्फ धन की देवी नहीं हैं । जहां सत्व यानी आंतरिक शक्ति है, वहीं लक्ष्मी हैं.......

शास्त्रों मे देवी लक्ष्मी को ‘श्री’ भी कहा जाता है । कहते हैं भद्र स्त्री व पुरुषों के आगे श्री लगाने का प्रचलन “लक्ष्मी” शब्द से ही शुरू हुआ है । पर लक्ष्मी सिर्फ धन की देवी नहीं हैं । जहां सत्व यानी आंतरिक शक्ति है, वहीं लक्ष्मी हैं । जिस पर उनकी कृपा दृष्टि होती है, वही धन्य, कुलीन, बुद्धिमान, शूर और विक्रांत है । ऋग्वेद में "लक्ष्मी को भूमि की प्रिय सखी" कहा गया है । शब्द “लक्ष्मी” का निर्माण "लक्ष्य" शब्द से हुआ है । जिसका अर्थ होता है उद्देश ।

इस लेख के मध्यम से हम अपने पाठकों को आठ लक्ष्मीयों में से एक गजलक्ष्मी के बारे में बताने जा रहे हैं । लक्ष्मी का गजलक्ष्मी स्वरुप चार भुजाधारी है । इस स्वरुप में लक्ष्मीजी गज अर्थात हाथी पर आठ कमल की पत्तियों के समान आकार वाले सिंहासन पर विराजित होती है । इस स्वरुप में इनके दोनों ओर भी हाथी खड़े होते हैं । इनके चार हाथों में क्रमशः कमल का फूल, अमृत कलश, बेल व शंख विधमान होते हैं । गजलक्ष्मी की साधना संपत्ति व संतान देने वाली मानी गई है ।

शास्त्रों मे गज को वर्षा करने वाले मेघों व उर्वरता का भी प्रतीक माना जाता है । गज की सवारी करने के कारण यह उर्वरता तथा समृद्धि की देवी मानी जाती हैं ।गज लक्ष्मी देवी को राजलक्ष्मी के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इन्हीं की कृपा से राजाओं को धन वैभव और समृद्घि की प्राप्ति होती है । गज लक्ष्मी के स्वरुप में इनके समक्ष जल की वर्षा करते दो हाथियों का जोड़ा होता हैं । पौराणिक मान्यतानुसार ये हाथी 'दिग्गज' के आठ हाथियों में से एक होते हैं, जो कि ब्रह्मांड के आठ कोनों पर स्थित रहकर आकाश को संभालते हैं ।

ये हाथी लक्ष्मी के कृपापात्र हैं । गज अर्थात हाथी को शक्ति, श्री तथा राजसी वैभव से युक्त प्राणी माना गया है । इनकी उपासना से घर से आर्थिक संकट दूर होते हैं । गजलक्ष्मी को प्रसन्न करने हेतु रात्री 9 बजे बाद पश्चिममुखी इनका षोडशोपचार पूजन करें । पूजन के बाद कमलगट्टे की माला से इस मंत्र का यथासंभव जाप करें । यह मंत्र महात्रिपुरसुंदरी पराभट्टारिका उपासना पद्दति के अंतर्गत श्री अष्टलक्ष्मी अष्टोत्तरशतनामावली के गजलक्ष्मी नामावलिः खंड से है । 

मंत्र: ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं गजलक्ष्म्यै नमः॥

आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com

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